Nag Stotra: महादेव की पूजा के समय करें नाग स्तोत्र का पाठ, पितृ दोष से मिलेगी मुक्ति
धार्मिक मत है कि भगवान शिव के शरणागत रहने वाले साधक को जीवन में व्याप्त सभी प्रकार की परेशानियों से निजात मिलती है। ज्योतिष भी कुंडली में अशुभ ग्रहों के प्रभाव को समाप्त करने के लिए भगवान शिव (Nag Stotra Benefits) की पूजा करने की सलाह देते हैं। इसके लिए साधक हर सोमवार पर विधि-विधान से भगवान शिव की पूजा करते हैं। इस समय महादेव का जलाभिषेक करते हैं।

धर्म डेस्क, नई दिल्ली। सोमवार का दिन भगवान शिव को समर्पित होता है। इस दिन भगवान शिव संग मां पार्वती की पूजा की जाती है। साथ ही सोमवार का व्रत रखा जाता है। सोमवार के दिन भगवान शिव की पूजा करने से साधक की हर मनोकामना पूरी होती है। साथ ही सुख और सौभाग्य में वृद्धि होती है।
शास्त्रों में निहित है कि भगवान शिव जलाभिषेक से शीघ्र प्रसन्न होते हैं। उनकी कृपा साधक पर बरसती है। भगवान शिव की कृपा से कुंडली में व्याप्त सभी अशुभ ग्रहों का प्रभाव समाप्त हो जाता है। अगर आप भी पितृ या कालसर्प दोष से निजात पाना चाहते हैं, तो सोमवार पर पूजा के समय नाग स्तोत्र का पाठ करें। इस स्तोत्र के पाठ से पितृ दोष से मुक्ति मिलती है।
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कैसे करें अभिषेक
सोमवार के दिन भगवान शिव का जलाभिषेक किया जाता है। साधक सामान्य जल, गंगाजल, घी, दूध और पंचामृत से भगवान शिव का अभिषेक कर सकते हैं। इसके अलावा, गंगाजल में शहद मिलाकर भगवान शिव का अभिषेक कर सकते हैं। वहीं, अभिषेक करने के समय नाग स्तोत्र का पाठ करें । भगवान शिव की पूजा करने से कुंडली में शुक्र ग्रह मजबूत होता है। साथ ही चंद्र देव की कृपा साधक पर बरसती है।
॥ नाग स्तोत्रम् ॥
ब्रह्म लोके च ये सर्पाःशेषनागाः पुरोगमाः।
नमोऽस्तु तेभ्यः सुप्रीताःप्रसन्नाः सन्तु मे सदा॥
विष्णु लोके च ये सर्पाःवासुकि प्रमुखाश्चये।
नमोऽस्तु तेभ्यः सुप्रीताःप्रसन्नाः सन्तु मे सदा॥
रुद्र लोके च ये सर्पाःतक्षकः प्रमुखास्तथा।
नमोऽस्तु तेभ्यः सुप्रीताःप्रसन्नाः सन्तु मे सदा॥
खाण्डवस्य तथा दाहेस्वर्गन्च ये च समाश्रिताः।
नमोऽस्तु तेभ्यः सुप्रीताःप्रसन्नाः सन्तु मे सदा॥
सर्प सत्रे च ये सर्पाःअस्थिकेनाभि रक्षिताः।
नमोऽस्तु तेभ्यः सुप्रीताःप्रसन्नाः सन्तु मे सदा॥
प्रलये चैव ये सर्पाःकार्कोट प्रमुखाश्चये।
नमोऽस्तु तेभ्यः सुप्रीताःप्रसन्नाः सन्तु मे सदा॥
धर्म लोके च ये सर्पाःवैतरण्यां समाश्रिताः।
नमोऽस्तु तेभ्यः सुप्रीताःप्रसन्नाः सन्तु मे सदा॥
ये सर्पाः पर्वत येषुधारि सन्धिषु संस्थिताः।
नमोऽस्तु तेभ्यः सुप्रीताःप्रसन्नाः सन्तु मे सदा॥
ग्रामे वा यदि वारण्येये सर्पाः प्रचरन्ति च।
नमोऽस्तु तेभ्यः सुप्रीताःप्रसन्नाः सन्तु मे सदा॥
पृथिव्याम् चैव ये सर्पाःये सर्पाः बिल संस्थिताः।
नमोऽस्तु तेभ्यः सुप्रीताःप्रसन्नाः सन्तु मे सदा॥
रसातले च ये सर्पाःअनन्तादि महाबलाः।
नमोऽस्तु तेभ्यः सुप्रीताःप्रसन्नाः सन्तु मे सदा॥
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अस्वीकरण: इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया यहां इस लेख फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित की गई हैं। पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया अंधविश्वास के खिलाफ है।
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