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    Pausha Putrada Ekadashi 2024: तुलसी पूजन से प्रसन्न होंगे भगवान विष्णु, करें तुलसी कवच का पाठ

    By Vaishnavi DwivediEdited By: Vaishnavi Dwivedi
    Updated: Sun, 21 Jan 2024 12:47 PM (IST)

    Pausha Putrada Ekadashi 2024 आज पौष पुत्रदा एकादशी व्रत रखा जा रहा है। यह पौष माह में शुक्ल पक्ष की ग्याहरवीं तिथि को मनाया जाता है। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा होती है। इस शुभ दिन पर पालनकर्ता भगवान श्री हरि की पूजा करने से सुख-शांति की प्राप्ति होती है। इसलिए प्रत्येक भक्त को इस दिन का उपवास जरूर करना चाहिए।

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    Pausha Putrada Ekadashi 2024: तुलसी कवच का पाठ

    धर्म डेस्क, नई दिल्ली।Pausha Putrada Ekadashi 2024: हिंदू धर्म में पौष पुत्रदा एकादशी व्रत को बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है। यह दिन श्री हरि विष्णु की पूजा के लिए समर्पित है। यह पौष माह के ग्यारहवें दिन मनाया जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस शुभ दिन पर जो जातक श्री नारायण के साथ माता तुलसी की विधिपूर्वक पूजा करते हैं उनकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।

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    ऐसे में सुबह उठकर पवित्र स्नान करें। और तुलसी कवच का पाठ करें। इससे देवी तुलसी की कृपा आप पर हमेशा बनी रहेगी।

    ''तुलसी कवच का पाठ''

    तुलसी श्रीमहादेवि नमः पंकजधारिणी ।

    शिरो मे तुलसी पातु भालं पातु यशस्विनी ।।

    दृशौ मे पद्मनयना श्रीसखी श्रवणे मम ।

    घ्राणं पातु सुगंधा मे मुखं च सुमुखी मम ।।

    जिव्हां मे पातु शुभदा कंठं विद्यामयी मम ।

    स्कंधौ कह्वारिणी पातु हृदयं विष्णुवल्लभा ।।

    पुण्यदा मे पातु मध्यं नाभि सौभाग्यदायिनी ।

    कटिं कुंडलिनी पातु ऊरू नारदवंदिता ।।

    जननी जानुनी पातु जंघे सकलवंदिता ।

    नारायणप्रिया पादौ सर्वांगं सर्वरक्षिणी ।।

    संकटे विषमे दुर्गे भये वादे महाहवे ।

    नित्यं हि संध्ययोः पातु तुलसी सर्वतः सदा ।।

    इतीदं परमं गुह्यं तुलस्याः कवचामृतम् ।

    मर्त्यानाममृतार्थाय भीतानामभयाय च ।।

    मोक्षाय च मुमुक्षूणां ध्यायिनां ध्यानयोगकृत् ।

    वशाय वश्यकामानां विद्यायै वेदवादिनाम् ।।

    द्रविणाय दरिद्राण पापिनां पापशांतये ।।

    अन्नाय क्षुधितानां च स्वर्गाय स्वर्गमिच्छताम् ।

    पशव्यं पशुकामानां पुत्रदं पुत्रकांक्षिणाम् ।।

    राज्यायभ्रष्टराज्यानामशांतानां च शांतये I

    भक्त्यर्थं विष्णुभक्तानां विष्णौ सर्वांतरात्मनि ।।

    जाप्यं त्रिवर्गसिध्यर्थं गृहस्थेन विशेषतः ।

    उद्यन्तं चण्डकिरणमुपस्थाय कृतांजलिः ।।

    तुलसीकानने तिष्टन्नासीनौ वा जपेदिदम् ।

    सर्वान्कामानवाप्नोति तथैव मम संनिधिम् ।।

    मम प्रियकरं नित्यं हरिभक्तिविवर्धनम् ।

    या स्यान्मृतप्रजा नारी तस्या अंगं प्रमार्जयेत् ।।

    सा पुत्रं लभते दीर्घजीविनं चाप्यरोगिणम् ।

    वंध्याया मार्जयेदंगं कुशैर्मंत्रेण साधकः ।।

    साSपिसंवत्सरादेव गर्भं धत्ते मनोहरम् ।

    अश्वत्थेराजवश्यार्थी जपेदग्नेः सुरुपभाक ।।

    पलाशमूले विद्यार्थी तेजोर्थ्यभिमुखो रवेः ।

    कन्यार्थी चंडिकागेहे शत्रुहत्यै गृहे मम ।।

    श्रीकामो विष्णुगेहे च उद्याने स्त्री वशा भवेत् ।

    किमत्र बहुनोक्तेन शृणु सैन्येश तत्त्वतः ।।

    यं यं काममभिध्यायेत्त तं प्राप्नोत्यसंशयम् ।

    मम गेहगतस्त्वं तु तारकस्य वधेच्छया ।।

    जपन् स्तोत्रं च कवचं तुलसीगतमानसः ।

    मण्डलात्तारकं हंता भविष्यसि न संशयः ।।

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