Papankusha Ekadashi 2025: पापांकुशा एकादशी का इस विधि से करें पारण, जानें तिथि और सही नियम
पापांकुशा एकादशी (Papankusha Ekadashi 2025) को बेहद शुभ माना गया है। इस साल इसका व्रत आज यानी 3 अक्टूबर 2025 को रखा जा रहा है। कहा जाता है कि इसकी पूजा सच्चे भाव से करने से सभी कष्टों का अंत होता है। साथ ही पापों से मुक्ति भी मिलती है तो आइए यहां इससे जुड़ी प्रमुख बातों को जानते हैं।

धर्म डेस्क, नई दिल्ली। हिन्दू धर्म में पापांकुशा एकादशी का विशेष महत्व है। यह हर साल आश्विन महीने के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को मनाई जाती है। जैसा कि इसके नाम से स्पष्ट है कि यह 'पापों' का नाश करती है। कहते हैं कि इस व्रत को करने से व्यक्ति के जाने-अनजाने हुए सभी पापों का नाश होता है, बल्कि व्रती को सुख-समृद्धि और मोक्ष की प्राप्ति भी होती है, तो आइए इस आर्टिकल में पापांकुशा एकादशी (Papankusha Ekadashi 2025) का पारण नियम जानते हैं, ताकि व्रत का पूरा फल मिल सके।
पापांकुशा एकादशी 2025 शुभ मुहूर्त (Papankusha Ekadashi 2025 Paran Time)
हिंदू पंचांग के अनुसार, अभिजीत मुहूर्त सुबह 11 बजकर 46 मिनट से दोपहर 12 बजकर 34 मिनट तक रहेगा। इसके बाद अमृत काल रात 10 बजकर 56 मिनट से रात 12 बजकर 30 मिनट तक रहेगा। वहीं, व्रत का पारण 04 अक्टूबर 2025 को सुबह 06 बजकर 23 मिनट से 08 बजकर 44 के बीच किया जाएगा।
व्रत के नियम और पूजा विधि (Papankusha Ekadashi 2025 Paran Rules)
- ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करें और साफ कपड़े पहनें।
- भगवान विष्णु का पंचामृत से अभिषेक करें।
- उन्हें पीले फूल, तुलसी दल और पीली मिठाई अर्पित करें।
- धूप, दीप जलाकर आरती करें और विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ और 'ॐ नमो भगवते वासुदेवाय' मंत्र का जाप करें।
- किसी ब्राह्मण या गरीब व्यक्ति को अपनी श्रद्धा अनुसार अन्न, वस्त्र या दक्षिणा दान करें और उन्हें भोजन कराएं। सात्विक भोजन से ही व्रत का समापन करें।
- द्वादशी तिथि समाप्त होने से पहले पारण करें।
- माना जाता है कि द्वादशी तिथि समाप्त होने के बाद पारण करने से व्रत का फल नष्ट हो जाता है।
पूजन मंत्र (Papankusha Ekadashi 2025 Puja Mantra)
1. ॐ बृहस्पते अति यदर्यो अर्हाद् द्युमद्विभाति क्रतुमज्जनेषु ।
यद्दीदयच्दवस ऋतप्रजात तदस्मासु द्रविणं धेहि चित्रम्”।।
2. वृंदा,वृन्दावनी,विश्वपुजिता,विश्वपावनी |
पुष्पसारा,नंदिनी च तुलसी,कृष्णजीवनी ।।
एत नाम अष्टकं चैव स्त्रोत्र नामार्थ संयुतम |
य:पठेत तां सम्पूज्य सोभवमेघ फलं लभेत।।
3. ॐ वासुदेवाय विघ्माहे वैधयाराजाया धीमहि तन्नो धन्वन्तरी प्रचोदयात् ||
ॐ तत्पुरुषाय विद्महे अमृता कलसा हस्थाया धीमहि तन्नो धन्वन्तरी प्रचोदयात् ||
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