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    महामारकेश क्‍या है, कुण्डली में मृत्युकारक ग्रहों की कैसे करें पहचान

    आठवाँ व बारहवाँ भाव मृत्यु और शारीरिक क्षय को प्रकट करता है। लग्न व लग्नेश आयु को दर्शाता है, इसकी नेष्ट स्थिति भी आयु के लिए घातक होती है। यहाँ पर एक और बात का ध्यान रखना उपयुक्त होगा। राहु व शनि जिस भाव व राशि में बैठा होता है,

    By Preeti jhaEdited By: Updated: Wed, 16 Mar 2016 09:52 AM (IST)

    आठवाँ व बारहवाँ भाव मृत्यु और शारीरिक क्षय को प्रकट करता है। लग्न व लग्नेश आयु को दर्शाता है, इसकी नेष्ट स्थिति भी आयु के लिए घातक होती है। यहाँ पर एक और बात का ध्यान रखना उपयुक्त होगा। राहु व शनि जिस भाव व राशि में बैठा होता है, उसका स्वामी भी उनका प्रभाव लिए होता है। वह जिस भाव में बैठा होगा या जिस भाव पर वह अपनी दृष्टि डालेगा, उस पर राहु व शनि प्रभाव भी अवश्य आएगा। राहु मृत्युकारक ग्रह है तो शनि पृथकताकारक। यह स्थिति भी मृत्युकारक होगी या उस अंग को पृथक करेगा। कभी-कभी यह बात ध्यान में नहीं रखने के कारण फलादेश गलत हो जाता है। गोचर ग्रहों के साथ-साथ महादशा व अंतर्दशा से भी फलादेश का मेल खाना अत्यंत आवश्यक होता है। जातक की जन्म कुंडली से उसके किसी भी रिश्तेदार के रोग व उसकी मृत्यु का पता लगाया जा सकता है।

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    मान लीजिए कि कर्क लग्न है, जिसका स्वामी चंद्र है जो जल व मन का प्रतिनिधित्व करता है। यह पाँचवें भाव में अवस्थित है। एकादश भाव बड़े भाई या बड़ी बहन का है। इसका स्वामी निश्चित तौर पर बड़ी बहन को दर्शाएगा स्त्री ग्रह होने के कारण। शनि भाग्य भाव में बैठकर तीसरी दृष्टि से इस भाव को देख रहा है। वह स्नायु का प्रतिनिधित्व करता है। स्पष्ट है कि जातक की बड़ी बहन स्नायु से संबंधित रोग से ग्रस्त होगी। अब यदि ग्यारहवें भाव को लग्न मानें तो इससे छठवाँ भाव आठवाँ होगा जो बहन की मृत्यु का भाव है। इसे भी शनि दसवीं दृष्टि से देख रहा है। यही नहीं यहाँ पर केतु भी बैठा हुआ है, जो इस रोग को बढ़ा रहा है। बहन का लग्नेश शुक्र उसी के लग्न से बारहवाँ होकर राहु के साथ बैठा हुआ है। राहु भी शनिवत होता है और स्नायु का प्रतिनिधित्व करता है। स्पष्ट है कि ग्रहों की सारी स्थितियाँ इस जन्म कुंडली में उसकी बहन का स्नायविक रोग और उससे उसकी मृत्यु को दर्शाता है। इसी भाँति प्रत्येक कुंडली का विश्लेषण करके उसके रोग व उसकी मृत्यु को जान सकते हैं। रोग की परिभाषा के अनुसार तत्संबंधी भावों, उनके स्वामियों, लग्न व लग्नेश स्थिति और उस पर पापी ग्रहों की युति व उनकी दृष्टियों से उस रोग व उससे जातक की मृत्यु को जाना जा सकता है।

    किसी भी व्यक्ति की कुण्डली के बारह भावों में बारह राशियों सहित नौ ग्रह विद्यमान होते हैं। सात मुख्य ग्रहों के साथ ही दो छाया ग्रहों, राहु व केतु की व्यक्ति के जीवन में महती भूमिका होती है। अलग-अलग राशि तथा लग्न के जातकों के लिए कारक व मारक ग्रह भी अलग-अलग अपनी-अपनी स्थिति के अनुसार होते हैं।यहां पर हम केवल किसी जातक की जन्म कुण्डली में किस समय कौन सा ग्रह मारक बनेगा, इसके बारे में बताएंगे।

