Krishna Shashti 2025: आज कृष्ण षष्ठी पर बन रहे हैं 3 बहुत ही शुभ योग, जानें कान्हा जी की पूजा विधि
पंचांग के अनुसार हर साल भाद्रपद कृष्ण पक्ष अष्टमी पर जन्माष्टमी मनाई जाती है और इसके 6 दिन बाद कृष्ण छठी का पर्व मनाया जाता है। ऐसे में आज यानी 21 अगस्त को कृष्ण छठी मनाई जा रही है। आज इस मौके पर कई शुभ योग बन रहे हैं जिसमें किए गए कार्य आपको शुभ फल प्रदान करते हैं।

धर्म डेस्क, नई दिल्ली। कान्हा जी के जन्मोत्सव की तरह की कान्हा जी की छठी (Krishna Shashti 2025) भी बड़े उत्साह के साथ मनाई जाती है। इस दिन पर विशेष रूप से लड्डू गोपाल की पूजा-अर्चना की जाती है और उन्हें कढ़ी-चावल का भोग लगाया जाता है। ऐसे में चलिए जानते हैं इस विशेष अवसर पर लड्डू गोपाल जी की पूजा विधि।
शुभ योग
- गुरु पुष्य योग - प्रातः 5 बजकर 53 मिनट से रात 12 बजकर 8 मिनट तक
- सर्वार्थ सिद्धि योग - प्रातः 5 बजकर 53 मिनट से रात 12 बजकर 8 मिनट तक
- अमृत सिद्धि योग - प्रातः 5 बजकर 53 मिनट से रात 12 बजकर 8 मिनट तक
- ब्रह्म मुहूर्त - प्रातः 4 बजकर 26 मिनट से प्रातः 5 बजकर 10 मिनट तक
- अभिजित मुहूर्त - सुबह 11 बजकर 58 मिनट से दोपहर 12 बजकर 50 मिनट तक
(Picture Credit: Freepik) (AI Image)
कान्हा जी की पूजा विधि
- सबसे पहले सुबह स्नान आदि से निवृत हो जाएं।
- लड्डू गोपाल को पंचामृत से स्नान कराएं।
- साधारण जल से स्नान कराने के बाद नए वस्त्र और पगड़ी पहनाएं।
- लड्डू गोपाल का शृंगार करें और उन्हें बांसुरी अर्पित करें।
- लड्डू गोपाल को चंदन का तिलक लगाएं और आंखों में काजल लगाएं।
- घर पर तैयार किया गया काजल ज्यादा शुभ माना जाता है।
- कान्हा जी को माखन-मिश्री और कढ़ी-चावल का भोग लगाएं।
- मंगल गीत गाएं और लड्डू गोपाल को झूला झुलाएं।
- कान्हा जी की आरती करें और सभी लोगों में प्रसाद बांटें।
कान्हा जी की आरती
आरती कुंजबिहारी की,
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥
आरती कुंजबिहारी की,
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥
गले में बैजंती माला,
बजावै मुरली मधुर बाला ।
श्रवण में कुण्डल झलकाला,
नंद के आनंद नंदलाला ।
गगन सम अंग कांति काली,
राधिका चमक रही आली।
लतन में ठाढ़े बनमाली
भ्रमर सी अलक,
कस्तूरी तिलक,
चंद्र-सी झलक,
ललित छवि श्यामा प्यारी की,
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥
आरती कुंजबिहारी की,
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥
कनकमय मोर मुकुट बिलसै,
देवता दरसन को तरसैं ।
गगन सों सुमन रासि बरसै ।
बजे मुरचंग,
मधुर मिरदंग,
ग्वालिन संग,
अतुल रति गोप कुमारी की,
श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की ॥
आरती कुंजबिहारी की,
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥
जहां ते प्रकट भई गंगा,
सकल मन हारिणि श्री गंगा ।
स्मरन ते होत मोह भंगा
बसी शिव सीस,
जटा के बीच,
हरै अघ कीच,
चरन छवि श्री बनवारी की,
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥
आरती कुंजबिहारी की,
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥
चमकती उज्ज्वल तट रेनू,
बज रही वृंदावन बेनू ।
चहुं दिसि गोपि ग्वाल धेनू
हंसत मृदु मंद,
चांदनी चंद,
कटत भव फंद,
टेर सुन दीन दुखारी की,
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥
आरती कुंजबिहारी की,
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥
आरती कुंजबिहारी की,
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥
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