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    Rudrashtakam in Sawan: सावन माह में करें रूद्राष्टकम् का पाठ, शिव-शंभू देंगे अभय का वरदान

    By Jeetesh KumarEdited By:
    Updated: Thu, 05 Aug 2021 08:05 PM (IST)

    Rudrashtakam in Sawan भगवान शिव अनादि और अनंत रूप है शिव का अर्थ ही कल्याण है। शिव ही सम्पूर्ण सृष्टि का आधार हैं। सावन के महीने में भगवान शिव के रूद्राष्टक का पाठ नियमित रूप से करना चाहिए। ऐसा करने से भगवान शिव मनचाहा वरदान प्रदान करते हैं।

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    सावन माह में करें रूद्राष्टकम् का पाठ, शिव-शंभू देंगे अभय का वरदान

    Rudrashtakam in Sawan : भगवान शिव अनादि और अनंत रूप है, शिव का अर्थ ही कल्याण है। शिव ही सम्पूर्ण सृष्टि का आधार हैं। शिव ही अपने विभिन्न रूपों के माध्यम से सृष्टि को उत्पन्न, संचालन और संहार करते हैं। वेद और पुराणों में शिव की महिमा का अनेकानेक तरह से वर्णन मिलता है। ऋषि और मुनिगण विभिन्न मंत्रों और स्तोत्रों से भगवान शिव की स्तुति करते हैं। ऐसी ही एक स्तुति स्वयं प्रभु श्री राम ने लंका विजय के पहले की थी। इस कथा उल्लेख रामायण और तुलसीदास कृत रामचरित मानस में भी मिलता है। मान्यता है कि जो व्यक्ति योग, यज्ञ, जप और पूजा विधि आदि न जानता हो वो अगर सच्चे मन से रुद्राष्टकम् का पाठ करे तो भगवान शिव उसके सभी रोग, दोष और कष्टों से मुक्ति प्रदान करते हैं। सावन के महीने में भगवान शिव के रूद्राष्टक का पाठ नियमित रूप से करना चाहिए। ऐसा करने से भगवान शिव मनचाहा वरदान प्रदान करते हैं।

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    शिवजी का रुद्राष्टकम -

    नमामीशमीशान निर्वाणरूपं । विभुं व्यापकं ब्रह्मवेदस्वरूपम् ॥

    निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं । चिदाकाशमाकाशवासं भजेऽहम् ॥1॥

    निराकारमोङ्कारमूलं तुरीयं । गिराज्ञानगोतीतमीशं गिरीशम् ।

    करालं महाकालकालं कृपालं । गुणागारसंसारपारं नतोऽहम् ॥2॥

    तुषाराद्रिसंकाशगौरं गभीरं । मनोभूतकोटिप्रभाश्री शरीरम् ॥

    स्फुरन्मौलिकल्लोलिनी चारुगङ्गा । लसद्भालबालेन्दु कण्ठे भुजङ्गा ॥3॥

    चलत्कुण्डलं भ्रूसुनेत्रं विशालं । प्रसन्नाननं नीलकण्ठं दयालम् ॥

    मृगाधीशचर्माम्बरं मुण्डमालं । प्रियं शङ्करं सर्वनाथं भजामि ॥4॥

    प्रचण्डं प्रकृष्टं प्रगल्भं परेशं । अखण्डं अजं भानुकोटिप्रकाशं ॥

    त्रय: शूलनिर्मूलनं शूलपाणिं । भजेऽहं भवानीपतिं भावगम्यम् ॥5॥

    कलातीतकल्याण कल्पान्तकारी । सदा सज्जनानन्ददाता पुरारी ॥

    चिदानन्दसंदोह मोहापहारी । प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारी ॥6॥

    न यावद् उमानाथपादारविन्दं । भजन्तीह लोके परे वा नराणाम् ।

    न तावत्सुखं शान्ति सन्तापनाशं । प्रसीद प्रभो सर्वभूताधिवासं ॥7॥

    न जानामि योगं जपं नैव पूजां । नतोऽहं सदा सर्वदा शम्भुतुभ्यम् ॥

    जराजन्मदुःखौघ तातप्यमानं । प्रभो पाहि आपन्नमामीश शंभो ॥8॥

    रुद्राष्टकमिदं प्रोक्तं विप्रेण हरतोषये ॥

    ये पठन्ति नरा भक्त्या तेषां शम्भुः प्रसीदति ॥9॥

    डिसक्लेमर

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