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    Mahakal Lok: क्यों बाबा महाकाल की जाती है भस्म से पूजा, समय के साथ परम्परा में भी आया है बदलाव

    By Shantanoo MishraEdited By:
    Updated: Tue, 11 Oct 2022 12:07 PM (IST)

    Mahakal Lok Ujjain कल यानि 11 अक्टूबर के दिन प्रधानमंत्री मोदी महाकाल लोक का लोकार्पण करेंगे। वहीं महाकालेश्वर मन्दिर में सबसे अधिक आकर्षण का केंद्र यहां होने वाली भस्म आरती होती है। भस्म आरती के कुछ नियम है जिसे हर व्यक्ति को मानना पड़ता है।

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    Mahakal Lok, Bhasm Aarti: महाकाल भस्म आरती है आकर्षण का केंद्र।

    नई दिल्ली, डिजिटल डेस्क | Mahakal Lok, Mahakal Bhasm Aarti: आज यानि 11 अक्टूबर 2022 के दिन प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी देशवासियों को एक बड़ा और खास उपहार महाकाल लोक के रूप में भेंट करेंगे। यहां भगवान शिव की लीलाओं पर आधारित 190 मूर्तियां हैं और यहां 108 स्तंभ स्थापित किए गए हैं। महाकाल लोक में भगवान शिव से जुड़ी कई चीजों के विषय में बताया गया है। इसके साथ पवित्र उज्जैन नगरी में बाबा महाकाल के दर्शन के लिए हर दिन लाखों की संख्या में श्रद्धालु देशभर के कई हिस्सों से आते हैं। मान्यताओं के अनुसार बाबा महाकाल के दर्शन करने से जीवन-मृत्यु का चक्र खत्म हो जाता है और व्यक्ति को मृत्यु के बाद मोक्ष की प्राप्ति होती है।

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    लेकिन इन सबमें बाबा महाकाल की भस्म आरती के दर्शन के लिए लाखों की संख्या में भक्त आते हैं। बता दें कि विश्वभर में महाकालेश्वर मंदिर एक अकेला तीर्थ स्थान है जहां वैदिक मंत्रों, शंख, डमरू के साथ बाबा भोलेनाथ की भस्म आरती की जाती है। यह आरती भारतीय महानिर्वाणी अखाड़े के महंत अथवा उनके प्रतिनिधि द्वारा की जाती है। आइए जानते हैं क्या है भस्म आरती का नियम और किसे आई इससे जुड़े प्राचीन अनुष्ठान क्रिया में बदलाव।

    महाकाल मंदिर में जल अर्पित करने के लिए हैं कुछ नियम

    बता दें कि भस्म आरती के पूर्व भगवान महाकाल को श्रद्धालु जल अर्पित करते हैं। लेकिन उन्हें साधारण वस्त्र धारण करने की अनुमति नहीं। पुरुषों को केवल धोती पहनने की अनुमति है और वह केवल इस आरती को देख सकते हैं। आरती करने का अधिकार केवल महंत और अखाड़ा के प्रतिनिधियों के पास है। वहीं दूसरी ओर इस दौरान स्त्रियों के लिए गर्भगृह में प्रवेश वर्जित है। ऐसा इसलिए क्योंकि इस समय भगवान निराकार रूप में होते हैं और इस रूप में भगवान शिव के दर्शन महिलाओं के लिए वर्जित है। लेकिन भस्म आरती के दर्शन के लिए आए लोग नंदी मंडप, गणेश मंडप और कार्तिकेय मंडप में बैठकर कर इस आरती में शामिल हो सकते हैं।

    mahakal bhasm aarti

    भस्म आरती के पीछे जुड़ी है पौराणिक कथा

    किवदंतियों के अनुसार पौराणिक काल में दूषण नाम के राक्षस ने उज्जैन नगरी में तबाही मचा दी थी। तब लोगों ने भगवान शिव से इस प्रकोप को दूर करने की विनती की। भगवान शिव ने दूषण का वध किया और नगरवासियों के आग्रह पर यहीं महाकाल के रूप में बस गए। मान्यता यह है कि बाबा भोलेनाथ ने दूषण के भस्म से अपना श्रृंगार किया था। इसलिए आज भी महादेव का भस्म से श्रृंगार किया जाता है। बता दें कि यह पहला ऐसा मंदिर है जहां भगवान शिव की दिन में 6 बार आरती की जाती है। लेकिन दिन की शुरुआत भस्म आरती से ही होती है।

    समय के साथ बदली अनुष्ठान पद्धति

    यहां के महंत बताते हैं कि कई साल पहले भगवान महाकाल की आरती चिता के भस्म से की जाती थी। जहां आज महाकाल मंदिर स्थापित है वह पूरा क्षेत्र मरघट यानि श्मशान हुआ करता था। लेकिन समय के साथ इसमें भी बदलाव आया और आज बाबा महाकाल की भस्म आरती के लिए समग्री गाय के उपलों से तैयार की जाती है।

    नगरवासियों के भेंट से तैयार की जाती है भस्म आरती की समग्री

    हर दिन संध्याकाल में महाकाल मन्दिर का एक सेवक कमण्डल लेकर नंगे पैर नगर भ्रमण पर निकलता है और महाकाल भक्त उस कमण्डल में आरती के लिए जरूरी सामग्री भेंट करते हैं। उसी से आरती में प्रयोग की जाने वाली सामग्री को तैयार किया जाता है।

    Photo Credit: M.P Gov.

    डिसक्लेमर- इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।