जीवन मंत्र: हमें बिना किसी को क्षति पहुंचाए अपनी उन्नति की ओर अग्रसर रहना चाहिए
हमें सदैव लोगों से निर्मल और शालीन व्यवहार करना चाहिए किंतु जब कोई हमें हानि पहुंचाए तो उस स्थिति में अपनी सुरक्षा करना हमारा प्रथम कर्तव्य भी है और धर्म भी है। हमें बिना किसी को क्षति पहुंचाए अपनी उन्नति की ओर अग्रसर रहना चाहिए।

संसार में सज्जन और दुर्जन समान रूप से निवास करते हैं। महापुरुषों ने सदैव ही सम्यक दृष्टि पर बल दिया है, किंतु इसका यह अर्थ कदापि नहीं है कि हमारे साथ कोई अन्याय करे और हम खुद का बचाव भी न करें। हमें बिना किसी को क्षति पहुंचाए अपनी उन्नति की ओर अग्रसर रहना चाहिए। एक बार स्वामी रामकृष्ण परमहंस से शिष्यों ने पूछा कि इस जगत में सज्जन अपना निर्वहन कैसे करें? तब स्वामी जी ने उनको एक कथा सुनाई।
कथा इस प्रकार है-एक चारागाह पर कुछ लड़के गाय चराने जाते थे। वहीं एक दुष्ट सांप भी रहता था। एक दिन एक साधु वहां से गुजर रहे थे तो लड़कों ने उनको सांप के विषय में चेताया। फिर भी वह आगे बढ़े। उन्हेंं सांप मिल गया। साधु ने एक मंत्र पढ़ा और सांप बिल्कुल केंचुए की तरह उनके चरणों में गिर पड़ा। तब साधु ने सांप को एक मंत्र दिया और कहा कि तुम इसका जाप करते रहोगे तो दुष्टता का तुम्हारा स्वभाव समाप्त हो जाएगा और ईश्वर की प्राप्ति कर पाओगे। सांप ने वैसा ही किया जैसा साधु ने कहा था। उसके स्वभाव में बहुत बड़ा बदलाव आ गया। एक दिन जब लड़कों ने देखा कि सांप अब कुछ नहीं करता तो उन्होंने उसे पत्थर मारे जिससे वह अत्यंत घायल हो गया। सांप किसी तरह उठा और अपने बिल में चला गया। अब वह दिन में अपने बिल से बाहर नहीं आता। इस वजह से प्रतिदिन वह दुर्बल होता गया। एक वर्ष के बाद वही साधु उसी जगह पर आए। उन्हेंं सांप को देखने की उत्सुकता हुई। अत: वह उसके पास गए। उसकी दुर्गति देख उन्होंने पूछा कि यह सब कैसे हुआ? सांप ने अपनी आपबीती सुनाई। सांप की बात सुनकर साधु ने कहा, ‘मैंने तो तुम्हें काटने को मना किया था फुफकारने को नहीं।’
इसका मतलब यह है कि हमें सदैव लोगों से निर्मल और शालीन व्यवहार करना चाहिए, किंतु जब कोई हमें हानि पहुंचाए तो उस स्थिति में अपनी सुरक्षा करना हमारा प्रथम कर्तव्य भी है और धर्म भी है।
- अंशु प्रधान
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