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    Pauranik Katha: जब मोहिनी बनकर विष्णु जी ने किया था असुरों के साथ छल, पढ़ें यह पौराणिक कथा

    By Shilpa SrivastavaEdited By:
    Updated: Fri, 29 Jan 2021 10:30 AM (IST)

    Pauranik Katha देवराज इन्द्र दैत्यों के राजा बलि से युद्ध में हार गए थे। तब वह हताश होकर ब्रह्माजी के साथ लेकर श्रीहरि विष्णु के पास गए। उन्होंने विष्णु जी से प्रार्थना की कि वह उनका स्वर्गलोक वापस पाने में उनकी मदद करें।

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    Pauranik Katha: जब मोहिनी बनकर विष्णु जी ने किया था असुरों के साथ छल, पढ़ें यह पौराणिक कथा

    Pauranik Katha: देवराज इन्द्र, दैत्यों के राजा बलि से युद्ध में हार गए थे। तब वह हताश होकर ब्रह्माजी के साथ लेकर श्रीहरि विष्णु के पास गए। उन्होंने विष्णु जी से प्रार्थना की कि वह उनका स्वर्गलोक वापस पाने में उनकी मदद करें। तब श्रीहरि ने कहा कि आप सभी देवतागण दैत्यों से सुलह कर लें। उनका सहयोग लें और मदरांचल को मथानी तथा वासुकि नाग को रस्सी बनाकर क्षीरसागर का मंथन करें। इस मंथन से जो अमृत निकलेगा उसे मैं देवताओं को पिला दूंगा और उन्हें अमर कर दूंगा। इसके बाद ही देवता, दैत्यों का विनाश कर पाएंगे और दोबारा स्वर्ग पर आधिपत्य हासिल कर पाएंगे।

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    इसके बाद इंद्र ने राजा बलि से समक्ष समुद्र मंथन का प्रस्ताव रखा। उन्होंने अमृत की बात बताई। लालच में आकर दैत्य ने देवताओं का साथ देने का वचन दिया। दोनों ने ही अपनी पूरी ताकत लगाकर मदरांचल पर्वत को उठा लिया। लेकिन उसे समुद्र के पास नहीं ला जा पाए। फिर श्रीहरि ने उसे उठाकर समुद्र में रख दिया।

    इस पर्वत को मथानी और वासुकि नाग की रस्सी बनाकर मंथन का काम शुरू किया गया। इस दौरान श्रीहरि की नजर मथानी पर पड़ी। यह अंदर की तरफ धंसती जा रही थी। इसे देख उन्होंने कच्छप का रूप धारण किया और मदरांचल पर्वत को अपनी पीठ पर रख लिया।

    समुद्र मंथन से लक्ष्मी, कौस्तुभ, पारिजात, सुरा, धन्वंतरि, चंद्रमा, पुष्पक, ऐरावत, पाञ्चजन्य, शंख, रम्भा, कामधेनु, उच्चैःश्रवा और अंत में अमृत कुंभ निकले। इन्हें लेकर धन्वन्तरिजी आए। लेकिन दैत्यों ने उनके हाथ से अमृत का कलश छीन लिया और भागने लगे। वे चाहते थे कि वो देवताओं से पहले अमृत पान करें जिससे वो अमर हो सकें। ऐसे में दैत्यों के बीच अमृत कलश को लेकर झगड़ा होने लगा। यह सब देवगण देख रहे थे। वे हताश हो गए।

    इसी बीच श्रीविष्णु ने अति सुंदर नारी का रूप धारण किया। अपने मोहिनी अवतार में उन्होंने अमृत को समान रूप से बांटने का प्रस्ताव रखा। दैत्यों ने वो कलश श्रीहरि के मोहिनी रूप को दे दिया। मोहिनी ने कहा कि जैसे ही वो विभाजन का कार्य करें चाहे वह उचित हो या अनुचित, तुम लोग बीच में बाधा उत्पन्न न करने का वचन दो तभी मैं इस काम को करूंगी।

    सभी ने उनकी बात मान ली। दोनों ही पक्ष अलग-अलग पंक्ति बनाकर बैठ गए। इस तरह छल से विष्णु जी सारा अमृत देवताओं को पिला दिया।