Kumbh Sankranti: कब है कुंभ संक्रांति? नोट करें सूर्य को अर्घ्य देने की सही विधि और शुभ मुहूर्त
कुंभ संक्रांति (Kumbh Sankranti 2025 Date) का दिन बहुत ही शुभ माना जाता है। यह दिन पूरी तरह से भगवान सूर्य को समर्पित है। इसके साथ ही इस दिन कई शुभ योग का निर्माण हो रहा है। इन योग में स्नान-ध्यान करने से शुभ फलों की प्राप्ति होती है तो आइए इस दिन से जुड़े शुभ योग और पूजा विधि जानते हैं।
धर्म डेस्क, नई दिल्ली। हिंदू धर्म में कुंभ संक्रांति का बहुत ज्यादा महत्व है। इस दिन सूर्य कुंभ राशि में गोचर करते हैं, जिसका स्वामी शनि है। कुंभ संक्रांति पर लोग भगवान सूर्य की आराधना करते हैं। इस दिन पवित्र नदियों में स्नान, दान-पुण्य और पितरों का तर्पण करने से शुभ फलों की प्राप्ति होती है। साथ ही इस दिन (Kumbh Sankranti Date) का व्रत रखने से शनि के प्रभाव से होने वाली कठिनाइयों को कम करने में मदद मिलती है। इस साल यह पर्व 12 फरवरी को मनाया जाएगा, तो आइए शुभ मुहूर्त और सूर्य को अर्घ्य देने की विधि जानते हैं।
कुंभ संक्रांति कब है? (Auspicious Timing For Kumbh Sankranti)
हिंदू पंचांग के अनुसार, माघ पूर्णिमा के दिन भगवान सूर्य कुंभ राशि में गोचर करेंगे। यानी 12 फरवरी को कुंभ संक्रांति मनाई जाएगी। इस पावन दिन पर पुण्य काल दोपहर 12 बजकर 35 मिनट से लेकर शाम 06 बजकर 09 मिनट तक रहेगा।
वहीं, महा पुण्य काल शाम 04 बजकर 18 मिनट से लेकर शाम 06 बजकर 09 मिनट तक रहेगा। इस दौरान गंगा स्नान, दान-पुण्य या अन्य धार्मिक कार्य किए जा सकते हैं।
सूर्य को अर्घ्य देने की विधि (Surya Arghya Ritual)
- साधक सुबह उठकर स्नान करें।
- अर्घ्य शुभ मुहूर्त के अनुसार दें।
- दूध,जल, तिल, गुड़ और रोली से सूर्य देव को अर्घ्य दें।
- भगवान सूर्य को प्रणाम करें और उनके वैदिक मंत्रों का जाप करें।
- सूर्य देव की चालीसा का पाठ करें।
- फिर धूप, दीप और कपूर से सूर्य देव की आरती करें।
- सूर्य भगवान को फल, मिठाई, घर पर बने प्रसाद का भोग लगाएं।
- पूजा के दौरान हुई गलतियों के लिए क्षमा मांगे।
- जल चढ़ाने के दौरान सिर से लोटा नीचें रखें।
- लाल वस्त्र धारण करके सूर्य देव को जल चढ़ाएं।
- सूर्य को अर्घ्य देकर व्रत का समापन करें और सभी लोगों में प्रसाद बांटें।
भगवान सूर्य पूजा मंत्र (Puja Mantra)
- ॐ ह्रीं घृणिः सूर्य आदित्यः क्लीं ॐ।।
- ॐ ह्रीं ह्रीं सूर्याय सहस्रकिरणराय मनोवांछित फलम् देहि देहि स्वाहा।।
- ॐ ऐहि सूर्य सहस्त्रांशों तेजो राशे जगत्पते, अनुकंपयेमां भक्त्या, गृहाणार्घय दिवाकर।।
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