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    Mahavir Jayanti 2024: महावीर जयंती आज, जैन समुदाय के लिए क्यों खास है यह दिन ?

    Updated: Sun, 21 Apr 2024 08:53 AM (IST)

    भगवान महावीर का जन्म लगभग 599 ईसा पूर्व वैशाली के प्राचीन साम्राज्य में हुआ था जो अब बिहार का एक हिस्सा है। उनका जन्म नाम वर्धमान था और वह एक शाही परिवार में पैदा हुए थे उनके माता-पिता राजा सिद्धार्थ और रानी त्रिशला थे। ऐसा कहा जाता है कि उनके अंदर बहुत कम उम्र से ही आध्यात्मिक झुकाव और दुनिया को त्यागने के लक्षण दिखाई देने लगे थे।

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    Mahavir Jayanti 2024: कैसे मनाई जाती है महावीर जयंती ?

    धर्म डेस्क, नई दिल्ली। Mahavir Jayanti 2024: महावीर जयंती जैन धर्म के संस्थापक के जन्म उत्सव के रूप में मनाई जाती है। इस शुभ पल का इंतजार जैन समुदाय के लोग बेसब्री के साथ करते हैं। यह दिन जैन धर्म के 24 वें तीर्थंकर महावीर की शिक्षाओं को लोगों तक पहुंचाने के लिए मनाया जाता है। बता दें, यह पर्व हर साल चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि को जैन अनुयायी द्वारा बड़ी धूमधाम के साथ मनाया जाता है। इस साल यह 21 अप्रैल, 2024 दिन रविवार यानी आज मनाई जाएगी।

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    कैसे मनाई जाती है महावीर जयंती ?

    • यह पवित्र दिन त्याग का प्रतीक है।
    • महावीर जयंती पर महावीर की प्रतिमा के साथ एक जुलूस निकाला जाता है।
    • इस दौरान लोग धार्मिक गीत गाते हैं।
    • इस दिन जैन समुदाय के लोग दान करके, प्रार्थना करके और उपवास रखकर मनाते हैं।
    • इस दौरान सिर्फ सात्विक भोजन ही खाया जा सकता है, जिसमें प्याज व लहसुन का भी त्याग किया जाता है।
    • इसके अलावा सात्विक आहार में दो जड़ वाली सब्जियों का उपयोग तक वर्जित है।
    • इस शुभ अवसर पर जैन मंदिरों को झंडों से सजाया जाता है और गरीबों व जरूरतमंदों की मदद के साथ उन्हें प्रसाद दिया जाता है।
    • इस तिथि पर जानवरों को मारने से बचाने के लिए भी दान किया जाता है।
    • इस दिन ज्यादा से ज्यादा धार्मिक कार्य किए जाते हैं।

    कौन थे भगवान महावीर और क्या थे उनके सिद्धांत ?

    भगवान महावीर अंतिम जैन तीर्थंकर माने जाते हैं। उनका जन्म लगभग 599 ईसा पूर्व वैशाली के प्राचीन साम्राज्य में हुआ था, जो अब बिहार का एक हिस्सा है। स्वामी महावीर का जन्म नाम वर्धमान था, और वह एक शाही परिवार में पैदा हुए थे, उनके माता-पिता राजा सिद्धार्थ और रानी त्रिशला थे। पौराणिक कथाओं के अनुसार, ऐसा कहा जाता है कि उनके अंदर बहुत कम उम्र से ही आध्यात्मिक झुकाव और दुनिया को त्यागने के लक्षण दिखाई देने लगे थे। जैसे-जैसे वर्धमान बड़े हुए उन्होंने 30 साल की उम्र में अपने सभी भौतिक सुखों का त्याग कर दिया।

    गहन ध्यान, आत्म-अनुशासन और तपस्या से उन्होंने 42 साल की उम्र में तीर्थंकर की उपाधि प्राप्त की। जानकारी के लिए बता दें, भगवान महावीर ने जैन धर्म के मूल सिद्धांतों के रूप में अहिंसा, सत्य, चोरी न करना, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह के सिद्धांतों का प्रचार किया।

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    डिसक्लेमर: 'इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी'।