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    Lord Shiva Mantra: जानिए, आदि शंकराचार्य ने किस स्तोत्र से की थी भगवान शिव की स्तुति

    Lord Shiva Mantra पंचाक्षर मंत्र की प्रभावशालिता और महिमा का वर्णन करने के लिए ही आदि शंकराचार्या ने पंचाक्षर स्तोत्र का निर्माण किया। इस स्तोत्र में पंचाक्षर मंत्र के हर एक अक्षर से भगवान शिव की स्तुति की गई है। आइए जानते हैं पंचाक्षर स्त्रोत और उसका अर्थ...

    By Jeetesh KumarEdited By: Updated: Sun, 25 Jul 2021 08:05 PM (IST)
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    जानिए, आदि शंकराचार्य ने किस स्तोत्र से की थी भगवान शिव की स्तुति

    Lord Shiva Mantra: भगवान शिव की स्तुति कर उनको प्रसन्न करने के लिए सभी मंत्रों में भगवान शिव का पंचाक्षर मंत्र – ऊं नमः शिवाय। सबसे सरल, सर्व सुलभ और प्रभावशाली है। इसकी महिमा का वर्णन शिव पुराण व कई अन्यशास्त्रों में भी मिलता है। पंचाक्षर मंत्र, पंच महाभूतों का प्रतीक है जिनसे ये सारा सृष्टि निर्मित है। पंचाक्षर मंत्र की प्रभावशालिता और महिमा का वर्णन करने के लिए ही आदि शंकराचार्या ने पंचाक्षर स्तोत्र का निर्माण किया। इस स्तोत्र में पंचाक्षर मंत्र के हर एक अक्षर से भगवान शिव की स्तुति की गई है। भगवान शिव के पूजन में पंचाक्षर मंत्र और स्तोत्र का पाठ करने से सभी मनोकामनाओं की पूर्ति होती है। आइए जानते हैं शंकारचार्य द्वारा निर्मित पंचाक्षर स्त्रोत और उसका अर्थ...

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    शिव पंचाक्षर स्तोत्र -

    नागेंद्रहाराय त्रिलोचनाय भस्मांगरागाय महेश्वराय|

    नित्याय शुद्धाय दिगंबराय तस्मे "न" काराय नमः शिवायः॥

    हे महेश्वर! आप नागराज को हार स्वरूप धारण करने वाले हैं। हे (तीननेत्रों वाले) त्रिलोचन आप भष्म से अलंकृत, नित्य (अनादि एवं अनंत) एवं शुद्ध हैं। अम्बर को वस्त्र सामान धारण करने वाले दिग्म्बर शिव, आपके न् अक्षर द्वारा जाने वाले स्वरूप को नमस्कार ।

    मंदाकिनी सलिल चंदन चर्चिताय नंदीश्वर प्रमथनाथ महेश्वराय|

    मंदारपुष्प बहुपुष्प सुपूजिताय तस्मे "म" काराय नमः शिवायः॥

    चन्दन से अलंकृत, एवं गंगा की धारा द्वारा शोभायमान नन्दीश्वर एवं प्रमथनाथ के स्वामी महेश्वर आप सदामन्दार पर्वत एवं बहुदा अन्य स्रोतों से प्राप्त्य पुष्पों द्वारा पुजित हैं। हे म् स्वरूप धारी शिव, आपको नमन है।

    शिवाय गौरी वदनाब्जवृंद सूर्याय दक्षाध्वरनाशकाय |

    श्री नीलकंठाय वृषभद्धजाय तस्मै"शि" काराय नमः शिवायः॥

    हे धर्म ध्वज धारी, नीलकण्ठ, शि अक्षर द्वारा जाने जाने वाले महाप्रभु, आपने ही दक्ष के दम्भ यज्ञ का विनाश किया था। माँ गौरी केकमल मुख को सूर्य सामान तेज प्रदान करने वाले शिव, आपको नमस्कार है।

    वषिष्ठ कुभोदव गौतमाय मुनींद्र देवार्चित शेखराय|

    चंद्रार्क वैश्वानर लोचनाय तस्मै"व" काराय नमः शिवायः॥

    देवगणो एवं वषिष्ठ, अगस्त्य, गौतम आदि मुनियों द्वार पुजित देवाधिदेव! सूर्य, चन्द्रमा एवं अग्नि आपके तीन नेत्र सामन हैं। हे शिव आपके व् अक्षर द्वारा विदित स्वरूप कोअ नमस्कार है।

    यज्ञस्वरूपाय जटाधराय पिनाकस्ताय सनातनाय|

    दिव्याय देवाय दिगंबराय तस्मै "य" काराय नमः शिवायः॥

    हे यज्ञस्वरूप, जटाधारी शिव आप आदि, मध्य एवं अंत रहित सनातन हैं। हे दिव्य अम्बर धारी शिव आपके शि अक्षर द्वारा जाने जाने वाले स्वरूप को नमस्कारा है।

    पंचाक्षरमिदं पुण्यं यः पठेत शिव सन्निधौ।

    शिवलोकं वाप्नोति शिवेन सह मोदते॥

    जो कोई शिव के इस पंचाक्षर मंत्र का नित्य ध्यान करता है वह शिव के पुण्य लोक को प्राप्त करता है तथा शिव के साथ सुख पूर्वक निवास करता है।

    डिसक्लेमर

    'इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।'