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    महाकुंभ: आम आदमी की जय

    यहां नहाने से आपको क्या मिल गया? अलग लिंग, आय-आयु वर्ग से पूछे गए इस प्रश्न के उत्तर इतने सरल, निर्दोष और विराट थे कि मैं निरुत्तर। उत्तरों में निहित थी देश के कण-कण, रोम-रोम में बसी और अपना शुद्धीकरण आप करती आयी वह संस्कृति जिसके ऐसे फलित आपको चकित भी करते हैं और गर्वित भी।

    By Edited By: Updated: Sat, 16 Feb 2013 11:40 AM (IST)

    कुंभनगर [आशुतोष शुक्ल]। यहां नहाने से आपको क्या मिल गया? अलग लिंग, आय-आयु वर्ग से पूछे गए इस प्रश्न के उत्तर इतने सरल, निर्दोष और विराट थे कि मैं निरुत्तर। उत्तरों में निहित थी देश के कण-कण, रोम-रोम में बसी और अपना शुद्धीकरण आप करती आयी वह संस्कृति जिसके ऐसे फलित आपको चकित भी करते हैं और गर्वित भी।

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    पत्रकारिता ऐसा व्यवहारशास्त्र है जो तकरें से चलता है। इस नाते जब हमारी आंखें गंगा में स्वच्छता का बीओडी (बायो कैमिकल आक्सीजन डिमांड) और मेला प्रबंधन में छेद तलाश रही थीं, आस्था उसी जल में कई-कई डुबकियां मार चुकी थी। एक मां के नाम, एक लड़के के, एक गुरु के नाम. और एक पड़ोस में तीन घर आगे रहने वाली चाची के भी नाम। पिछली दो बार की तरह वसंत पंचमी स्नान के लिए भी रात से ही नहाने वालों की कतारें लगी थीं। काली सड़क और त्रिवेणी रोड यदि श्रद्धालुओं से पटी थी तो वीआइपी मार्ग लाल सड़क पर भी स्नानार्थी दौडे़ जा रहे थे। मौनी अमावस्या हादसे से सतर्क मेला प्रशासन की इंतजाम में लगीं गाडि़यां जब दौड़ी फिर रही थीें, अधिकारियों के माथे की सिलवटें गहरा रही थीं तो इन सबसे बेपरवाह असाधारण भक्त सड़क दाबे पड़ा था। सैकड़ों किलोमीटर दूर से, बस-ट्रेन के धक्के खाता आया यह भक्त साथ परिवार भी लाया था। स्टेशन से पैदल घाट पहुंचा, पांच मिनट से भी कम लिए नहाने में और फिर या तो घर वापस या कुछ देर किसी आश्रम में कथा, रामायण सुनने बैठ गया। संगम नोज पर एक पत्रकार ने साथ चल रहे मलेशियाई पत्रकार से पूछ ही लिया, हम तो हिंदुस्तानी हैं.आप क्या देखने आए? जवाब था, दुनिया में कहीं और केवल नहाने के लिए करोड़ों लोग एक जगह जमा नहीं होते, यह अनोखी बात है और यही देखने आया। तन ठठरी सिर पर गठरी लिए इस भोले भगत की यही आस्था ऐसे मेलों का प्राण है। बाबा और उनके विदेशी भक्त तो कुंभ का आकर्षण हैं ही, मेले की सबसे बड़ी शक्ति यही वह आम आदमी है जिसके पास चढ़ावे का मोटा पैसा नहीं, लेकिन जो नागाओं और संतों को देख दूर से ही साष्टांग करने लगता था। महानिर्वाणी और जूना अखाड़ों के साधुओं का उछाला गया एकपुष्प भी जिसे हाथ लगा, उसने माथे से लगा लिया.और जिसे पूरी माला मिल गई, उसके भाग्य से तो साथ वालों को ईष्र्या हुई। संतों के दर्शन से निहाल बूढ़ी स्त्रियों की भावुकता हमको भावुक कर रही थी। जिस रास्ते गए बाबा, वहां की धूल सिर पर ले ली, डिब्बे में रख घर ले गए। लाजिमी था कि इन आम लोगों से यही पूछा जाता कि आपको नहाने से क्या मिल गया! सबके उत्तर छोटे पर पूरे थे। अपनी मां और घर की पांच अन्य महिलाओं को स्नान कराने आए रेणुकूट के विनोद सिंह को आत्मसंतुष्टि मिली। मां को लेकर आयीं इलाहाबाद की कमला देवी को बहुत अच्छा लगा, बेगूसराय के किसान चंद्रचूड़ सिंह को भी संतोष था और फरीदाबाद के व्यवसायी जसवीर सोनी को आत्मिक अनुभूति हुई। बुलंदशहर के सरदार जसवीर भुल्लर अपनी बीमार मां की इच्छा पूरी करने आए थे। बोले, मां को संगम से लिया गंगाजल दूंगा तो उसकी बीमारी भाग जाएगी।

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