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    Pauranik Kathayen: जब एक तपस्वी से हार गए थे महाबली हनुमान, जानें कौन थे ये तपस्वी

    By Shilpa SrivastavaEdited By:
    Updated: Tue, 19 Jan 2021 10:56 AM (IST)

    Pauranik Kathayen एक बार एक बड़े तपस्वी थे जिनका नाम मच्छिंद्रनाथ था। एक बार वो रामेश्वरम आए। यहां राम जी द्वारा बनाया गया सेतु था जिसे देख वो भावविभोर हो उठे। यह देख वे प्रभु की भक्ति में लीन हो गए और समुद्र में स्नान करने लगे।

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    Pauranik Kathayen: जब एक तपस्वी से हार गए थे महाबली हनुमान, जानें कौन थे ये तपस्वी

    Pauranik Kathayen: एक बार एक बड़े तपस्वी थे जिनका नाम मच्छिंद्रनाथ था। एक बार वो रामेश्वरम आए। यहां राम जी द्वारा बनाया गया सेतु था जिसे देख वो भावविभोर हो उठे। यह देख वे प्रभु की भक्ति में लीन हो गए और समुद्र में स्नान करने लगे। वहां पर हनुमान जी वानर वेश में मौजूद थे। तभी उनकी नजर मच्छिंद्रनाथ पर पड़ी। उन्होंने सोचा कि क्यों न इनकी परीक्षा ली जाए। हनुमान जी की लीला से वहां जोरों की बारिश शुरू हो गई। बारिश से बचने के लिए हनुमान जी एक एक पहाड़ पर वार कर गुफा बनाने लगे। यह करने का उनका उद्देश्य यह भी था कि मच्छिंद्रनाथ का ध्यान टूटे और उन पर नजर पड़े। जैसा हनुमान जी ने सोचा था वही हुआ। मच्छिंद्रनाथ का ध्यान उनकी तरफ गया और हनुमान जी के वानर रूप से कहा कि तुम क्यों ऐसी मूर्खता कर रहे हो। प्यास लगने पर कुआं नहीं खोदा जाता। क्या पहले तुम अपने घर का इंतजाम नहीं कर पाए थे।

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    यह सुन हनुमान जी ने कहा कि आप कौन हैं। मच्छिंद्रनाथ ने कहा कि वो एक सिद्ध योगी हैं और उन्हें मंत्र शक्ति प्राप्त है। हनुमान जी ने कहा कि प्रभु श्रीराम और महाबली हनुमान से श्रेष्ठ योद्धा संसार में और कोई नहीं। मैंने भी उनकी सेवा कि है तो उन्होंने प्रसन्न होकर अपनी शक्ति का एक प्रतिशत हिस्सा मुझे दे दिया है। अगर आप सिद्ध योगी हैं तो मुझे हराकर दिखाएं। अगर आपने ऐसा कर दिया तो ही मैं आपके तपोबल को सार्थक मानूंगा।

    यह सुन मच्छिंद्रनाथ ने वानर की चुनौती स्वीकार कर ली। हनुमान जी ने मच्छिंद्रनाथ पर लगातार बड़े-बड़े 7 पर्वत फेकें। मच्छिंद्रनाथ ने अपनी मंत्र शक्ति का उपयोग कर उन सभी को उनके मूल स्थान पर वापस भेज दिया। यह देख हनुमान जी को गुस्सा आ गया। उन्होंने वहां मौजूद सबसे बड़ा पर्वत अपने हाथ में उठाया। यह देख मच्छिंद्रनाथ ने समुद्र के पानी की कुछ बूंदों को अपने हाथ में ले लिया। इन बूंदों को वाताकर्षण मंत्र से सिद्ध कर हनुमान जी के ऊपर फेंक दिया। जैस ही हुनमान जी को वो पानी की बूंदें स्पर्श हुईं तो वो स्थिर हो गए। वह हिल नहीं पा रहे थे। उनकी शक्ति भी कुछ पलों के लिए छिन्न गईं। ऐसे में वो पर्वत का भार सह नहीं पाए। हनुमान जी कष्ट में देख उनके पिता वायुदेव वहां प्रकट हो गए।

    वायुदेव ने मच्छिंद्रनाथ से हनुमान जी को क्षमा करने की प्रार्थना की। उनकी प्रार्थना सुन हनुमान जी को मच्छिंद्रनाथ ने मुक्त कर दिया। फिर हनुमान जी अपने वास्तविक रुप में आ गए। उन्होंने मच्छिंद्रनाथ से कहा, हे मच्छिंद्रनाथ यह तो मैं जानता हूं कि आप स्वयं में नारायण के अवतार हैं फिर भी मैं आपकी शक्ति की परीक्षा लेने की प्रयास कर बैठा। मेरी भूल को माफ करें। यह सुन मच्छिंद्रनाथ ने हनुमान जी को माफ कर दिया।