Pauranik Kathayen: जब हनुमान जी ने तोड़ा था भीमसेन का अभिमान, पढ़ें यह पौराणिक कथा
Pauranik Kathayen यह कई बार बेहद जरूरी हो जाता है कि हमें प्राचीन काल में क्या घटित हुआ है जो हमारे जीवन में सकारात्मकता ला सकता है उसे जाना या पढ़ा जाए। वहीं कुछ पौराणिक कथाएं ऐसी होती हैं जिन्हें जानना रोचक भी होता है और अहम भी।
Pauranik Kathayen: यह कई बार बेहद जरूरी हो जाता है कि हमें प्राचीन काल में क्या घटित हुआ है जो हमारे जीवन में सकारात्मकता ला सकता है, उसे जाना या पढ़ा जाए। वहीं, कुछ पौराणिक कथाएं ऐसी होती हैं जिन्हें जानना रोचक भी होता है और अहम भी। जागरण अधाय्तम में हम लगातार आपके लिए पौराणिक कथाओं की जानकारी लाते रहे हैं। आज भी हम आपके लिए एक ऐसी ही कथा लाए हैं। यह कथा है भीमसेन के अभिमान की। आइए पढ़ते हैं यह पौराणिक कथा।
पांडु पुत्र भीम को अपने बलशाली होने पर बेहद गर्व था। कई बार तो वो अपने सामने किसी को कुछ नहीं समझते थे। जब उनका वनवास काल चल रहा था तब वह एक दिन विचरते हुए कहीं दूर निकाल गए। वह एक वन में थे। विचरण करते हुए भीम को रास्ते में उन्हें एक बूढ़ा वानर मिला। भीमसेन के देखा कि जिस रास्ते से उसे जाना है उसी रास्ते में वानर की पूंछ थी। यह देख भीम ने वानर से कहा कि वो अपनी पूंछ रास्ते से हटा ले। वानर काफी वृद्ध था तो वो खुद अपनी पूंछ नहीं हटा सकता था इस पर वृद्ध वानर ने कहा कि अब इस आयु में मैं बार-बार हिल नहीं सकता हूं। तुम इतने हट्टे-कट्टे हो तो तुम मेरी पूंछ हटाकर आगे बढ़ जाओ।
भीम ने वानर की बात सुनी और उसकी पूंछ को हटाने की काफी कोशिश की लेकिन भीम से वानर की पूंछ नहीं हिली। आखिरी में भीमसेन ने वानर को प्रणाम किया और उनसे उनका परिचय देने का विनम्र आग्रह किया। उनका आग्रह सुन वृद्ध वानर ने अपना असली रूप दिखाया। वह पवन पुत्र हनुमान थे। साथ ही हनुमान ने भीम को अपना अहंकार छोड़ने की सीख देते हैं। इस कहानी का सार है कि बल, बुद्धि और कौशल पर कभी घमंड नहीं करना चाहिए।
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