Pitru Paksha 2020: श्राद्ध में कुश, तिल और अक्षत् के साथ क्यों देते हैं दान? असुर हैं इसकी वजह
Pitru Paksha 2020 पितृपक्ष के समय श्राद्ध का दान करने में कुश तिल और अक्षत् का प्रयोग किया जाता है। ऐसा क्यों होता है इसके बारे में स्कंदपुराण में बताया गया है।
Pitru Paksha 2020: पितृपक्ष का समय चल रहा है। आज द्वितीया श्राद्ध है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, श्राद्ध के समय जो भी वस्तुएं दान की जाती हैं, वो पितरों को प्राप्त होती हैं। दान में मुख्यत: वस्त्र, भोजन, जल समेत उनके उपयोग की कई वस्तुएं होती हैं। पितृपक्ष के समय श्राद्ध का दान करने में कुश, तिल और अक्षत् का प्रयोग किया जाता है। ऐसा क्यों होता है, इसके बारे में स्कंदपुराण में बताया गया है। आइए जानते हैं इसके बारे में।
दान में कुश, तिल और अक्षत् प्रयोग
एक बार महाराज करन्धम महाकाल का दर्शन करने पहुंचे। कालभीति ने उनका स्वागत सत्कार किया। उसके बाद उन्होंने स्थान ग्रहण किया। उन्होंने महाकाल से पूछा कि वह जानना चाहते हैं कि श्राद्ध के समय जो दान दिया जाता है, वह कुश, तिल और अक्षत् के साथ क्यों दिया जाता है? महाकाल ने बताया कि पितरों को पहले जमीन पर भी दान दिए जाते थे, लेकिन उसे असुर बीच में ही घुसकर ले लेते थे। देवता और पितर एक दूसरे का मुंह ही देखते रह जाते थे।
थक हारकर उन लोगों ने इस बारे में ब्रह्मा जी से शिकायत की। इस पर ब्रह्मा जी ने उनसे कहा कि पितरों को दिए गए पदार्थों के साथ तिल, जल, कुश एवं जौ देवताओं को दिया जाए। उसके साथ अक्षत् (यानी जौ, चावल), जल, कुश का प्रयोग किया जाए। ऐसा करने पर उस दान को असुर कभी भी ले नहीं पाएंगे। इसके बाद से यह परंपरा चली आ रही है।
पितरों को कैसे मिलता है जल, पिंड आदि वस्तुएं
उन्होंने फिर सवाल किया कि पितरों को जो जल दिया जाता है, वो तो जल में ही मिल जाता है। फिर पितरों को कैसे प्राप्त होता है? पिंड भी यहीं होते हैं, तो वे कैसे उनको मिलते हैं? इस पर महाकाल ने कहा कि राजन! देवता और पितरों की योनि ऐसी होती है कि वे दूर से किए गए पूजन, स्तुति, अर्चा तथा तीनों काल भूत, वर्तमान एवं भविष्य की बातें जान लेते हैं और वो उन तक पहुंच जाती है।
इस पर करन्धम ने कहा कि पितरों के लिए पृथ्वी पर श्राद्ध होता है, लेकिन वे कर्मानुसार स्वर्ग या नरक में चले जाते हैं। तब ये बात कैसे मानी जाए। दूसरी बात ये है कि कहा जाता है कि पितर प्रसन्न होकर मनुष्यों को आयु, धन, विद्या, मोक्ष आदि प्रदान करते हैं। यह कैसे होगा? वे तो स्वयं कर्मों के कारण नरक में हैं, तो दूसरों के लिए कुछ कैसे करेंगे।
इस पर महाकाल ने कहा कि ठीक है। लेकिन देवता, असुर, यक्ष आदि के तीन अमूर्त तथा चारों वर्णों के चार मूर्त, ये 7 प्रकार के पितर माने गए हैं। ये नित्य पितर हैं। ये कर्म अधीन नहीं होते। ये सभी लोगों को सबकुछ देने में क्षमतावान हैं। इन नित्य पितरों के 21 गण होते हैं। वे तृप्त होकर श्राद्ध करने वालों के पितरों को, वे चाहे कहीं भी हों, तृप्त करते हैं।