Pauranik Kathayen: कैसे हुई थी श्री विष्णु और देवी लक्ष्मी की शादी और क्यों दिया था नारदजी ने श्राप, जानें यहां
Pauranik Kathayen पौराणिक कथाओं के अनुसार एक बार लक्ष्मीजी के लिए स्वयंवर का आयोजन किया गया। लेकिन उनके मन में विष्णु जी थे जिन्हें वो पति स्वीकार कर चुकी थीं। लेकिन नारद मुनि चाहते थे कि उनका विवाह लक्ष्मी जी से हो।
Pauranik Kathayen: पौराणिक कथाओं के अनुसार, एक बार लक्ष्मीजी के लिए स्वयंवर का आयोजन किया गया। लेकिन उनके मन में विष्णु जी थे जिन्हें वो पति स्वीकार कर चुकी थीं। लेकिन नारद मुनि चाहते थे कि उनका विवाह लक्ष्मी जी से हो। फिर नारदजी ने सोचा कि यह राजकुमारी हरि रूप पाकर ही उनका वरण करेगी। तब नारदजी को एक तरकीब सूझी और वो विष्णु जी के पास मदद मांगने के लिए गए। वे सुंदर रूप चाहते थे।
जब नारदजी ने इपनी इच्छा विष्णु जी के सामने जताई तो उन्होंने उन्हें हरि रूप दे दिया। यह रूप लेकर जब वो स्वयंवर में पहुंचे तो उन्हें विश्वास था कि राजकुमारी उन्हें ही वरमाला पहनाएगी। हालांकि, ऐसा नहीं हुआ। लक्ष्मी जी ने नारद को छोड़ विष्णु जी के गले में वरमाला डाल दी। इस पर नारदजी बेहद उदास हो गए। वे लौट ही रहे थे कि रास्ते में एक जलाशय में उन्होंने अपना चेहरा देखा। वे अपना चेहरा देख हैरान रह गए। उनका चेहरा बंदर जैसा हो गया था।
कहा जाता है कि हरि का एक अर्थ वानर भी है। इसलिए विष्णु जी ने उन्हें वानर रूप दे दिया। तब उन्हें विष्णु जी का छल समझ आया। यह देख वो बेहद क्रोधित हुए। वे सीधे बैकुंठ पहुंच गए। उन्होंने क्रोध में आकर भगवान को श्राप दे दिया। उन्होंने कहा कि उन्हें मनुष्य रूप में जन्म लेकर पृथ्वी पर जाना होगा। जिस तरह उन्हें स्त्री का वियोग सहना पड़ा था ठीक उसी तरह उन्हें भी स्त्री वियोग सहना होगा। यही कारण माना जाता है कि विष्णु जी ने श्री राम का अवतार लिया था और मां लक्ष्मी ने माता सीता का अवतार लिया था और दोनों को एक-दूसरे से अलग होकर वियोग सहना पड़ा था।
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