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    भारतीय संस्कृति से लेकर सेना के साहस का प्रतीक है सिंदूर, जानें इसका महत्व

    Updated: Mon, 16 Jun 2025 10:01 AM (IST)

    प्रख्यात लोकगायिका मालिनी अवस्थी ने अपने आलेख में सिंदूर के सांस्कृतिक और आध्यात्मिक महत्व पर प्रकाश डाला है। यह आत्मबल और साधना का भाव जागृत करता है। मालिनी अवस्थी एक प्रसिद्ध लोकगायिका और लेखिका हैं जो पद्मश्री से भी सम्मानित हैं। चलिए पढ़ते हैं सिंदूर के महत्व का उगाजर करता हुआ उनका आलेख।

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    क्या है भारतीय संस्कृति में सिंदूर का महत्व

    मालिनी अवस्थी, लोकगायिका। सनातन संस्कृति में मान्यता है कि सिंदूर चढ़ाने से शत्रु पर विजय प्राप्त होती है। आतंकवादियों द्वारा निर्दोषों पर हुए हमले का प्रतिकार करने के लिए भारत सरकार ने जो कार्रवाई की, उसको भी नाम दिया ‘आपरेशन सिंदूर’। भारतीय संस्कृति से लेकर भारतीय सेना के साहस के प्रतीक सिंदूर पर मालिनी अवस्थी का आलेख।

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    मोरे राम के भीजै मुकुटवा

    लखन सिर पटुका हो राम।

    भीजे त भीजे मुकुटवा सेनुरा न भीजइ राम।

    एही सेनुरा के तप पर लउटी घर अईहें

    ना सिया संग अइहे राम।

    आषाढ़ का महीना है, आकाश में काले बादल घिर आए हैं। घनघोर वर्षा हो रही है। अयोध्या में अपने महल में अकेली बैठी हुई कौशल्या मन ही मन विचार कर रही हैं, क्या यह बादल उस वन में भी बरस रहे होंगे, जहां मेरे राम, जानकी और लक्ष्मण विचर रहे हैं। कहीं इस घनघोर वर्षा में मेरे राम का मुकुट ना भीज जाए। मेरे राम का तो राज्याभिषेक होने वाला था, आज वह वनवासी है किंतु वह लोकचित्त का स्वामी है। वह हर संकट में सुरक्षित रहे। इस घनघोर वर्षा से मेरे राम का मुकुट ना भीजे, मेरे लक्ष्मण का दुपट्टा न भीजे।

    गीत में आगे कौशल्या कहती हैं, राम और लक्ष्मण दोनों को साक्षात् आद्याशक्ति स्वरूपा सीता जी का कवच सुरक्षित रखे। इस वर्षा में राम का मुकुट भीजे तो भीजे, लखन का दुपट्टा भीजे तो भीजे, मेरी सीता जी के मस्तक का सिंदूर ना भीगने पाए। सीता जी का अखंड सौभाग्य, उनके सिंदूर से रक्षित हो। क्योंकि इसी सिंदूर के तप के बल पर राम अपनी सिया और लखन सहित अयोध्या वापस आएंगे। कौशल्या जानती हैं, सीता जी के माथे में सुशोभित सिंदूर शक्तिपुंज है। राम की शक्ति सीता के सौभाग्य में है और सिंदूर इसी सौभाग्य का प्रतीक। इसी सिंदूर के बल पर राम वापस आएंगे।

    क्या अद्भुत भाव है! लोक ने किस श्रद्धा भाव से अपने कंठ को माध्यम बनाकर भारतीय विचार और दर्शन की रक्षा की। सिंदूर शक्ति है, सिंदूर तप है, बल है, पूजा है और स्वाभिमान भी है। सिंदूर शक्ति पूजा का आह्वान है, यही कारण है कि शक्ति की आराधना के अनुष्ठान में सिंदूर अपरिहार्य है, इसीलिए पूजनीय है।