    ज्योतिष शास्त्र में मारक व मारकेश की खूब चर्चा होती है। सामान्यजन के लिए ये एक भारी चिंता का विषय भी बन जाता है कि कहीं उनकी कुण्डली में कोई खास ग्रह मारक तो नहीं? वस्तुतः प्रत्येक जातक की कुण्डली में स्वयं उसके लिए द्वितीयेश तथा सप्तमेश हमेशा मारक का कार्य करते हैं। हालांकि द्वितीयेश तथा सप्तमेश स्वयं में धनेश तथा विवाह के स्वामी भी होते हैं। किंतु यही ग्रह जब शुभ केंद्रेश होकर त्रिशडायेश स्थानों में अथवा छठे, आठवें या बारहवें स्थान पर बैठे हों तो महान पापी होकर मृत्यु कारक बन जाते हैं। वहीं चन्द्रमा, बुध, अथवा सूर्य में सप्तमेश या द्वितीयेश होने के बावजूद भी मारकत्व की क्षमता कम होती है। ऐसे में आम जातक के मन में ये सवाल जरूर उठेगा कि ये क्या बात हुई कि नैसर्गिक शुभ ग्रहों में मारकत्व की अधिक क्षमता जबकि नैसर्गिक पापी व क्रूर ग्रहों में मारकत्व की कम क्षमता होती है? वस्तुतः यहां पाराशरी का सामान्य सिद्धांत कार्य करता है, जिसकी पुष्टि वृहत पाराशर होरा शास्त्र सहित स्वयं कालामृतकार भी करते हैं।

    किसी भी नैसर्गिक शुभ ग्रह (शुक्र, गुरु, सूर्य से दूर बुध, प्रबल चन्द्र) का केंद्र (1, 4, 7, 10वां भाव) में होना उसे महान दोषी बना देता है। इसके उलट नैसर्गिक पापी यानि क्षीण चन्द्र, सूर्य से करीब बुध, राहु, केतु, मंगल व शनि ग्रह जब केन्द्र में होते हैं तो उन पर केन्द्राधिपत्य दोष नहीं आरोपित होता है। ऐसे में जब सप्तमेश अथवा द्वितीयेश ग्रहों की दशा-अंतर्दशा चल रही हो साथ ही उन पर अशुभ, क्रूर ग्रहों की दृष्टि या युति हो और ये ग्रह पाप मध्यत्व धारण किए हुए हों तब जातक की मृत्यु निश्चित हो जाती है।

    किंतु यदि उतने ही या उससे कुछ शुभ ग्रहों की दृष्टि भी ऐसे सप्तमेश-द्वितीयेश पर हो तो जातक की मृत्यु की बजाय उसे शारीरिक-मानसिक कष्ट की स्थिति से गुजरना होता है।

    इसके अलावा जातक की मृत्यु कब होगी, इसके निर्धारण में ये भी ध्यान में रखना चाहिए कि वह अल्पायु, मध्यायु अथवा दीर्घायु में से किस श्रेणी में शामिल है।

    यदि कोई जातक लग्न, सूर्य लग्न तथा चन्द्र लग्न से दीर्घायु श्रेणी में आता है तो ऐसे में केन्द्राधिपत्य दोष से पीड़ित शुक्र व गुरु भी उसके प्राण नहीं हर सकते। हां, इतना अवश्य है कि इस तरह की दशा-अंतर्दशा के दौरान जातक को बड़ी शारीरिक क्षति उठानी पड़ सकती है।

    सामान्य मान्यता के विपरीत यहां आपने देखा कि नैसर्गिक शुभ ग्रह तो प्रबल मारकेश की स्थिति पैदा करने में सक्षम हैं, जबकि वहीं क्रूर व पापी ग्रहों में मारकेशत्व की क्षमता कम होती है। जबकि कथित ज्योतिर्विदों ने राहु, केतु, मंगल तथा शनि को प्रबल मारकेश बताते हुए जनता को हमेशा ही ठगने का काम किया है।

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