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    Mangal Dosh Ke Upay: मंगल दोष बढ़ा रहा है आपकी मुश्किलें, तो ये मंत्र दिला सकते हैं मुक्ति

    Updated: Fri, 16 Aug 2024 06:41 PM (IST)

    ज्योतिष शास्त्र में मंगल ग्रह को शक्ति ऊर्जा साहस और पराक्रम का कारक माना जाता है। ऐसे में यदि कुंडली में मंगल ग्रह मजबूत हो तो इससे व्यक्ति को कई लाभ मिलते हैं। लेकिन वहीं इसकी स्थिति कमजोर होने पर जीवन में कई तरह की समस्याएं बढ़ जाती हैं। ऐसे में आप अन्य उपायों के साथ-साथ इन मंत्रों का जाप करके भी मंगल दोष से राहत पा सकते हैं।

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    Mangal Dosh Ke Upay मंगल दोष से मुक्ति के उपाय।

    धर्म डेस्क, नई दिल्ली। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, किसी जातक के कुंडली के प्रथम, द्वितीय, चतुर्थ, सप्तम, अष्टम और द्वादश भाव में मंगल ग्रह होने पर मंगल दोष लगता है। मंगल का स्वभाव क्रोधी माना गया है। जब किसी व्यक्ति की कुंडली में मंगल की स्थिति कमजोर होती है, तो व्यक्ति का विवाह होने में समस्याएं उत्पन्न होती हैं। साथ ही इससे वैवाहिक जीवन में भी परेशानियां बनी रहती हैं। ऐसे में आप प्रितिदिन या फिर मंगलावर के दिन इन मंत्रों के जाप कर सकते हैं।

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    करें ये उपाय

    मंगलवार के दिन लाल रंग की चीजें जैसे मसूर दाल, लाल रंग की मिठाई और लाल रंग का वस्त्रों का दान करना चाहिए। इसके साथ ही हर मंगलवार के दिन हनुमान जी की पूजा जरूर करें और हनुमान चालीसा का पाठ करें। पूजा के दौरान बजरंगबली को सिंदूर भी अर्पित करें। इसके साथ ही मांगलिक जातकों को मंगलवार के दिन अशोक का पेड़ लगाना चाहिए। इन उपायों द्वारा मंगल दोष को दूर किया जा सकता है।

    करें इन मंत्रों का जाप

    मंगल के लिए वैदिक मंत्र

    "ॐ अग्निमूर्धादिव: ककुत्पति: पृथिव्यअयम। अपा रेता सिजिन्नवति ।"

    मंगल के लिए तांत्रोक्त मंत्र

    "ॐ हां हंस: खं ख:"

    "ॐ हूं श्रीं मंगलाय नम:"

    "ॐ क्रां क्रीं क्रौं स: भौमाय नम:"

    मंगल का नाम मंत्र

    "ॐ अं अंगारकाय नम:"

    "ॐ भौं भौमाय नम:"

    मंगल गायत्री मंत्र

    "ॐ क्षिति पुत्राय विदमहे लोहितांगाय धीमहि-तन्नो भौम: प्रचोदयात"

    महामृत्युंजय मंत्र

    ॐ हौं जूं सः ॐ भूर्भुवः स्वः

    ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्

    उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्

    ॐ स्वः भुवः भूः ॐ सः जूं हौं ॐ।

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    श्री अंगारक स्तोत्रम्

    अंगारकः शक्तिधरो लोहितांगो धरासुतः।

    कुमारो मंगलो भौमो महाकायो धनप्रदः ॥

    ऋणहर्ता दृष्टिकर्ता रोगकृत् रोगनाशनः।

    विद्युत्प्रभो व्रणकरः कामदो धनहृत् कुजः ॥

    सामगानप्रियो रक्तवस्त्रो रक्तायतेक्षणः।

    लोहितो रक्तवर्णश्च सर्वकर्मावबोधकः ॥

    रक्तमाल्यधरो हेमकुण्डली ग्रहनायकः।

    नामान्येतानि भौमस्य यः पठेत् सततं नरः॥

    ऋणं तस्य च दौर्भाग्यं दारिद्र्यं च विनश्यति।

    धनं प्राप्नोति विपुलं स्त्रियं चैव मनोरमाम् ॥

    वंशोद्योतकरं पुत्रं लभते नात्र संशयः ।

    योऽर्चयेदह्नि भौमस्य मङ्गलं बहुपुष्पकैः।

    सर्वं नश्यति पीडा च तस्य ग्रहकृता ध्रुवम् ॥

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    अस्वीकरण: इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया यहां इस लेख फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित की गई हैं। पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया अंधविश्वास के खिलाफ है।