    सिंदूरं शोभनं रक्तं सौभाग्यं सुखवर्धनम्|

    सुखदं कामदं चैवसीमंते धारयाम्यहम्||

    सिंदूर आत्मबल और साधना का भाव जागृत करता है। स्वयं आदिदेव शंकर ने अपने रुद्र अवतार को सिंदूर में सजाया। भगवान शिव ने भैरव स्वरूप में सिंदूर धारण किया। सिंदूर की व्यापकता ऐसी है कि रक्त चंदन के रूप में शिव हों या विष्णु, कृष्ण हों या हनुमान सब ने सिंदूरी होकर ही अपनी व्यापकता को विस्तार दिया। जहां देवों ने स्त्री के सबसे सुंदर शृंगार को आध्यात्मिक रूप में अपनाया है, वहां सिंदूर को पितृसत्ता का प्रतीक मानने वाले कुतर्की मूढ़ मतियों की सिंदूर के तपोबल के विषय को लेकर अज्ञानता पर तरस ही आता है।

    समर्पण का उच्चतम रूप

    सिंदूर स्त्री का शृंगार नहीं, शक्ति का आह्वान है। माथे पर सिंदूर लगाती मेरी जैसी अनगिनत स्त्रियां शक्ति का आह्वान करते हुए स्वयं शक्ति स्वरूपा बन जाती हैं। यह संस्कृति का अद्भुत रूप है, जहां सिंदूर माता जानकी के माथे पर सुशोभित है, वहीं हमारे अतुलित बलधामा हनुमानजी को भी सिंदूर अत्यंत प्रिय है। कैसी अद्भुत बात है कि अनन्य ब्रह्मचारी हनुमान जी सौभाग्य का सिंदूर लपेटे हुए पूजे जाते हैं। सिंदूर धारण किए बजरंग बली का यह स्वरूप उनका अपने प्रभु श्रीराम के प्रति अटूट समर्पण का प्रतीक है। मान्यता है कि नारंगी सिंदूर चढ़ाने से संकटमोचन हनुमान हर संकट से मुक्ति दिलाते हैं और मनोकामना पूरी करते हैं।

    दिव्यनागसमुद्भुतं सर्वमंगलारकम्।

    तैलाभ्यंगयिष्यामि सिंदूरं गृह्यतां प्रभो।।

    अपने देखा होगा कि सिंदूर प्रायः लाल या नारंगी रंग का प्रयुक्त होता है। लाल सिंदूर सुहाग का और नारंगी सिंदूर समर्पण का प्रतीक है। इसीलिए मांगलिक कार्यों में एवं हनुमान जी की पूजा में नारंगी सिंदूर का प्रयोग होता है।

    अस्मिता और शक्ति की साधना

    भारतीय पूजा अर्चना पद्धति में यह माना गया है कि सिंदूर चढ़ाने से शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है। हनुमान जी तो सीता जी की रक्षा के लिए उस समय की सबसे बड़ी सत्ता लंकेश रावण से लड़ गए और विजयी होकर लौटे। श्रीरामचरितमानस के सुंदरकांड से एक महत्वपूर्ण चौपाई आती है- ‘जिन्ह मोहि मारा, ते मैं मारे’ अर्थात जिन्होंने मुझ पर आक्रमण किया, मैने उन्हें समाप्त किया। यह चौपाई हनुमान जी की युद्धनीति को इंगित करती है। वर्तमान में भारत की सैन्य रणनीति हनुमान जी की नीति के समान है, जो हमारे निर्दोषों पर प्रहार करेगा, उसे छोड़ा नहीं जाएगा।

    इन दिनों पूरे भारत वर्ष में सिंदूर बरस रहा है,जो यह बता रहा है कि यदि सिंदूर हमारी अस्मिता और शक्ति की साधना है तो युद्धभूमि में रक्त तिलक भी है। हाल ही में भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव चरम पर पहुंचा क्योंकि पहलगाम में ऐसा हमला हुआ, जिसमें आतंकवादियों ने बर्बरता की सारी हदें पार करते हुए सुहागन स्त्रियों के सामने उनके सुहाग को गोलियों से भून दिया। ये कोई साधारण बात नहीं थी- पहलगाम में बलिदान हुए सुहाग के, सुहागिनों के विश्वास का खंडन था, जिन्होंने सिंदूर लगाकर अपने सुहागों की लंबी उम्र की प्रार्थना की थी।

