जाने कौन हैं सूर्य देव की संताने, सब एक से बढ़ कर एक
सूर्य देव की 10 अदभुद संतानें हैं, जिसमें से यमराज और शनिदेव जैसे पुत्र और यमुना जैसी बेटियां शामिल हैं। मनु स्मृति के रचयिता वैवस्वत मनु भी सूर्यपुत्र ही हैं।
मृत्यु के देव यम
धर्मराज या यमराज सूर्य के सबसे बड़े पुत्र हैं और वे मृत्यु के देवता कहलाते हैं। मनुष्य के कर्मों के अनुसार उनकी मृत्यु और दंड को निर्धारित करने का अधिकार यम के पास ही है।
यमी
यमी यानि यमुना नदी सूर्य की दूसरी संतान और ज्येष्ठ पुत्री हैं जो अपनी माता संज्ञा को सूर्यदेव से मिले आशीर्वाद चलते पृथ्वी पर नदी के रूप में प्रसिद्ध हुईं।
वैवस्वत मनु
सूर्य और उनकी पहली पत्नी संज्ञा की तीसरी संतान हैं वैवस्वत मनु वर्तमान (सातवें) मन्वन्तर के अधिपति हैं। यानि जो प्रलय के बाद संसार के पुनर्निर्माण करने वाले प्रथम पुरुष बने और जिन्होंने मनु स्मृति की रचना की।
शनि देव
सूर्य और उनकी दूसरी पत्नी छाया की प्रथम संतान है शनिदेव जिन्हें कर्मफल दाता और न्यायधिकारी भी कहा जाता है। अपने जन्म से शनि अपने पिता से शत्रु भाव रखते थे। भगवान शंकर के वरदान से वे नवग्रहों में सर्वश्रेष्ठ स्थान पर नियुक्त हुए और मानव तो क्या देवता भी उनके नाम से भयभीत रहते हैं।
विष्टि या भद्रा
सूर्य पुत्री विष्टि भद्रा नाम से नक्षत्र लोक में प्रविष्ट हुई। भद्रा काले वर्ण, लंबे केश, बड़े-बड़े दांत तथा भयंकर रूप वाली कन्या है। भद्रा गधे के मुख और लंबे पूंछ और तीन पैरयुक्त उत्पन्न हुई। शनि की तरह ही इसका स्वभाव भी कड़क बताया गया है। उनके स्वभाव को नियंत्रित करने के लिए ही भगवान ब्रह्मा ने उन्हें काल गणना या पंचांग के एक प्रमुख अंग विष्टि करण में स्थान दिया है।
सावर्णि मनु
सूर्य और छाया की चौथी संतान हैं सावर्णि मनु। वैवस्वत मनु की ही तरह वे इस मन्वन्तर के पश्चात अगले यानि आठवें मन्वन्तर के अधिपति होंगे।
अश्विनी कुमार
प्रथम पत्नी संज्ञा से घोड़ी के रूप में संयोग से सूर्य के पुत्रों के रूप में जुड़वां अश्विनी कुमारों की उत्पत्ति हुई जो देवताओं के वैद्य हैं। कहते हैं कि दधीचि से मधु-विद्या सीखने के लिये उनके धड़ पर घोड़े का सिर रख दिया गया था, और तब उनसे मधुविद्या सीखी थी। अत्यंत रूपवान माने जाने वाले अश्विनी कुमार नासत्य और दस्त्र के नाम से भी प्रसिद्ध हुए।
रेवंत
सूर्य की सबसे छोटी और संज्ञा की छठी संतान हैं रेवंत जो उनके पुनर्मिलन के बाद जन्मी थी। रेवंत सूर्य रथ के सारथी के रूप में निरन्तर भगवान सूर्य की सेवा में रहते हैं।