Masik Shivratri 2025: मासिक शिवरात्रि आज, जानें शिव जी की पूजा विधि, भोग, मंत्र और प्रिय पुष्प
मासिक शिवरात्रि का व्रत प्रत्येक महीने कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को रखा जाता है। इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा की जाती है। मान्यता है कि इस दिन व्रत रखने से भगवान शिव का आशीर्वाद मिलता है और विवाह संबंधी बाधाएं दूर होती हैं। इस बार यह व्रत 25 मई यानी आज रखा जा रहा है।

धर्म डेस्क, नई दिल्ली। मासिक शिवरात्रि का व्रत बहुत शुभ माना जाता है। यह पर्व प्रत्येक महीने कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को आता है। इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा का विधान है। इस दिन कठिन व्रत का पालन करने से भोलेनाथ का आशीर्वाद मिलता है। इसके साथ ही विवाह से जुड़ी सभी बाधाएं दूर होती हैं।
हिंदू पंचांग के अनुसार, इस बार यह व्रत (Masik Shivratri 2025) आज यानी 25 मई को रखा जा रहा है, तो आइए इससे जुड़ी प्रमुख बातों को जानते हैं, जो इस प्रकार हैं।
मासिक शिवरात्रि की पूजा विधि (Masik Shivratri 2025 Puja Vidhi)
- इस दिन सुबह जल्दी उठें और स्नान करें।
- लाल या पीले रंग के वस्त्र धारण करें।
- पूजा शुरू करने से पहले भगवान शिव के समक्ष व्रत का संकल्प लें।
- सबसे पहले भगवान शिव का अभिषेक करें।
- इसके बाद उन्हें सफेद वस्त्र, चंदन का लेप, बेलपत्र, धतूरा, आक के फूल, कनेर के फूल, शमी पत्र और भांग चढ़ाएं।
- फिर भगवान शिव को दूध से बनी मिठाई, और मौसमी फल का भोग लगाएं।
- धूप और दीपक जलाएं।
- भोलेनाथ के वैदिक मंत्रो का जाप करें।
- मासिक शिवरात्रि की व्रत कथा का पाठ करें या सुनें।
- अंत में शिव चालीसा का पाठ करें और शिव आरती करें।
- पूजा में हुई गलतियों के लिए माफी मांगे।
- मनोकामना पूर्ति के लिए किसी मंदिर जाकर नंदी जी के कान में बोलें।
भगवान शिव के प्रिय पुष्प (Lord Shiva Favorite Flower)
- सफेद आक के फूल, कनेर के फूल और शमी के फूल भगवान शिव को बेहद प्रिय हैं।
भगवान शिव के भोग (Lord Shiva Bhog)
मासिक शिवरात्रि के शुभ अवसर पर भगवान शंकर को घर पर बनी खीर, ठंडई, ऋतु फल और दूध से बनी मिठाई का भोग लगाएं। ऐसा करने से सभी मनोकामनाओं की पूर्ति होती है। इसके साथ घर में कभी धन-धान्य की कमी नहीं रहती है।
मासिक शिवरात्रि पूजा मंत्र ( Masik Shivratri 2025 Puja Mantra)
- ॐ नमः शिवाय
- ॐ नमो नीलकण्ठाय
- ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्।
- उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्॥
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