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    Masik Durgashtami 2025: मां दुर्गा की कृपा के लिए मासिक दुर्गा अष्टमी पर करें ये काम, होगा कल्याण

    Updated: Thu, 03 Jul 2025 08:44 AM (IST)

    मासिक दुर्गाष्टमी (Masik Durgashtami 2025) हर महीने की अष्टमी तिथि को मनाई जाती है जो देवी दुर्गा को समर्पित है। इस बार यह पर्व 03 जुलाई यानी आज मनाया जा रहा है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन व्रत और पूजा करने से माता रानी की कृपा मिलती है। इस दिन सिद्धकुञ्जिकास्तोत्र का पाठ करना भी कल्याणकारी माना गया है।

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    Masik Durgashtami 2025 Date: सिद्धकुञ्जिकास्तोत्र का पाठ।

    धर्म डेस्क, नई दिल्ली। मासिक दुर्गा अष्टमी हर महीने की अष्टमी तिथि को मनाई जाती है। यह दिन देवी दुर्गा को समर्पित है। कहा जाता है कि यह तिथि माता रानी की शक्ति, कृपा और आशीर्वाद पाने के लिए खास माना जाता है। हिंदू पंचांग के अनुसार, इस बार यह पर्व गुरुवार 03 जुलाई यानी आज के दिन मनाया जा रहा है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन (Masik Durgashtami 2025) व्रत और पूजा-अर्चना करने से माता रानी की खास कृपा मिलती है। वहीं, इस दिन ''सिद्धकुञ्जिकास्तोत्र'' का पाठ परम कल्याणकारी माना गया है।

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    कहते हैं कि इस पवित्र स्तोत्र के पाठ से श्री दुर्गा सप्तशती पाठ के बराबर फल मिलता है। ऐसे में इस दिन मां के सामने एक घी का दीपक जलाएं। उन्हें लौंग, गुड़हल के फूल और हलवा-पूरी अर्पित करें। इससे माता रानी की विशेष कृपा मिलती है, तो आइए पढ़ते हैं।

    ॥सिद्धकुञ्जिकास्तोत्रम्॥

    ॥शिव उवाच॥

    शृणु देवि प्रवक्ष्यामि, कुञ्जिकास्तोत्रमुत्तमम्।

    येन मन्त्रप्रभावेण चण्डीजापः शुभो भवेत॥१॥

    न कवचं नार्गलास्तोत्रं कीलकं न रहस्यकम्।

    न सूक्तं नापि ध्यानं च न न्यासो न च वार्चनम्॥२॥

    कुञ्जिकापाठमात्रेण दुर्गापाठफलं लभेत्।

    अति गुह्यतरं देवि देवानामपि दुर्लभम्॥३॥

    गोपनीयं प्रयत्नेन स्वयोनिरिव पार्वति।

    मारणं मोहनं वश्यं स्तम्भनोच्चाटनादिकम्।

    पाठमात्रेण संसिद्ध्येत् कुञ्जिकास्तोत्रमुत्तमम्॥४॥

    ॥अथ मन्त्रः॥

    ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे। ॐ ग्लौ हुं क्लीं जूं स:

    ज्वालय ज्वालय ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल

    ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ज्वल हं सं लं क्षं फट् स्वाहा।''

    ॥इति मन्त्रः॥

    नमस्ते रूद्ररूपिण्यै नमस्ते मधुमर्दिनि।

    नमः कैटभहारिण्यै नमस्ते महिषार्दिनि॥१॥

    नमस्ते शुम्भहन्त्र्यै च निशुम्भासुरघातिनि॥२॥

    जाग्रतं हि महादेवि जपं सिद्धं कुरूष्व मे।

    ऐंकारी सृष्टिरूपायै ह्रींकारी प्रतिपालिका॥३॥

    क्लींकारी कामरूपिण्यै बीजरूपे नमोऽस्तु ते।

    चामुण्डा चण्डघाती च यैकारी वरदायिनी॥४॥

    विच्चे चाभयदा नित्यं नमस्ते मन्त्ररूपिणि॥५॥

    धां धीं धूं धूर्जटेः पत्नी वां वीं वूं वागधीश्वरी।

    क्रां क्रीं क्रूं कालिका देवि शां शीं शूं मे शुभं कुरु॥६॥

    हुं हुं हुंकाररूपिण्यै जं जं जं जम्भनादिनी।

    भ्रां भ्रीं भ्रूं भैरवी भद्रे भवान्यै ते नमो नमः॥७॥

    अं कं चं टं तं पं यं शं वीं दुं ऐं वीं हं क्षं

    धिजाग्रं धिजाग्रं त्रोटय त्रोटय दीप्तं कुरु कुरु स्वाहा॥

    पां पीं पूं पार्वती पूर्णा खां खीं खूं खेचरी तथा॥८॥

    सां सीं सूं सप्तशती देव्या मन्त्रसिद्धिं कुरुष्व मे॥

    इदं तु कुञ्जिकास्तोत्रं मन्त्रजागर्तिहेतवे।

    अभक्ते नैव दातव्यं गोपितं रक्ष पार्वति॥

    यस्तु कुञ्जिकाया देवि हीनां सप्तशतीं पठेत्।

    न तस्य जायते सिद्धिररण्ये रोदनं यथा॥

    इति श्रीरुद्रयामले गौरीतन्त्रे शिवपार्वतीसंवादे कुञ्जिकास्तोत्रं सम्पूर्णम्।

    ॥ॐ तत्सत्॥ 


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    अस्वीकरण: इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया यहां इस लेख फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित की गई हैं। पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया अंधविश्वास के खिलाफ है।