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    तीर्थराज में मानस मंदाकिनी, भक्तिभाव संग, कल्पवास का रंग

    By Preeti jhaEdited By:
    Updated: Thu, 15 Jan 2015 03:28 PM (IST)

    संगम तट पर तरह-तरह की संस्कृतियों का भी 'संगमÓ हो रहा है। विभिन्न जनपदों, विशेष क्षेत्र व सुदूर से आए श्रद्धालुओं के धर्म-कर्म करने के तरीके तो भिन्न-भिन्न हैं लेकिन तीन क्रियाएं समान हैं। भोर से लेकर दिन के छोर तक तीन बार स्नान, पूजन एवं एक बार ही फलाहार

    इलाहाबाद। संगम तट पर तरह-तरह की संस्कृतियों का भी 'संगमÓ हो रहा है। विभिन्न जनपदों, विशेष क्षेत्र व सुदूर से आए श्रद्धालुओं के धर्म-कर्म करने के तरीके तो भिन्न-भिन्न हैं लेकिन तीन क्रियाएं समान हैं।

    भोर से लेकर दिन के छोर तक तीन बार स्नान, पूजन एवं एक बार ही फलाहार आदि। ऐसे में यह धर्म नगरी रात गहराने पर भी सोती नहीं है। सुबह व शाम की छटा तो देखते बनती है। कल्पवासी हर दिन सत्संग भी कर रहे हैं। वह भी अपने विशिष्ट अंदाज में।

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    रामचरित मानस के दोहे और चौपाइयां तो कल्पवासियों की जुबान पर हैं। मेला क्षेत्र के त्रिवेणी मार्ग से महावीर मार्ग के बीच कल्पवासियों के शिविर में हर दिन सत्संग हो रहा है। यहां बुधवार को रायबरेली के रामप्रवेश ने अयोध्याकांड की चौपाई 'तुम मुनि मातु सचिव सिखमानी, पाल्यो पुहिम प्रजा रजधानीÓ की व्याख्या करते हुए कहा कि भगवान राम चित्रकूट में भरत जी से कहते हैं कि वह अयोध्या लौट जाएं। प्रजा का पालन माता, गुरु और सचिव के साथ मिलकर करें। अंबेडकर नगर के महेश कुमार ने इसी चौपाई की व्याख्या करते हुए कहा, महाराजा दशरथ सम्राट थे, सम्राट का अर्थ राष्ट्र नायक होता है ऐसे में भगवान भक्त को शिक्षा देते हैं कि रा्र्र की रक्षा के लिए गुरु के अनुसार, प्रजा की रक्षा के लिए माता के अनुसार एवं अवध राज की सीमाओं की रक्षा के लिए सचिव के अनुसार चलना चाहिए।

    गोस्वामी ने इस चौपाई में किससे क्या पूछें, इसका जिक्र किया है। संत हरि चैतन्य ब्रह्मचारी ने इसी चौपाई पर कहा कि आज मुनियों का अनादर, माताओं की अवहेलना हो रही है और सचिव भी हाशिए पर रहे हैं इसीलिए प्रजा परेशान है।

    प्रतापगढ़ के रामतीरथ ने सुंदरकांड की चौपाई 'ढोल, गंवार, शूद्र, पशु, नारी, सकल ताडऩा के अधिकारीÓ की व्याख्या करते हुए कहा कि गोस्वामी जी ने जिन चार चीजों की ताडऩा का जिक्र किया है वह कलयुग में बिल्कुल सटीक है। इस पर कुंडा के दिनकर ने कहा, समुद्र लांघने के लिए जब भगवान राम ने रामेश्वरम में धनुष की प्रत्यंचा पर बाण चढ़ाया तो समुद्र ने कहा कि यह चारों चीजें जड़ हैं इन पर सख्ती किए बगैर ठीक नहीं होंगी। फैजाबाद के सुरेश कुमार ने कहा कि इन चारों चीजों पर सख्ती की बात सही नहीं है, बल्कि गोस्वामी जी का भाव नियंत्रण से है। साथ ही इनके लिए विशेष दृष्टि की भी जरूरत है।

    रामप्रवेश ने उत्तरकांड के 'झूठै लेना, झूठै देना, झूठै भोजन, झूठ चबेनाÓ की व्याख्या करते हुए कहा कि यहां पर गोस्वामी जी ने यह लिखा है कि पूरा जगत मिथ्या है इसलिए इसके चक्कर में नहीं पडऩा चाहिए। वहीं, महेश ने अलग बात रखते हुए कहा कि आज के लोगों ने उक्त लाइनों को अपने जीवन में उतार लिया है। कलयुग में ऐसे लोग ही यहां-वहां दिख रहे हैं। दिनकर ने कहा कि सुंदरकांड में 'प्रात लेई जो नाम हमारा, ता दिन ताहि न मिलै अहाराÓ की व्याख्या करते हुए कहा कि हनुमान जी ने विभीषण को समझाते हुए कहा कि आप तो राक्षस कुल के हैं, लेकिन मैं तो बंदर प्रजाति हूं जिसका नाम सुबह लेने से उस दिन भोजन नहीं मिलता ऐसे पर भगवान राम ने कृपा की है सो आप पर कृपा जरूर करेंगे। तभी सुरेश ने कहा कि आज इन लाइनों को लोगों ने हनुमान जी महाराज से जोड़ दिया है, जबकि हनुमान का नाम लेने से दिन अच्छा बीतता है। रामतीरथ ने 'पन्नगारि अस नीति श्रुति सम्मत सज्जन कहङ्क्षह, अति नीचहु सन प्रीति करिय जानि निज परम हितÓ की व्याख्या करते हुए कहा कि यदि किसी का परमहित हो तो नीच से नीच व्यक्ति से भी प्रेम किया जा सकता है। जैसे रेशमी वस्त्र बनाने के लिए अपवित्र रेशम के कीड़े को पाला जाता है। दिनेश ने कहा कि ऐसे ही किसी का कोई भी ईष्ट हो यदि जरूरत पड़े तो दूसरे देवता की पूजा कर काम बनाया जा सकता है।