भगवान श्रीकृष्ण ने तोड़ा युद्ध न लड़ने का प्रण, भीष्म पितामह को मारने क्यों दौड़े प्रभु
भगवान श्रीकृष्ण ने युद्ध (Mahabharat story) में प्रत्यक्ष रूप से भाग न लेकर अर्जुन के सारथी की भूमिका निभाई थी। लेकिन युद्ध में एक समय ऐसा भी आया जब भगवान श्रीकृष्ण को युद्ध न करने का अपना प्रण तोड़ने पर मजबूर होना पड़ा। चलिए जानते हैं क्या है इसका कारण।

धर्म डेस्क, नई दिल्ली। भीष्म पितामह महाभारत ग्रंथ के महान योद्धाओं में से एक रहे हैं, जिन्हें धर्म, नीति और कर्तव्य के लिए जाना जाता है। उन्होंने आजीवन विवाह न करने की प्रतिज्ञा भी ली थी। अपनी इसी भीष्म प्रतिज्ञा के कारण ही उनका नाम भीष्म पड़ा था। महाभारत के युद्ध में उन्होंने कौरव सेना की ओर से युद्ध लड़ा था और कौरवों के सेनापति की भूमिका निभाई थी।
इसलिए तोड़ा प्रण
कुरुक्षेत्र के युद्ध के दौरान भीष्म पितामह पांडवों का वध करने पर उतारू थे। भीष्म पितामह ने यह प्रतिज्ञा ली थी कि या तो वह पांचों पांडवों का वध कर देंगे या फिर भगवान श्रीकृष्ण को शस्त्र उठाने पर मजबूर कर देंगे।
वहीं अर्जुन अपने समक्ष प्रतिद्वंदी के रूप में पितामह को देखकर घबरा गया और उनके साथ युद्ध करने के स्थान पर वह पीछे हट गया। यह देखकर श्रीकृष्ण अपना प्रण तोड़ते हुए रथ से नीचे उतरते हैं और एक पहिया उठाकर भीष्म पितामह पर प्रहार करने के लिए दौड़ते हैं।
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क्यों लिया कृष्ण जी ने यह निर्णय
भीष्म पितामह जानते थे कि इस युद्ध में पांडव धर्म के लिए युद्ध लड़ रहे हैं, वहीं कौरवों का पक्ष अधर्म का साथ दे रहा है। फिर भी वह अपने प्रण के चलते पांडवों का नाश करने पर तुले थे। वहीं अर्जुन भीष्म से युद्ध करने से कतरा रहे थे।
तब भगवान श्रीकृष्ण को लगा कि अगर वह अपना प्रण नहीं तोड़ेंगे, तो इससे धर्म और न्याय की हार होगी। तब प्रभु अर्जुन से कहते हैं कि "मैनें इस युद्ध में शस्त्र न उठाने की प्रतिज्ञा ली है, लेकिन भीष्म पितामह का वध करने के लिए मैं अपनी इस प्रतिज्ञा को तोड़ने जा रहा हूं"।
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अर्जुन ने दिया ये आश्वासन
जब अर्जुन से भीष्म का सामना करने से मना कर दिया तब भगवान श्रीकृष्ण क्रोधित हो उठे और भीष्म पर प्रहार करने के लिए दौड़े। लेकिन इसी दौरान अर्जुन भगवान के चरण पकड़कर उन्हें रोकने का प्रयास किया। तब अर्जुन ने भगवान श्रीकृष्ण को यह आश्वासन दिया कि वह मजबूती के साथ युद्ध लड़ेगा और भीष्ण पितामह का सामना करेगा।
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