Yoga in Astrology: कैसे बनते हैं योग, क्या होते हैं वर्ष में पड़ने वाले विभिन्न योगों के फल
Yogas in astrology ज्योतिष शास्त्र में कई शुभ योग और नक्षत्रों के बारे में बताया गया है। इन शुभ योग में कोई भी कार्य करना बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है। यह योग पूरे वर्ष बनते रहते हैं।

नई दिल्ली, Yoga in Astrology: पंडित दीपक पांडे के अनुसार पंचांग, तिथि, वार, नक्षत्र, योग, करण के आधार पर ही मुहूर्त का निर्णय होता है। जिन मुहूर्त में में शुभ कार्य किए जाते हैं उन्हें शुभ मुहूर्त या योग कहते हैं। वहीं जिनको अच्छा नहीं माना जाता उन्हें अशुभ मुहूर्त या योग मानते हैं। ऐसे ही कुछ मुहूर्त या योगों के नाम हैं सर्वार्थ सिद्धि योग, अमृत सिद्धि योग, द्विपुष्कर योग, त्रिपुष्कर योग, राजयोग, व्यतिपात योग, और रवि योग आदि।
जाने किस योग का क्या है फल
सर्वार्थ सिद्धि योग: यह समस्त कार्यों के लिए सिद्ध माने गए हैं। वार और नक्षत्र के संयोग से सर्वार्थ सिद्धि योग बनता है। इस योग में कोई भी नया काम करना बहुत की शुभ माना गया है। संपत्ति, वाहन आदि इस योग में खरीदना बहुत ही लाभप्रद होता है। सर्वार्थ सिद्धि योग अगर द्वितीया और एकादशी की तिथि पर बन रहा है, तो अशुभ माना जाता है। इस दौरान कोई भी नया काम नहीं शुरू करना चाहिए और कोई भी खरीदारी भी नहीं करनी चाहिए। वहीं सोमवार के दिन रोहिणी, मृगशिरा, पुष्य, अनुराधा और श्रवण नक्षत्र में इस योग के बनने का बहुत महत्व है।
अमृत सिद्धि योग: वार और नक्षत्र के योग से बनने वाला यह योग सभी कार्यों के लिए प्रशस्त है। किंतु रविवार को पंचमी, सोमवार को षष्ठी, मंगल को सप्तमी, बुधवार को अष्टमी, गुरुवार को नवमी, शुक्रवार को दशमी, और शनिवार को एकादशी होने से यह अमृत सिद्धि योग विष योग में परिवर्तित हो जाते हैं। अमृत सिद्धि योग अपने नाम के ही हिसाब से अमृत फल देने वाला होता है। यह योग वार और नक्षत्र के तालमेल से मिलकर बनता है। इस योग के बीच अगर तिथियों का अशुभ मेल हो जाता है तो अमृतयोग नष्ट होकर विषयोग में परिवर्तित हो जाता है। सोमवार के दिन हस्त नक्षत्र होने पर जहां शुभयोग से शुभ मुहूर्त बनता है लेकिन इस दिन षष्ठी तिथि भी हो तो विषयोग बनता है।
द्विपुष्कर योग: यह भी तिथि नक्षत्र एवं वार के सहयोग से बनते हैं। यह योग लाभ और हानि में दोगुना फल देते हैं। जब रविवार, मंगलवार, शनिवार के दिन द्वितीया, सप्तमी व द्वादशी में से कोई तिथि हो एवं इन 2 योगों के साथ उस दिन चित्रा, मृगशिरा व धनिष्ठा नक्षत्र हो तब 'द्विपुष्कर योग' बनता है। 'द्विपुष्कर योग' में जिस कार्य को किया जाता है, वह दोगुना फल देता है।
त्रिपुष्कर योग : यह भी द्विपुष्कर योग के अनुसार बनते हैं। उससे थोड़ा अंतर रखते हुए यह लाभ और हानि दोनों में तिगुना फल देते हैं। इस योग में भूमि संपत्ति से संबंधित कार्य शुभ होते हैं। तिगुना लाभ पाने के लिए इस योग में खरीदारी करना बेहतर होता है। आभूषण आदि की खरीदारी के लिए भी यह योग उत्तम माना जाता है। इसके अतिरिक्त वाहन वस्त्र एवं नए व्यवसाय का आरंभ करने के लिए भी यह अनुकूल फल देने वाला होता है। इस योग में यदि किसी तरह की हानि या अनिष्ट हो जाए तो, वह भी तिगुनी हो जाती है। त्रिपुष्कर योग की शांति के लिए 3 गायों के मूल्य का धन दान देने से इसका प्रभाव कम हो जाता है।
राजयोग: वार, तिथि और नक्षत्र के योग से बनने वाला यह पांचवा योग राजयोग कहलाता है। यह धार्मिक मांगलिक एवं पौष्टिक कार्यों के लिए प्रशस्त माने जाते हैं।
व्यतिपात योग: वर्ष भर पढ़ने वाला यह अशुभ योग है इसीलिए इसे सभी शुभ कार्यों के लिए वर्जित माना जाता है।
रवि योग: यह समस्त कार्यों के लिए प्रशस्त माना जाता है रवि योग सूर्य नक्षत्र एवं दैनिक नक्षत्र के योग से बनते हैं।
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