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    Paush Amavasya 2024: कब है पौष अमावस्या? नोट करें शुभ मुहूर्त, पूजा विधि एवं महत्व

    By Pravin KumarEdited By: Pravin Kumar
    Updated: Tue, 26 Dec 2023 07:35 PM (IST)

    सनातन धर्म में पौष महीने का विशेष महत्व है। इस महीने में सूर्य उत्तरायण होते हैं। साल 2024 में 15 जनवरी को सूर्य उत्तरायण होंगे। इस दिन मकर संक्रांति मनाई जाएगी। इससे 4 दिन पूर्व पौष अमावस्या है। धार्मिक मान्यता है कि अमावस्या तिथि पर स्नान-ध्यान कर शुद्ध मन से भगवान विष्णु की पूजा करने से साधक को अक्षय फल की प्राप्ति होती है।

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    Paush Amavasya 2024: कब है पौष अमावस्या? नोट करें शुभ मुहूर्त, पूजा विधि एवं महत्व

    धर्म डेस्क, नई दिल्ली। Paush Amavasya 2024: हर महीने कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि के अगले दिन अमावस्या तिथि पड़ती है। तदनुसार, पौष महीने में 11 जनवरी को अमावस्या है। इसे पौष अमावस्या कहा जाता है। सनातन धर्म में अमावस्या तिथि पर गंगा स्नान कर भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना की जाती है। साथ ही पितरों का तर्पण भी किया जाता है। गरुड़ पुराण में निहित है कि अमावस्या तिथि पर पितरों का तर्पण और पिंडदान करने से पूर्वजों को मोक्ष की प्राप्ति होती है। वहीं, साधक को पितरों को आशीर्वाद प्राप्त होता है। पूर्वजों के आशीर्वाद से साधक के सुखों में वृद्धि होती है। आइए, पौष अमावस्या का शुभ मुहूर्त, पूजा विधि एवं महत्व जानते हैं-

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    शुभ मुहूर्त

    पंचांग के अनुसार, पौष अमावस्या 10 जनवरी को संध्याकाल 08 बजकर 10 मिनट से शुरू होगी और अगले दिन यानी 11 जनवरी को संध्याकाल 05 बजकर 26 मिनट पर समाप्त होगी। सनातन धर्म में उदया तिथि मान है। अतः 11 जनवरी को पौष अमावस्या मनाई जाएगी।

    महत्व

    सनातन धर्म में पौष महीने का विशेष महत्व है। इस महीने में सूर्य उत्तरायण होते हैं। साल 2024 में 15 जनवरी को सूर्य उत्तरायण होंगे। इस दिन मकर संक्रांति मनाई जाएगी। इससे 4  दिन पूर्व पौष अमावस्या है। धार्मिक मान्यता है कि अमावस्या तिथि पर स्नान-ध्यान कर शुद्ध मन से भगवान विष्णु की पूजा करने से साधक को अक्षय फल की प्राप्ति होती है। साथ ही शारीरिक और मानसिक कष्टों से मुक्ति मिलती है।

    पूजा विधि

    पौष अमावस्या के दिन ब्रह्म बेला में उठें और घर की साफ-सफाई करें। दैनिक कार्यों से निवृत्त होने के पश्चात गंगाजल युक्त पानी से स्नान करें। सुविधा होने पर नदी या सरोवर में स्नान करें। इसके पश्चात, आचमन कर स्वयं को शुद्ध करें और नवीन वस्त्र धारण करें। इसी समय भगवान सूर्य को जल का अर्घ्य दें। आप तिलांजलि भी दे सकते हैं। सूर्य देव को अर्घ्य देने के पश्चात जल में काले तिल मिलाकर दक्षिण दिशा में मुख कर पितरों को अर्घ्य दें। योग्य पंडित की देखरेख में पूर्वजों का तर्पण कर सकते हैं। अब विधि-विधान से भगवान विष्णु की पूजा करें। पूजा के समय विष्णु चालीसा का पाठ करें। अंत में आरती कर सुख-समृद्धि की कामना करें। इसके पश्चात यथा शक्ति तथा भक्ति के भाव से दान करें।

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    डिसक्लेमर: 'इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।'