    उस बर्बरता ने पूरे राष्ट्र के हृदय को झकझोर दिया। सिंदूर उन बहनों के सिर्फ माथे का शृंगार नहीं था, उनका सर्वस्व था। जब भारत सरकार ने राष्ट्र की मातृशक्ति के स्वाभिमान पर हुए इस आघात का प्रतिकार करने का निर्णय लिया तो इस कार्रवाई को नाम दिया ‘आपरेशन सिंदूर’। आपरेशन सिंदूर केवल एक मिशन नहीं था, ये उन सभी स्त्री-शक्ति का हुंकार था। ‘आपरेशन सिंदूर’ केवल आतंकवादियों के खिलाफ सैन्य कार्रवाई नहीं थी, ये भारत का सांस्कृतिक उत्तर था। इस आपरेशन की सबसे अनोखी बात यह थी कि राष्ट्र को इसकी सूचना देने का नेतृत्व दो भारतीय महिलाएं कर रही थीं। ‘आपरेशन सिंदूर’ स्त्री-शक्ति के पुनर्जागरण का प्रतीक बन गया। पूजित अराध्य सिंदूर देश की अस्मिता, सुरक्षा और स्वाभिमान का प्रतीक बन गया।

    नया भारत नया भविष्य

    ‘आपरेशन सिंदूर’ ने ना केवल आतंकियों को तहस-नहस किया, बल्कि यह संदेश दिया कि सिंदूर साक्षात शक्ति है और शक्ति का अपमान घातक होगा। आतताइयों के संरक्षक देश को भारत की मातृशक्ति का सिंदूर उजाड़ने की भारी कीमत चुकानी पड़ी। ‘आपरेशन सिंदूर’ में सेना का पराक्रम पूरे विश्व ने देखा, उन्होंने ज्यादा देखा जिन्होंने दशकों से आतंकवाद की खेती की है। इस समय ओज एवं आवेग का सिंदूर एक-एक भारतवासी के मस्तक पर तिलक बन अंकित हो उठा है। इस बार पर्यावरण दिवस पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को सिंदूर का पौधा लगाते देखा और मन में यही भाव आया कि यह नया पौधा नए भविष्य का नया आरंभ है। प्रत्येक आरंभ में गणपति की आराधना होती है।

    विद्या बल देने वाले गणेश जी को भी सिंदूर अति प्रिय है-

    सिंदूर वर्णं द्विभुजं गणेशं लंबोदर पद्मदले निविष्टम।

    ब्रह्मादि देवै: परि सेव्यमानं सिध्दैर्युतं तं प्रणमामि देवम्।।

    जब सिंदूर लगा सभा में पहुंचे हनुमान

    केसरी नंदन हनुमान जी को सिंदूर क्यों प्रिय है? इसके पीछे त्रेता युग की कथा जुड़ी हुई है। कहते हैं, रावण वध के बाद भगवान राम, माता सीता, लक्ष्मण जी, हनुमान जी के साथ अयोध्या पहुंचे थे। एक दिन हनुमान जी ने माता सीता को मांग में सिंदूर भरते देखा। यह देखकर जिज्ञासा में हनुमान जी ने पूछा कि ‘माता आप अपनी मांग में सिंदूर क्यों लगाती हैं?’ इस पर माता सीता ने कहा कि वे यह सिंदूर इसलिए धारण करती हैं ताकि भगवान श्रीराम दीर्घायु हों, उनका जीवन निष्कंटक हो और सिंदूर की लालिमा से रामचंद्र प्रसन्न होते हैं।

    यह सुनकर हनुमान जी के मन में विचार आया कि यदि चुटकी भर सिंदूर से मेरे प्रभु श्रीराम को इतना लाभ पहुंच सकता है तो पूरे शरीर पर सिंदूर लगाने से उनके प्रभु की उम्र और बढ़ जाएगी। इस सोच के साथ हनुमान जी ने अपने पूरे शरीर पर सिंदूर का लेप कर लिया और सभा में चले गए, उनको सिंदूर से पुते देखकर लोग सभा में हंसने लगे किंतु वहां भगवान राम ने हनुमान जी की भक्ति का भाव देख आगे बढ़कर उन्हें गले लगा लिया।

    तब से हनुमान जी पर सिंदूर चढ़ाने की परंपरा शुरू हुई। इस प्रसंग से ये सिद्ध होता है कि सिंदूर केवल स्त्री का शृंगार नहीं, बल्कि अपने आराध्य के लिए किया गया परम त्याग भी है। हर देशवासी की ओर से यही कामना है, भारत पर गणपति जी, सेना के सभी योद्धाओं पर हनुमान जी की कृपा बनी रहे और हमारे आर्यावर्त की सभी बहनों के माथे पर सिंदूर दमकता रहे।