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    Pitru Paksha 2023: क्या पितृ पक्ष में महिलाएं भी कर सकती हैं पिंडदान, जानिए क्या कहता है गरुण पुराण

    By Suman SainiEdited By: Suman Saini
    Updated: Wed, 20 Sep 2023 12:01 PM (IST)

    Garuda Purana सनातन धर्म में पितृ पक्ष का विशेष महत्व है। वर्ष 2023 में पितृ पक्ष 28 सितंबर 2023 से 14 अक्टूबर 2023 तक चलने वाले हैं। पिंडदान या श्राद ...और पढ़ें

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    Pitru Paksha 2023 जानिए, क्या पितृ पक्ष में महिलाएं भी कर सकती हैं पिंडदान।

    नई दिल्ली, अध्यात्म डेस्क। Pitru Paksha Upay 2023: भाद्रपद माह की पूर्णिमा तिथि से लेकर आश्विन माह की अमावस्या तिथि तक पितृपक्ष होता है। इस दौरान पितरों के लिए श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान करना शुभ माना जाता है। पितृ पक्ष 15 दिनों तक चलते हैं इस दौरान हमारे पूर्वज पृथ्वीलोक में हमसे मिलने आते हैं। गरुण पुराण में यह वर्णन मिलता है कि कुछ विशेष परिस्थियों में महिलाएं भी पिंडदान कर सकती हैं। जानिए वह विशेष परिस्थितियां कौन-सी हैं।

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    कब कर सकती है महिलाएं पिंडदान

    गरुड़ पुराण में वर्णन मिलता है कि यदि किसी व्यक्ति के पुत्र नहीं है, तो ऐसे में परिवार की महिलाएं भी अपने पिता का श्राद्ध या पिंडदान कर सकती हैं। गरुड़ पुराण के अनुसार पुत्र न होने के बावजूद यदि पुत्री सच्चे मन से अपने पिता का साथ कम करती हैं तो उन्हें पितरों का आशीर्वाद मिलता है। दूसरी स्थिति के अनुसार, यदि पिंडदान के दौरान घर के पुरुष किसी कारणवश वहां मौजूद नहीं हैं तो, इस स्थिति में भी महिलाएं श्राद्ध या पिंडदान कर सकती हैं।

    माता सीता ने किया था पिंडदान

    शास्त्रों में भी इस बात का प्रमाण मिलता है कि किसी पुरुष के उपस्थित न होने पर फल्गु तट पर स्थित सीता कुंड के पास माता सीता ने अपने ससुर राजा दशरथ का पिंडदान किया था। माता सीता ने इस पिंडदान का साक्षी फालगु नदी, केतकी के फूल, गाय और वट वृक्ष को बनाया था।

    पिंडदान की विधि (Pind Daan vidhi)

    पिंडदान का अर्थ होता है अपने पितरों को भोजन का दान देना। पिंडदान के दौरान मृतक व्यक्ति के निमित्त जौ या चावल के आटे को गूंथ कर गोल आकृति वाले पिंड बनाए जाते हैं इसलिए इसे पिंडदान कहा जाता है। पितृ पक्ष के दौरान भोजन के पांच अंश अपने पितरों के लिए निकालने का विधान है।

    माना जाता है कि पितृपक्ष में हमारे पूर्वज के गाय, कुत्ता, कुआं, चींटी या देवताओं के रूप में आकर हमारे द्वारा दान किया गया भोजन ग्रहण करते हैं। यह इस बात का संकेत होता है कि हमारे पूर्वज हमसे प्रसन्न हैं।

    डिसक्लेमर: 'इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।'

    अक्सर पूछे जाने वाले सवाल

    अश्विन मास के कृष्ण पक्ष की नवमी तिथि को मातृ नवमी कहा जाता है। इस दिन परिवार की ऐसी स्त्रियों का श्राद्ध किया जाता है, जिसकी मृत्यु सुहागिन के रूप में हुई हो।