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    Mahashivratri 2023: भगवान शिव क्यों करते हैं गले में नागराज को धारण?

    By Shantanoo MishraEdited By: Shantanoo Mishra
    Updated: Fri, 10 Feb 2023 01:24 PM (IST)

    Mahashivratri 2023 भोलेनाथ के स्वरूप की बात करें तो वह बाघ की छाल से अपने तन को ढकते हैं उनकी जटाओं में मां गंगा वास करती हैं सिर पर चंद्र और गले में नागराज धारण करते हैं। आइए जानते हैं क्यों भगवान शिव करते हैं गले में नागराज को धारण?

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    Mahashivratri 2023: जानिए कैसे भगवान शिव के गले में लिपटे नागराज वासुकि?

    नई दिल्ली, अध्यात्मिक डेस्क | Mahashivratri 2023: हिन्दू पंचांग के अनुसार फाल्गुन मास के कृष्ण की त्रयोदशी तिथि के दिन भगवान शिव को समर्पित महाशिवरात्रि पर्व हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। इस वर्ष यह पर्व 18 फरवरी 2023, शनिवार (Mahashivratri 2023 Date) के दिन मनाया जाएगा। वैदिक धर्मग्रन्थों के अनुसार इसी दिन भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह हुआ था। लेकिन क्या आप जानते हैं कि भगवान शिव के विख्यात रूप और बारात को देखकर माता पार्वती दंग रह गई थीं। भगवान शिव ने बाघ की छाल से तन को ढका हुआ था, शरीर पर भस्म रमी हुई थी, गले में रुद्राक्ष के साथ-साथ नागराज बैठे हुए थे। भगवान शिव के इस स्वरूप से हम सब भी परिचित हैं, लेकिन क्या आप जानते हैं कि भोलेनाथ के गले में लिपटे हुए सांप के पीछे अत्यंत रोचक कथा है। आइए जानते हैं कि क्यों भगवान शिव गले में धारण करते हैं नागराज?

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    भगवान शिव और नागराज वासुकि का अटूट संबंध (Bhagwan Shiv and Vasuki Naag)

    वैदिक धर्मग्रन्थों में बताया गया है कि भगवान शिव के गले में लिपटे हुए सांप का नाम वासुकि है, जिन्हें सभी नागों का राजा कहा जाता है। कथा के अनुसार हिमालय में नाग वंश के लोग वास करते थे, जिन्हें भगवान शिव से बहुत लगाव था। इन्हीं में से एक नागराज वासुकि भगवान शिव के परम भक्त थे। नागराज वासुकि की भक्ति से प्रसन्न होकर भोलेनाथ ने उन्हें अपने गले में धारण करने का वरदान दिया था और तब से वह अमर हो गए।

    भगवान श्री कृष्ण और समुद्र मंथन से जुड़ता है नागराज का संबंध

    किवदंतियों के अनुसार जब भगवान श्री कृष्ण को उनके पिता वासुदेव गोकुल ले जा रहे थे, तब नागराज वासुकि ने ही यमुना के तूफान में उनकी रक्षा की थी। इसके साथ जब देवताओं और दैत्यों के बीच अमृत प्राप्त करने के लिए समुद्र मंथन किया गया था, उस दौरान मेरू पर्वत को मथने के लिए वासुकि नाग का ही रस्सी के रूप में प्रयोग लिया गया था। इसी दौरान समुद्र मंथन के दौरान निकले विष को भगवान शिव ने गले में धारण कर लिया था और घर्षण के कारण वासुकि लहूलुहान हो गए थे। पुराणों में यह भी बताया गया है कि नागराज वासुकि के सिर पर नागमणि स्थपित है।

    डिसक्लेमर- इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।