Lord Shiv: कार्तिक और गणेश के अलावा ये भी हैं भगवान शिव की संतान, जानिए इनसे जुड़ी मान्यताएं
भगवान शिव को देवों के देव महादेव के रूप में जाना जाता है। आप भगवान शिव और माता पार्वती की दो संतानों अर्थात भगवान गणेश और कार्तिकेय जी के बारे में तो जरूर जानते होंगे। लेकिन भगवान शिव की अन्य संतानों का जिक्र कम ही मिलता है जिसकी उत्पत्ति की कथा भी बड़ी ही रोचक है। तो चलिए जानते हैं भगवान शिव की अन्य संतानों के विषय में।
धर्म डेस्क, नई दिल्ली। आपने शिव परिवार में केवल भगवान शिव, माता पार्वती, गणेश जी और कार्तिकेय को देखा होगा, लेकिन धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान शिव की और भी संताने हैं, जिनकी उत्पत्ति की अगल-अगल कथा मिलती है। भगवान शिव की ही संतान माने गए इस देवी-देवताओं के निमित्त देश में प्रसिद्ध मंदिर भी स्थापित हैं।
शिव जी की बेटी
अशोक सुंदरी भगवान शिव और माता पार्वती की पुत्री हैं। इनका वर्णन पद्म पुराण में भी मिलता है। पुराणों में वर्णित कथा के अनुसार, माता पार्वती अपने एकाकीपन (अकेलेपन) को दूर करना चाहती थीं, इसलिए उन्होंने कल्पवृक्ष से एक बेटी की मांग की। तब उस वृक्ष से अशोक सुंदरी की उत्पत्ति हुई। शिवलिंग में जिस स्थान से जल बहकर निकलता है, उस स्थान को अशोक सुंदरी का स्थान माना जाता है।
हरिद्वार में स्थित है मंदिर
कई मान्यताओं के अनुसार, मनसा देवी को भी भगवान शिव की सबसे छोटी पुत्री हैं, जिन्हें देवी वासुकी के नाम से भी जाना जाता है। पौराणिक मान्यता के अनुसार, इनका प्राकट्य मस्तक से हुआ है, इसलिए इन्हें मनसा कहा जाता है। मां मनसा का प्रसिद्ध शक्तिपीठ हरिद्वार में स्थित है।
यह भी हैं शिव की संतान
भगवान अय्यप्पा मुख्य रूप से दक्षिण भारत में पूजे जाने वाले एक प्रमुख देवता हैं। इसका पिता भी भगवान शिव को ही माना जाता है। पौराणिक कथा के अनुसार एक बार जब भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप धारण किया तब भगवान शिव उनपर मोहित हो, जिससे अयप्पा उत्पन्न हुए। अयप्पा स्वामी को हरिहरपुत्र अर्थात हर- भगवान शिव और हरि-भगवान विष्णु भी कहा जाता है। केरल में अय्यप्पा भगवान को समर्पित सबरीमाला मंदिर एक प्रसिद्ध मंदिर है।
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क्रोध से हुई उत्पत्ति
जलंधर भी भगवान शिव का एक पुत्र माना जाता है। माना जाता है कि इनका जन्म महादेव के क्रोध से हुआ था और यह भगवान शिव के शत्रुओं में से भी एक था। पुराणों में कथा मिलती है कि महादेव ने गुरु बृहस्पति के कहने पर इंद्र के प्राणों की रक्षा के लिए अपनी क्रोधाग्नि को समुद्र में डाल दिया। शिवजी की इस क्रोधाग्नि से समुद्र से एक बालक की उत्पत्ति हुई, जिसे जलंधर कहा जाता है। हालांकि जालंधर का अंत भी शिव जी के हाथों ही हुआ।
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