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    Narad Jayanti 2024: नारद जयंती पर करें इस स्तोत्र का पाठ, होगी दिव्य ज्ञान की प्राप्ति

    देवर्षि नारद की पूजा करने से दिव्य ज्ञान की प्राप्ति होती है। साथ ही जीवन के दुख दूर होते हैं। ऐसा कहा जाता है कि नारद जयंती (Narad Jayanti 2024) के मौके पर अगर नारद मुनि की पूजा भाव के साथ की जाए तो जीवन के सभी संकटो का नाश होता है और व्यक्ति बुद्धिमान बनता है। इस दिन श्री नारद स्तोत्र का पाठ भी परम कल्याणकारी माना गया है।

    By Vaishnavi Dwivedi Edited By: Vaishnavi Dwivedi Updated: Thu, 23 May 2024 01:37 PM (IST)
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    Narad Jayanti 2024: श्री नारद स्तोत्र का पाठ -

    धर्म डेस्क, नई दिल्ली। Narad Jayanti 2024: इस साल नारद जयंती 24 मई, 2024 को मनाई जाएगी। यह शुभ दिन देवर्षि नारद की पूजा के लिए समर्पित है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, यह तिथि नारद मुनि के जन्मदिन का प्रतीक है। उन्हें दिव्य पथिक और दिव्य दूत के नाम से भी जाना जाता है। ऐसी मान्यता है कि उनकी पूजा करने से दिव्य ज्ञान की प्राप्ति होती है। साथ ही जीवन के दुख दूर होते हैं।

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    ऐसा कहा जाता है कि इस खास मौके पर अगर देवर्षि नारद की पूजा भाव के साथ की जाए, तो जीवन के सभी संकटो का नाश होता है और व्यक्ति बुद्धिमान बनता है। इस दिन ''श्री नारद स्तोत्र'' का पाठ भी परम कल्याणकारी माना गया है।

