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    Mohini Ekadashi 2021: कैसे पड़ा मोहिनी एकादशी व्रत का नाम? भगवान राम ने भी रखा था यह व्रत

    By Kartikey TiwariEdited By:
    Updated: Sun, 23 May 2021 06:16 AM (IST)

    Mohini Ekadashi 2021 वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को मोहिनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। त्रेतायुग में भगवान श्रीराम ने भी मोहिनी एकादशी का व्रत किया था। आइए जानते हैं कि वैशाख शुक्ल एकादशी का मोहिनी एकादशी नाम कैसे पड़ा? पढ़ें इसकी कथा।

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    Mohini Ekadashi 2021: कैसे पड़ा मोहिनी एकादशी व्रत का नाम? भगवान राम ने भी रखा था यह व्रत

    Mohini Ekadashi 2021: वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को मोहिनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। इस वर्ष मोहिनी एकादशी आज 23 मई दिन रविवार को है। मोहिनी एकादशी का व्रत करने से व्यक्ति के सभी कष्ट और पाप मिट जाते हैं। त्रेतायुग में भगवान श्रीराम ने भी मोहिनी एकादशी का व्रत किया था। आइए जानते हैं कि वैशाख शुक्ल एकादशी का मोहिनी एकादशी नाम कैसे पड़ा? पढ़ें इसकी कथा।

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    मोहिनी एकादशी कथा

    पौराणिक कथा के अनुसार, जब समुद्र मंथन हो रहा था तो उसके अंत में अृमत कलश निकला था। देवों के वैद्य धन्वंतरी अमृत कलश लेकर प्रकट हुए थे। उस अमृत कलश को असुर लेकर भागने लगे। उसे पहले पाने के लिए आपस में ही लड़ने लगे। देवता गण इस दृश्य को देखकर चिंता में पड़ गए कि यह अमृत कलश नष्ट न हो जाए और असुर सबसे पहले इसे ग्रहण करके अमरता न प्राप्त कर लें।

    यह सब घटनाक्रम भगवान विष्णु भी देख रहे थे। तब उन्होंने उस अमृत कलश की सुरक्षा के लिए मोहिनी रूप धारण किया और असुर के समक्ष गए। उनके मोहिनी रूप को देखकर सभी असुर उन पर मोहित हो गए। अब अमृत के लिए लड़ाई बंद हो गई थी। तब मोहिनी रूप धारण किए विष्णु जी ने उनसे कलश ले लिया।

    इसके बाद उन्होंने असुरों और देवताओं से कहा कि वे अलग-अलग पंक्ति में बैठ जाएं। वे सबको समान मात्रा में अमृत वितरित कर देंगे। भगवान विष्णु के मोहिनी स्वरूप से मोहित असुर एक पंक्ति में बैठ गए। देवता गण दूसरी पंक्ति में ​थे। भगवान विष्णु देवताओं को अमृतपान कराने लगे। तभी असुरों में एक राहु नाम का असुर था, जिसे लगा कि देवता सारा अमृत पी जाएंगे और असुर अमृत से वंचित हो जाएंगे।

    उसने देवता का रूप धारण किया और देव गण की पंक्ति में शामिल हो गया। उसको भगवान विष्णु अमृतपान करा रहे थे, तभी उसका वास्तविक रुप सामने आ गया। तब उन्होंने अपने चक्र से उसका गला काट दिया। अमृतपान के प्रभाव से उस असुर के सिर और धड़ राहु-केतु बन गए। भगवान विष्णु के मोहिनी स्वरुप के कारण ही अृमत कलश की सुरक्षा हुई और देव गण अमृतपान कर पाएं।

    जिस दिन भगवान विष्णु ने मोहिनी स्वरुप धारण किया, उस दिन वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि थी। इस वजह से वैशाख शुक्ल एकादशी का नाम मोहिनी एकादशी पड़ गया। एकादशी के दिन भगवान विष्णु की विधिपूर्वक पूजा की जाती है।

    डिसक्लेमर

    'इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।'