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    ऊर्जा: कृष्णावतार- योगेश्वर श्रीकृष्ण ने भक्तों की रक्षा के लिए मानव रूप में अवतार लेकर संपूर्ण जगत का किया कल्याण

    कृष्ण का अवतार अन्य सभी अवतारों से विशिष्ट है क्योंकि उन्होंने कई महत्वपूर्ण संदेश दिए। उन्होंने जीवन सूत्रों को माला की तरह गूंथकर एक दूसरे से पिरोया। जो भक्त कृष्णयोग का रसपान करेगा उसे सभी संकटों से मुक्ति अवश्य मिलेगी।

    By Bhupendra SinghEdited By: Updated: Mon, 30 Aug 2021 02:51 AM (IST)
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    ज्ञान के तत्वों को प्रभु ने अपनी लीलाओं से रेखांकित किया

    योगेश्वर श्रीकृष्ण ने भक्तों की रक्षा के लिए मानव रूप में अवतार लेकर संपूर्ण जगत का कल्याण किया। उन्होंने स्वयं गीता में उद्घोष किया, ‘जब-जब पापियों द्वारा धर्म की हानि होती है, तब-तब मैं उसकी पुनर्स्थापना के लिए पृथ्वी पर अवतार लेकर दुष्टों का दमन करता हूं।’ द्वापर युग में जब कंस के अत्याचार से पृथ्वी पर पापियों का भार बढ़ता जा रहा था। सर्वत्र अन्याय और अधर्म का वर्चस्व था। संत समाज त्राहिमाम कर उठा। भगवान का नाम लेने वालों को कठोर यातनाएं दी जा रही थीं। ऐसे संकट काल में श्रीहरि विष्णु ‘कृष्णावतार’ में प्रकट हुए। देवताओं ने हर्षध्वनि से पुष्पवर्षा की। सभी दिशाओं में प्रकृति ने अनेक शृंगार किए और मंगल गीत गाए। भगवान का प्राकट्य सृष्टि की वचनबद्धता से प्रेरित माना गया। जब प्राकृतिक व्यवस्था का उल्लंघन हो, नैसर्गिक नियमों का हरण हो और नैतिक मूल्यों का पतन हो तब लोकों में सामान्य संतुलन का अनिवार्य भौतिक परिवर्तन दैवीय विधान है।

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    कृष्ण का अवतार अन्य सभी अवतारों से विशिष्ट है, क्योंकि उन्होंने कई महत्वपूर्ण संदेश दिए। उन्होंने जीवन सूत्रों को माला की तरह गूंथकर एक दूसरे से पिरोया। जीव के वास्तविक रहस्य और सत्य आचरण को बताया। उन्होंने सदा ही धर्म के मार्ग पर पथिक के कर्तव्यों को निर्दिष्ट किया और बार-बार कर्म की कठिन परिभाषाओं का सरल निरूपण किया। मानव के लक्ष्य को साधने की कला उन्होंने सिखाई। धर्म और राजनीति को समाज के सरोकारों से बांधने के सफल प्रयोग किए। अपने व्यवहार से कर्म की व्याख्या पग-पग पर प्रदर्शित की। उन्होंने भक्तियोग व प्रेमयोग के सिद्धांतों का प्रतिपादन किया। जीने की कला, जीवन के मार्ग और जीव के परम उद्धार का सहज ज्ञान कराया। ज्ञान के तत्वों को प्रभु ने अपनी लीलाओं से रेखांकित किया। श्रीकृष्ण के प्रेमयोग का अनुशीलन देवताओं के लिए भी दुर्लभ माना गया। सार यही है कि जो भक्त कृष्णयोग का रसपान करेगा, उसे सभी संकटों से मुक्ति अवश्य मिलेगी।

    - डा. राघवेंद्र शुक्ल