वात्स्यायन कामसूत्र में लिखते हैं कि महिलाओं को 64 कलाओं में प्रवीण होना चाहिए
महर्षि वात्स्यायन कामसूत्र में लिखते हैं कि महिलाओं को 64 कलाओं में प्रवीण होना चाहिए। दरअसल कामसूत्र यौन शिक्षा पर आधारित प्राचीन ग्रंथ है, जिसमें सेक्स के बारे में बताया गया है।
कामसूत्र... का नाम आते ही लोग असहज हो जाते हैं। यहां तक कि लोगों की नज़र में इस ग्रंथ की बात करना, पढ़ना किसी अनैतिक कार्य से कम नहीं। लेकिन ऐसा बिल्कुल भी नहीं है। दरअसल कामसूत्र यौन शिक्षा पर आधारित प्राचीन ग्रंथ है, जिसमें सेक्स के बारे में बताया गया है।
जिन्होंने यह ग्रंथ पढ़ा है वो जानते ही होंगे कि यह ग्रंथ महज यौन शिक्षा पर ही केंद्रित नहीं है, बल्कि वास्तव में इसमें वैवाहिक जीवन शैली के बारे में विस्तार से बताया गया है। इस ग्रंथ का मूल अर्थ यह है कि कैसे एक मनुष्य के जीवन पर इस विषय का प्रभाव पढ़ता है और वह कैसे इन तरीकों से अपनी जिंदगी को सकारात्मकता की ओर ले जा सकते हैं।
महर्षि वात्स्यायन थे ब्रह्मचारी
दिलचस्प बात यह है कि इस ग्रंथ के रचनाकार महर्षि वात्स्यायन दरअसल ब्रह्मचारी थे। उन्होंने ही 'कामसूत्र' की रचना की। कई पौराणिक ग्रंथों में महर्षि वात्स्यायन को 'मल्लनाग' के नाम से भी संबोधित किया गया है।
'वात्स्यायन', महर्षि वात्स्यायन का गौत्र नाम है। जोकि ज्यादा प्रचलित है। पंचतंत्र में इन्हें 'वैद्यकशास्त्रज्ञ' के नाम से संबोधित किया गया है। कामसूत्र के अलावा वात्स्यायन का दूसरा योगदान न्यायदर्शन में है उन्होंने वैशेषिक पदार्थों में अंतर्भाव करने का प्रयास किया। वात्स्यायन के बाद वैशेषिकों के सत्ताशास्त्र स्वीकृत करने की यह परम्परा भी न्यायदर्शन में चल पड़ी। धीरे धीरे 'न्याय-वैशेषिक' एक अभिन्न दर्शन ही बन गया।
कामसूत्र के मूल रचनाकार हैं नंदी
महर्षि वात्स्यायन ने कामसूत्र सात अधिकरणों में विभाजित हैं जो कि क्रमशः सामान्य, सांप्रयोगिक, कन्यासंप्रयुक्त, भार्याधिकारिक, पारदारिक, वैशिक और औपनिषदिक के रूप में है। हिंदू पौराणिक ग्रंथों के अनुसार सर्वप्रथम नंदी( भगवान शिव के मुख्य गण) ने एक हज़ार अध्यायों के कामशास्त्र की रचना की थी, जिसे आगे चलकर विद्वान औद्दालिकी श्वेतकेतु और बाभ्रव्य पांचाल ने क्रमश: संक्षिप्त रूपों में प्रस्तुत किया।
महर्षि वात्स्यायन का कामसूत्र इनकी अपेक्षा अधिक संक्षिप्त है। कामसूत्रों से तत्कालीन (1700 वर्ष पूर्व के) समाज के रीति-रिवाजों की जानकारी भी मिलती है। 'कामसूत्र' पर वीरभद्र कृत 'कंदर्पचूड़ामणि', भास्करनृसिंह कृत 'कामसूत्र-टीका' तथा यशोधर कृत 'कंदर्पचूड़ामणि' नामक टीकाएं उपलब्ध हैं।
कामसूत्र को शास्त्रीय दर्जा है प्राप्त
कामसूत्र को शास्त्रीय दर्जा प्राप्त हुआ है। 1870 ई. में 'कामसूत्र' का अंग्रेजी में अनुवाद हुआ। उसके बाद संसार भर के लोग इस ग्रन्थ से परिचित हो गए। महर्षि वात्स्यायन कामसूत्र में लिखते हैं कि महिलाओं को 64 कलाओं में प्रवीण होना चाहिए।
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