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    Narayan Aur Sudarshan : जानिये भगवान विष्णु के सुदर्शन चक्र का निर्माण कैसे हुआ, इसमें शिव जी का क्या योगदान है

    By Ritesh SirajEdited By:
    Updated: Thu, 15 Jul 2021 07:45 AM (IST)

    Narayan Aur Sudarshan भगवान शंकर को एक ठिठोली सुझी उन्होंने चुपचाप हजार कमलों में से एक कमल चुरा लिया। नारायण को इस बात का पता नहीं चला क्योंकि वो तो अपने प्रभु के पूजा में लीन थे। पूजा में व्यस्त नारायण ने नौ सौ निन्यानवे कमल पुष्प अर्पित किये।

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    Narayan Aur Sudarshan : जानिये भगवान विष्णु के सुदर्शन चक्र का निर्माण कैसे हुआ

    Narayan Aur Sudarshan : भगवान विष्णु और भगवान शिव एक दूसरे को अपना इष्टदेव मानते हैं। समय-समय पर दोनों एक दूसरे के इष्टदेव और भक्त बन जाते हैं। एक बार भगवान विष्णु, जिन्हें हम नारायण भी कहते हैं, उन्होंने सोचा कि क्यों न अपने इष्टदेवता और देवो के देव महादेव को प्रसन्न किया जाए। शिव को प्रसन्न करने के लिए उन्होंने एक हजार कमल पुष्प अर्पित करने का विचार बनाया। भगवान नारायण ने पूजा के सभी सामान एकत्रित करके पूजा आसन ग्रहण किया। इसके बाज उन्होंने संकल्प लेकर अनुष्ठान शुरु किया।

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    इस पूजा से भगवान नारायण भक्त और भगवान शिव भगवान की भूमिका में थे। वैसे तो शिव जी के इष्ट नारायण हैं और नारायण के इष्ट शिव जी। भगवान शंकर को एक ठिठोली सुझी, उन्होंने चुपचाप हजार कमलों में से एक कमल चुरा लिया। नारायण को इस बात का पता नहीं चला क्योंकि वो तो अपने प्रभु के पूजा में लीन थे। पूजा में व्यस्त नारायण ने नौ सौ निन्यानवे कमल पुष्प अर्पित किया। जब वो आखिरी कमल पुष्प यानी एक हजारवां पुष्प अर्पित करना चाहा, तो थाल में कोई पुष्प नहीं था।

    भगवान नारायण को लगा कि ऐसे तो पूजा अधूरी रह जाएगी। पुष्प के लिए न वे स्वयं जा सकते और न ही किसी से पुष्प लाने को कह सकते थे। शास्त्रों के अनुसार, पूजा के समय बोलने या पूजा से जाने की मनाही है। 

    भगवान नारायण चाहते तो अपने शक्ति से पुष्पों का अंबार लगा देते परंतु उस समय वे भगवान नहीं, बल्कि भक्त के रूप में थे, इसीलिए अपनी शक्ति का उपयोग पूजा में नहीं करना चाहते थे। तभी नारायण ने सोचा कि लोग मुझे कमल नयन बुलाते हैं। उन्होंने अपनी एक आंख निकालकर शिव जी को कमल पुष्प समझकर अर्पित कर दिया। 

    भगवान शिव ने नारायण का यह समर्पण देखकर भावविभोर हो गए और उनके नेत्रों से प्रेमाश्रु निकल पड़े। इस समर्पण से शिव सिर्फ मन से ही नहीं, बल्कि तन से भी पिघल गए, जो चक्र के रूप में परिणित होकर सुदर्शन चक्र बन गये। इसे भगवान नारायण हमेशा अपने दाहिने हाथ की तर्जनी में धारण करते हैं। इस तरह नारायण और शिव एक दूसरे के साथ रहते हैं।  

    डिसक्लेमर

    'इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।'