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    Masik Shivratri 2025: मासिक शिवरात्रि आज, इस खास विधि से करें पूजा और लगाएं ये दिव्य भोग

    Updated: Tue, 18 Nov 2025 07:00 AM (IST)

    मासिक शिवरात्रि भगवान शिव को समर्पित एक पवित्र व्रत है, जो हर महीने कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को मनाया जाता है। अगहन माह की मासिक शिवरात्रि विशेष महत्वपूर्ण मानी जाती है। इस दिन व्रत रखने से कुंवारी कन्याओं को मनचाहा वर और विवाहित महिलाओं को अखंड सौभाग्य मिलता है। आइए इस दिन से जुड़ी प्रमुख बातों को जानते हैं, जो इस प्रकार हैं।

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    Masik Shivratri 2025: मासिक शिवरात्रि पूजा विधि।

    धर्म डेस्क, नई दिल्ली। सनातन धर्म में मासिक शिवरात्रि का व्रत बेहद पावन माना गया है। यह भगवान शिव को समर्पित है। यह पर्व हर महीने के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाया जाता है। अगहन माह में पड़ने वाली मासिक शिवरात्रि का विशेष महत्व है, क्योंकि यह भगवान शिव को प्रसन्न कर उनकी कृपा पाने का एक बेहद शुभ अवसर (Masik Shivratri 2025) होता है, तो आइए इससे जुड़ी प्रमुख बातों को जानते हैं।

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    puja rituals

    • भगवान शिव के प्रिय भोग - सफेद मिठाई और खीर।
    • भगवान शिव के प्रिय फूल - आक के फूल।

    मासिक शिवरात्रि का महत्व (Masik Shivratri 2025 Significance)

    सनातन धर्म में मासिक शिवरात्रि पर भगवान शिव की पूजा होती है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन व्रत रखने से कुवांरी कन्याओं को मनचाहा वर और विवाहित महिलाओं को अखंड सौभाग्य का वरदान मिलता है। मान्यता है कि इस दिन शिव-पार्वती की एक साथ पूजा करने से जीवन के सभी दुख और बाधाएं दूर होती हैं।

    मासिक शिवरात्रि पूजा विधि ( Masik Shivratri 2025 Puja Vidhi)

    • सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठें और स्नान करें।
    • साफ कपड़े पहनें।
    • हाथ में जल लेकर व्रत का संकल्प लें।
    • शिवलिंग का सबसे पहले जल और फिर पंचामृत से अभिषेक करें।
    • भगवान शिव को बिल्व पत्र, धतूरा, भांग, शमी के पत्ते, सफेद चंदन, अक्षत, और सफेद फूल चढ़ाएं।
    • माता पार्वती को सुहाग की सामग्री, लाल वस्त्र और फूल चढ़ाएं।
    • शिव जी के वैदिक मंत्रों का जप करें।
    • शिवरात्रि व्रत कथा का पाठ करें या सुनें।
    • निशिता काल के समय में भी पूजा जरूर करें और अगले दिन सुबह व्रत का पारण करें।

    भगवान शिव पूजन मंत्र (Masik Shivratri 2025 Pujan Mantra)

    • ॐ नमः शिवाय ॥
    • शिव गायत्री मंत्र: ॐ तत्पुरुषाय विद्महे, महादेवाय धीमहि, तन्नो रुद्रः प्रचोदयात् ॥
    • ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्। उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् ॥

    अस्वीकरण: इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया यहां इस लेख फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित की गई हैं। पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया अंधविश्वास के खिलाफ है।