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Pauranik Kathayen: जब एक राक्षस ने पराशर ऋषि के पिता को बनाया था अपना ग्रास, पढ़ें यह कथा

Pauranik Kathayen सप्त ऋषियों में से एक महर्षि वशिष्ठ के पौत्र महान वेदज्ञ ज्योतिषाचार्य स्मृतिकार एवं ब्रह्मज्ञानी ऋषि पराशर के पिता का नाम शक्तिमुनि था। आज जो पौराणिक कथा हम आपको बता रहे हैं उसमें यह वर्णित है जब पराशर ऋषि के पिता को राक्षस ने खा लिया था।

By Shilpa SrivastavaEdited By: Published: Thu, 26 Nov 2020 09:00 AM (IST)Updated: Thu, 26 Nov 2020 09:00 AM (IST)
Pauranik Kathayen: जब एक राक्षस ने पराशर ऋषि के पिता को बनाया था अपना ग्रास, पढ़ें यह कथा

Pauranik Kathayen: सप्त ऋषियों में से एक महर्षि वशिष्ठ के पौत्र महान वेदज्ञ, ज्योतिषाचार्य, स्मृतिकार एवं ब्रह्मज्ञानी ऋषि पराशर के पिता का नाम शक्तिमुनि था। माता का नाम अद्यश्यंती था। पराशर बाष्कल और याज्ञवल्क्य के शिष्य थे। आज जो पौराणिक कथा हम आपको बता रहे हैं उसमें यह वर्णित है, जब पराशर ऋषि के पिता को राक्षस ने खा लिया था। आइए पढ़ते हैं यह कथा।

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एक बार पराशर ऋषि के पिता पूर्व दिशा से शक्ति एकायन मार्ग द्वारा आ रहे थे। वहीं, दूसरी तरफ यानी पश्चिम दिशा से राजा कल्माषपाद आ रहे थे। शक्ति एकायन मार्ग बहुत ही संकरा था। वह इतना पतला था कि उस रास्ते पर से एक बार में एक ही व्यक्ति निकल सकता था। ऐसे में दूसरी दिशा वाले व्यक्ति को हटना जरूरी था। लेकिन दोनों ही अपने मार्ग से हटना नहीं चाहते थे क्योंकि जहां राजा को राजदंड का अहंकार था। वहीं, शक्ति को अपने ऋषि होने का अहंकार था।

ऋषि, राजा से बड़ा ही होता है। ऐसे में ऋषि को लगा कि राजा हट जाएगा। लेकिन राजा नहीं हटा। बल्कि उन्होंने ऋषि शक्ति को कोड़ों से मारना शुरू कर दिया। राजा के कर्म बिल्कुल राक्षस जैसे थे। ऐसे में राजा को शक्ति ने शाप दे दिया। इस शाप के प्रभाव से राजा कल्माषपाद तक्षण ही राक्षस हो गए। जब राजा राक्षस बन गया तब उसने अपना पहला निवाला ऋषि को ही बनाया और ऐसे ऋषि शक्ति की जीवनलीला समाप्त हो गई।

जब यह बात पराशर ऋषि को पता चली तो उन्होंने राक्षसों के समूल नाश हेतु राक्षस-सत्र यज्ञ का आयोजन किया। इस यज्ञ के प्रभाव से सभी राक्षस खींचे चले आए और यज्ञ की अग्नि में भस्म हो गए। इसी बीचमहर्षि पुलस्त्य ने पराशर ऋषि के पास जाकर उनसे प्रार्थना की कि इस यज्ञ को रोक दें। साथ ही उन्हें अहिंसा का उपदेश भी दिया। वहीं, उनकी खुद के पुत्र वेदव्यास ने भी पराशर ऋषि को यज्ञ रोकने की प्रार्थना की। सभी ने उन्हें समझाया कि बिना किसी दोष के राक्षसों का संहार सही नहीं है। सभी की प्रार्थनाओं के सुनकर पराशर ऋषि ने यज्ञ रोक दिया।

डिसक्लेमर

'इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी। '  


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