कार्तिक पूर्णिमा के दिन विष्णु जी ने लिया था मत्स्य अवतार, जानें पौराणिक कथा
चिरकाल में राजर्षि सत्यव्रत कृतमाला नदी के स्नान-ध्यान कर रहे थे। उसी समय राजर्षि कृतमाला भगवान भास्कर को अर्घ्य देने हेतु अंजलि में जल लिया तो उनकी हथेली में अल्प आकार की एक मछली आकर बोली-हे राजर्षि! मेरे प्राणों की रक्षा करें।

दिल्ली, लाइफस्टाइल डेस्क। सनातन धार्मिक ग्रंथों की मानें तो चैत्र माह में शुक्ल पक्ष की तृतीया को भगवान श्रीहरि विष्णु का मत्स्य अवतार हुआ था। भगवान श्रीहरि विष्णु के दस अवतारों में प्रथम अवतार मत्स्य है। पुराणों में वर्णित है कि जल प्रलय के समय सृष्टि की रक्षा हेतु भगवान मत्स्य रूप में अवतरित हुए थे। हिंदी में मत्स्य का तात्पर्य मछली से है। दैविक काल से भगवान श्रीहरि विष्णु के मत्स्य अवतार की पूजा-उपासना की जाती है। वर्तमान समय में देश के कई जगहों पर भगवान श्रीहरि विष्णु के मत्स्य रूप का मंदिर हैं। आइए, भगवान नारायण के मत्स्य अवतार की कथा जानते हैं-
मत्स्य अवतार की कथा
चिरकाल में राजर्षि सत्यव्रत कृतमाला नदी के स्नान-ध्यान कर रहे थे। उसी समय राजर्षि कृतमाला भगवान भास्कर को अर्घ्य देने हेतु अंजलि में जल लिया, तो उनकी हथेली में अल्प आकार की एक मछली आकर बोली-हे राजर्षि! मेरे प्राणों की रक्षा करें। मुझे नदी में बड़ी मछलियों से डर लगता है। मुझे ऐसा लगता है कि अन्य छोटी मछलियों की तरह मुझे भी बड़ी मछलियां अपना आहार बना लेंगी।
यह सुन राजर्षि ने मत्स्य यानी मछली को अपने कमंडल में रख दिया। किंतु अल्प समय में ही मछली बड़ी हो गई। यह देख राजर्षि को बेहद आश्चर्य हुआ। तत्क्षण राजर्षि ने मछली को मटके में डाल दिया, किंतु रात्रि के समय मछली पुनः बड़ी हो गई। तत्पश्चात, राजर्षि कृतमाला मछली को सरोवर में डाल मन में सोचने लगे कि यह कोई साधारण मछली नहीं है। अवश्य ही कोई दिव्य रूप हैं। उसी दिन मछली के लिए सरोवर भी कम पड़ गया।
यह देख राजर्षि मछली को प्रणाम कर बोले-आप अवश्य ईश्वर के रूप हैं। हे प्रभु-कृपाकर अपना उद्देश्य बताएं। तदोउपरांत, भगवान श्रीहरि विष्णु प्रकट होकर बोले-हे राजर्षि! असुर हयग्रीव ने वेदों की चोरी कर ली है और समुद्र में आ छिपा है। इसके चलते समस्त लोकों में त्राहिमाम मचा हुआ है। सृष्टि की रक्षा और असुर हयग्रीव का वध करने हेतु मैं मत्स्य रूप में अवतरित हुआ हूं। आज से सातवें दिन जलप्रलय से भूमंडल जल में डूब जाएगी।
सृष्टि की रक्षा हेतु तुम एक नाव तैयार कर लो और प्रलय के दिन समस्त प्राणियों के सूक्ष्म शरीर और सप्तर्षियों समेत नाव पर सवार हो जाना। जब प्रलय आएगा, तो मैं तुम सबको बचाऊंगा। भगवान श्रीहरि विष्णु के वचनानुसार, सातवें दिन प्रलय आया और भगवान श्रीहरि विष्णु ने न केवल समस्त प्राणियों की रक्षा की, बल्कि असुर हयग्रीव का वध कर वेदों को पुनः ब्रह्माजी को लौटा दिया। कालांतर में वेदों का ज्ञान पाकर राजर्षि वैवस्वत मनु कहलाए।
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।