    ।।श्रीनारदस्तोत्रम्।।

    उग्रसेन उवाच 

    कृष्ण प्रवक्ष्यामि त्वामेकं संशयं वद तं मम ॥ १॥

    योऽयं नाम महाबुद्धिर्नारदो विश्ववन्दितः ।

    कस्मादेषोऽतिचपलो वायुवद्भ्रमते जगत् ॥ २॥

    कलिप्रियश्च कस्माद्वा कस्मात्त्वय्यतिप्रितिमान् ॥ ३॥

    श्रीकृष्ण उवाच 

    सत्यं राजंस्त्वया पृष्ठमेतत्सर्वं वदामि ते ।

    दक्षेण तु पुरा शप्तो नारदो मुनिसत्तमः ॥ ४॥

    सृष्टिमार्गात्सुतान् वीक्ष्य नारदेन विचालितान् ।

    नाऽवस्थानं च लोकेषु भ्रमतस्ते भविष्यति ॥ ५॥

    पैशुन्यवक्ता च तथा द्वितियानां प्रचालनात् ।

    इति शापद्वयं प्राप्य द्विविधाऽऽत्मजचालनात् ॥ ६॥

    निराकर्तुं समर्थोऽपि मुनिर्मेने तथैव तत् ।

    एतावान् साधुवादो हि यतश्च क्षमते स्वयम् ॥ ७॥

    विनाशकालं चाऽवेक्ष्य कलिं वर्धयते यतः ।

    सत्यं च वक्ति तस्मात्स न च पापेन लिप्यते ॥ ८॥

    भ्रमतोऽपि च सर्वत्र नाऽस्य यस्मात्पृथङ्मनः ।

    ध्येयाद्भवति नैवस्याद्भ्रमदोषस्ततोऽस्य च ॥ ९॥

    यच्च प्रितिर्मयि तस्य परमा तच्छृणुष्व च ॥ १०॥

    अहं हि सर्वदा स्तौमि नारदं देवदर्शनम् ।

    महेन्द्रगदितेनैव स्तोत्रेण श‍ृणु तन्नृप ॥ ११॥

    ॥ अथ श्रीनारद स्तोत्रम् ॥

    श्रुतचारित्रयोर्जातो यस्याऽहन्ता न विद्यते ।

    अगुप्तश्रुतचारित्रं नारदं तं नमाम्यहम् ॥ १॥

    अरतिक्रोधचापल्ये भयं नैतानि यस्य च ।

    अदीर्घसूत्रं धीरं च नारदं तं नमाम्यहम् ॥ २॥

    कामाद्वा यदि वा लोभाद्वाचं यो नाऽन्यथा वदेत् ।

    उपास्यं सर्वजन्तूनां नारदं तं नमाम्यहम् ॥ ३॥

    अध्यात्मगतितत्त्वज्ञं क्षान्तं शक्तं जितेन्द्रियम् ।

    ऋजुं यथाऽर्थवक्तारं नारदं तं नमाम्यहम् ॥ ४॥

    तेजसा यशसा बुद्‍ध्या नयेन विनयेन च ।

    जन्मना तपसा वृद्धं नारदं तं नमाम्यहम् ॥ ५॥

    सुखशीलं सुखं वेषं सुभोजं स्वाचरं शुभम् ।

    सुचक्षुषं सुवाक्यञ्च नारदं तं नमाम्यहम् ॥ ६॥

    कल्याणं कुरुते गाढं पापं यस्य न विद्यते ।

    न प्रीयते परानर्थे योऽसौ तं नौमि नारदम् ॥ ७॥

    वेदस्मृतिपुराणोक्तधर्मे यो नित्यमास्थितः ।

    प्रियाप्रियविमुक्तं तं नारदं प्रणमाम्यहम् ॥ ८॥

    अशनादिष्वलिप्तं च पण्डितं नालसं द्विजम् ।

    बहुश्रुतं चित्रकथं नारदं प्रणमाम्यहम् ॥ ९॥

    नाऽर्थे क्रोधे च कामे च भूतपूर्वोऽस्य विभ्रमः ।

    येनैते नाशिता दोषा नारदं तं नमाम्यहम् ॥ १०॥

    वीतसम्मोहदोषो यो दृढभक्तिश्च श्रेयसि ।

    सुनयं सत्रपं तं च नारदं प्रणमाम्यहम् ॥ ११॥

    असक्तः सर्वसङ्गेषु यः सक्तात्मेति लक्ष्यते ।

    अदिर्घसंशयो वाग्मी नारदं तं नमाम्यहम् ॥ १२॥

    न त्यजत्यागमं किञ्चिद्यस्तपो नोपजीवति ।

    अवन्ध्यकालो यस्यात्मा तमहं नौमि नारदम् ॥ १३॥

    कृतश्रमं कृतप्रज्ञं न च तृप्तं समाधितः ।

    नित्यं यत्नात्प्रमत्तं च नारदं तं नमाम्यहम् ॥ १४॥

    न हृष्यत्यर्थलाभेन योऽलोभे न व्यथत्यपि ।

    स्थिरबुद्धिरसक्तात्मा तमहं नौमि नारदम् ॥ १५॥

    तं सर्वगुणसम्पन्नं दक्षं शुचिमकातरम् ।

    कालज्ञं च नयज्ञं च शरणं यामि नारदम् ॥ १६॥

    ॥ फलश्रुतिः ॥

    इमं स्तवं नारदस्य नित्यं राजन् पठाम्यहम् ।

    तेन मे परमां प्रीतिं करोति मुनि सत्तमः ॥ १७॥

    अन्योऽपि यः शुचिर्भूत्वा नित्यमेतां स्तुतिं जपेत् ।

    अचिरात्तस्य देवर्षिः प्रसादं कुरुते परम् ॥ १८॥

    एतान् गुणान् नारदस्य त्वमथाऽऽकर्ण्य पार्थिव ।

    जप नित्यं स्तवं पुण्यं प्रीतस्ते भविता मुनिः ॥ १९॥

    ॥ इति श्रीस्कान्दे महापुराणे प्रथमे माहेश्वरखण्डे नारद

    माहात्म्यवर्णने श्रीकृष्णकृत श्रीनारदस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥

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