Mahatma Vidur: इस श्राप के कारण हुआ विदुर का जन्म, सारे गुण होने के बाद भी नहीं बन सके राजा
महाभारत का हर एक पात्र अपने आप में एक विशेष महत्व रखता है। आज हम आपको महाभारत के एक ऐसे ही प्रमुख पात्र विदुर के बारे में बताने जा रहे हैं। विदुर कोई आम इंसान नहीं थे बल्कि एक देवता के अवतार थे जिन्हें एक श्राप के कारण एक दासी के पुत्र के रूप में जन्म लेना पड़ा था। आइए पढ़ते हैं से ये अद्भुत कथा।

धर्म डेस्क, नई दिल्ली। विदुर बहुत बुद्धिमान थे, जिन्हें शास्त्रों, वेदों और राजनीतिक व्यवस्था का अच्छा ज्ञान था। इसलिए उन्हें महात्मा विदुर (Mahatma Vidur) के नाम से भी जाना जाता है। दासी के पुत्र होने के बाद भी उसमें एक राजा बनने के सभी गुण मौजूद थे। लेकिन क्या आप जानते हैं कि आखिर क्यों दासी का पुत्र होने के बाद भी वह इतने होनहार थे। चलिए जानते हैं इससे जुड़ी महाभारत की कथा।
किसके अवतार थे विदुर
कथा के अनुसार, माण्डव्य नाम के एक तपस्वी ऋषि थे। एक बार उनके आश्रम पर राजा के दूतों ने कुछ चोरों को पकड़ा, जिस कारण ऋषि को भी इसका दंड झेलना पड़ा। तब वह सीधा यमराज के पास गए और उन्होंने पूछा कि ‘मेरे किस अपराध का मुझे ये दंड मिला है।’ यमराज ने इसके उत्तर में कहा कि जब आप बालक थे, तो आपने एक कीड़े की पूंछ में सुई चुभो दी थी। जिस कारण आपको ये दंड मिला है।
यमराज को दिया श्राप
ऋषि ने कहा कि ‘बचपन में किए गए इतने से अपराध के लिए मुझे इतना बड़ा दंड दिया गया। तब गुस्से में आकर माण्डव्य ऋषि ने यमराज को श्राप दे दिया कि तुम्हें धरती पर दासी पुत्र के रूप में जन्म लेना पड़ेगा।’ आगे चलकर इसी श्राप के कारण यमराज का जन्म महात्मा विदुर के रूप में हुआ।
सत्यवती ने वेदव्यास को दी आज्ञा
महाभारत में वर्णित कथा के अनुसार, सत्यवती और शांतनु के पुत्र विचित्रवीर्य का विवाह अम्बिका और अम्बालिका से हुआ था। लेकिन उनके कोई संतान नहीं थी और वह बहुत ही कम उम्र में मृत्यु को प्राप्त हो गए। यह संकट खड़ा हो गया कि हस्तिनापुर की राजगद्दी अब कौन संभालेगा, क्योंकि भीष्म तो ताउम्र विवाह न करने की प्रतिज्ञा ले चुके थे।
तब सत्यवती ने अपने और ऋषि पराशर के पुत्र वेदव्यास को स्मरण किया। तब सत्यवती ने वेदव्यास से कहा कि मेरे वंश को नाश होने से बचाने के लिए तुम्हें मेरी एक आज्ञा का पालन करना होगा। मैं चाहती हूं कि तुम अम्बिका और अम्बालिका से संतान उत्पन्न करो।
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वेदव्यास का रूप देख डर गई रानी
वेदव्यास उनकी आज्ञा मान ली। जब रानी अम्बिका, वेदव्यास के पास गई तो उनके स्वरूप से डरकर उसने आंखें बंद कर ली। तब वेदव्यास ने सत्यवती से कहा कि पहली रानी ने मुझे देखकर आंखें बंद कर लीं, जिस कारण वह एक नेत्रहीन पुत्र को जन्म देंगी।
इसके बाद अम्बालिका, वेदव्यास के पास गई, लेकिन डर के कारण वह भय से पीली पड़ गई। इसके बाद वेदव्यास सत्यवती के पास गए और कहने लगे कि दूसरी रानी भी डर के कारण पीली पड़ गई थीं, जिस कारण उनके द्वारा जन्मा पुत्र रोग से ग्रसित होगा।
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दासी से जन्मे विदुर
यह सुनकर सत्यवती को बड़ा दुःख हुआ और उसने रानी अम्बालिका को पुनः वेदव्यास के पास जाने को कहा। लेकिन रानी ने स्वयं न जाकर अपनी जगह दासी को भेज दिया। दासी, वेदव्यास के रूप को देखकर बिल्कुल भी नहीं डरी। इस बार वेदव्यास ने माता सत्यवती के पास आ कर कहा, कि इस दासी के गर्भ से एक बहुत ही बुद्धिमान पुत्र का जन्म होगा।
इसी के फलस्वरूप अम्बिका ने नेत्रहीन पुत्र यानी धृतराष्ट्र को जन्म दिया और अम्बालिका के गर्भ से उत्पन्न पुत्र पांडु जन्म से ही रोगों से ग्रसित था। लेकिन दासी के गर्भ से जन्मा विदुर बुद्धिमान होने के साथ-साथ शास्त्रों और वेदों का ज्ञानी भी था।
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