Pitru Paksha 2025: क्या पितृ पक्ष में की जा सकती है तुलसी की पूजा, यहां जानें
हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार पितृ पक्ष (Pitru Paksha 2025) पूर्वजों की आत्मा की शांति और आशीर्वाद पाने का एक उत्तम अवसर है। इस बार 7 सिंतबर से 21 सिंतबर तक पितृ पक्ष की अवधि चलने वाली है। चलिए जानते हैं कि क्या पितृ पक्ष में तुलसी की पूजा की जा सकती है या नहीं।

धर्म डेस्क, नई दिल्ली। हर साल भाद्रपद में आने वाली पूर्णिमा से पितृ पक्ष की शुरुआत होती है, जो आश्विन माह की अमावस्या तिथि तक चलते हैं। आज हम आपको बताने जा रहे हैं कि क्या पितृ पक्ष में तुलसी पूजा करना शुभ होता है।
मिलता है यह फल
पितृ पक्ष के दौरान तुलसी पूजा करना शुभ माना जाता है। माना जाता है कि तुलसी पूजन से मां लक्ष्मी और भगवान विष्णु प्रसन्न होते हैं। उनकी कृपा से न केवल पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है। ऐसे में अगर आप पितृ पक्ष में नियमित रूप (रविवार और एकादशी को छोड़कर) से तुलसी में जल अर्पित करें और पूजा करते हैं, तो इससे आपको पितरों की भी कृपा की प्राप्ति होती है।
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करें ये काम
पितृ पक्ष में रोजाना तुलसी की पूजा-अर्चना करें व शाम के समय तुलसी के समक्ष घी का दीपक जलाएं और तुलसी की परिक्रमा करें। अब तुलसी के पास खड़े होकर अपने पितरों को स्मरण करें और सुख-समृद्धि की प्रार्थना करें। इसके साथ ही आप दूध, जल या गंगाजल में तुलसी के पत्तों को डालकर पितरों को अर्पण भी कर सकते हैं। ऐसा करने से पितृ तृप्त होते हैं और साधक को सुख-समृद्धि का आशीर्वाद देते हैं।
तुलसी के मंत्र
तुलसी पूजा के दौरान आप तुलसी चालीसा के साथ-साथ तुलसी जी के मंत्रों का भी जप कर सकते हैं। इससे साधक के जीवन में खुशहाली आती है। साथ ही धन की देवी की कृपा से साधक को सुख धन की समस्याओं से भी मुक्ति मिलती है।
1. ॐ सुभद्राय नमः"
2. जल अर्पित करने का मंत्र -
"महाप्रसाद जननी सर्व सौभाग्यवर्धिनी, आधि व्याधि हरा नित्यं तुलसी त्वं नमोस्तुते"
3. तुलसी स्तुति मंत्र -
देवी त्वं निर्मिता पूर्वमर्चितासि मुनीश्वरैः
नमो नमस्ते तुलसी पापं हर हरिप्रिये।।
तुलसी श्रीर्महालक्ष्मीर्विद्याविद्या यशस्विनी।
धर्म्या धर्मानना देवी देवीदेवमन: प्रिया।।
लभते सुतरां भक्तिमन्ते विष्णुपदं लभेत्।
तुलसी भूर्महालक्ष्मी: पद्मिनी श्रीर्हरप्रिया।।
4. तुलसी नामाष्टक मंत्र -
वृंदा वृंदावनी विश्वपूजिता विश्वपावनी।
पुष्पसारा नंदनीय तुलसी कृष्ण जीवनी।।
एतभामांष्टक चैव स्त्रोतं नामर्थं संयुतम।
य: पठेत तां च सम्पूज्य सौश्रमेघ फलंलमेता।।
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