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Pauranik Kathayen: तो इसलिए शिवजी को कहा जाता है नीलकंठ, पढ़ें पौराणिक कथा

Pauranik Kathayen स्वयंभू शिवशंकर को हम कई नामों से जानते हैं। इन्हें महादेव भोलेनाथ शंकर महेश रुद्र समेत कई नामों से जाना जाता है। वहीं शिव जी को नीलकंठ भी कहा जाता है।

By Shilpa SrivastavaEdited By: Published: Fri, 18 Sep 2020 10:00 AM (IST)Updated: Fri, 18 Sep 2020 12:00 PM (IST)
Pauranik Kathayen: तो इसलिए शिवजी को कहा जाता है नीलकंठ, पढ़ें पौराणिक कथा
Pauranik Kathayen: तो इसलिए शिवजी को कहा जाता है नीलकंठ, पढ़ें पौराणिक कथा

Pauranik Kathayen: स्वयंभू शिवशंकर को हम कई नामों से जानते हैं। इन्हें महादेव, भोलेनाथ, शंकर, महेश, रुद्र समेत कई नामों से जाना जाता है। वहीं, शिव जी को नीलकंठ भी कहा जाता है। लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि भोलेनाथ का नाम नीलकंठ कैसे पड़ा। इसे लेकर एक पौराणिक कथा प्रचलित है। इस लेख में हम आपको इसी पौराणिक कथा के बारे में बता रहे हैं जिसमें वर्णित है कि आखिर भगवान शिव को नीलकंठ क्यों कहा जाता है।

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पुराणों के मुताबिक, देवता और राक्षस दोनों ही अमृत पाना चाहते थे। इसके लिए ही समुद्र मंथन हुआ था। दूध के सागर (क्षीरसागर) में यह समुंद्र मंथन हुआ था। समुद्र मंथन के लिए वासुकि नाग को रस्सी बनाया गया। इसके बाद देवता और राक्षस दोनों पक्ष अमृत-प्राप्ति के लिए समुद्र मंथन करने लगे। इस मंथन में से लक्ष्मी, शंख, कौस्तुभमणि, ऐरावत, पारिजात, उच्चैःश्रवा, कामधेनु, कालकूट, रम्भा नामक अप्सरा, वारुणी मदिरा, चन्द्रमा, धन्वन्तरि, अमृत और कल्पवृक्ष ये 14 रत्न निकले थे। देवताओं ने चतुराई दिखाई और अमृत पाने में सफल हुए। लेकिन अमृत के साथ ही विष भी निकला। इसी दौरान समुद्र में से कालकूट नामक भयंकर विष निकला। इस विष की अग्नि इतनी तेज थी कि वो दसों दिशाओं को जलाने लगी। देवता और राक्षस भी उस विष की अग्नि से जलने लगे।

यह विष इतना ज्यादा खतरनाक था कि अगर इसकी एक बूंद भी संसाकर पर गिर जाती तो वह संसार को खत्म करने की शक्ति रखता था। देवता और राक्षस यह जानकर डर गए। वो इसका हल नहीं निकाल पा रहे थे। ऐसे में देवगण और राक्षस सभी शिवजी के पास पहुंच गए। शिवजी ने सभी की बात सुनी और एक हल निकाला। उन्होंने कहा कि वो पूरा विष खुद पी जाएंगे। इतने में ही शिवजी ने वो घड़ा उठाया जिसमें विष था और देखते ही देखते पूरा विष स्वयं पी गए। लेकिन यह विष उन्होंने अपने गले से नीचे नहीं उतारा। उन्होंने इसे गले में ही रखा। इससे उनका गला नीला पड़ गया और यही कारण था कि उनका नाम नीलकंठ पड़ गया। जिस समय शिवजी ने विष पिया उस समय विष की कुछ बूंदे जमीन पर गिर गईं जिसके चलते बिच्छू, सांप आदि जीवों और कुछ वनस्पतियों ने उसे ग्रहण कर लिया। इसी के चलते ये जीव विषैले हो गए।  


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