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    जानिए, क्या है उत्तरायण और इसका हिंदू धर्म में महत्व

    By Umanath SinghEdited By:
    Updated: Thu, 13 Jan 2022 09:26 AM (IST)

    धार्मिक ग्रंथों में सूर्य के उत्तरायण और दक्षिणायन के महत्व को बताया गया है। ऐसा कहा जाता है कि जब सूर्य दक्षिणायन होता है तो पूजा जप तप का महत्व बढ़ जाता है। इस समय में पूजा और साधना करने से सभी विकार दूर हो जाते हैं।

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    जानिए, क्या है उत्तरायण और इसका हिंदू धर्म में महत्व

    सनातन धर्म में सूर्य के उत्तरायण होने का विशेष महत्व है। हिंदी पंचांग के अनुसार, 14 जनवरी से लेकर 20 जून तक सूर्यदेव उत्तरायण रहते हैं। इस दौरान सूर्यदेव मकर से लेकर मिथुन राशि में भ्रमण करते हैं। वहीं, 21 जून से लेकर 13 जनवरी सूर्यदेव दक्षिणायन रहते हैं। इस दौरान सूर्यदेव कर्क से लेकर धनु राशि में भ्रमण करते हैं। 14 जनवरी को सूर्यदेव मकर राशि और 21 जून को मिथुन राशि में प्रवेश करते हैं। धार्मिक ग्रंथों में सूर्य के उत्तरायण और दक्षिणायन के महत्व को बताया गया है। ऐसा कहा जाता है कि जब सूर्य दक्षिणायन होता है तो पूजा, जप, तप का महत्व बढ़ जाता है। इस समय में पूजा और साधना करने से सभी विकार दूर हो जाते हैं। स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने इसकी महत्ता का उल्लेख भगवत गीता में किया है। आइए, जानते हैं-

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    क्या है कथा

    भगवान श्रीकृष्ण भागवत गीता में अपने सखा अनुज से कहते हैं- हे अर्जुन! जब सूर्य उत्तरायण हो, दिन का समय हो और पक्ष शुक्ल हो। उस समय अगर कोई ऋषि, मुनि, साधु पुरुष अपने प्राण का त्याग करता है तो वह इस मृत्युभवन पर लौटकर नहीं आता है। वहीं, कृष्ण पक्ष की रात्रि में और सूर्य के दक्षिणायन में अपने प्राग त्यागता है, वह चंद्रलोक को जाता है और उसे पुनःमृत्युलोक में आना पड़ता है। महाभारतकाल में अर्जुन से परास्त होने के बाद ने भीष्म पितामह को किया था। इस युद्ध में युगपुरुष अर्जुन के तीरों के प्रहार से पूरी तरह घायल हो गए थे। हालांकि, भीष्म पितामह इच्छा मृत्यु के कारण जीवित रहे और बाण शैया पर विश्राम करते रहे। जब सूर्य उत्तरायण हुआ तो भीष्म पितामह ने श्रीकृष्ण को प्रणाम कर अंतिम सांस ली।

    महत्व

    धार्मिक ग्रंथों में सूर्य के उत्तरायण को शुभ माना गया है। इसे देवताओं का दिन भी कहा जाता है। इस अवधि में धार्मिक कार्यों का निर्वाह किया जाता है। इनमें शादी, विवाह, मुंडन, गृह प्रवेश आदि शामिल हैं। वहीं, सूर्य के दक्षिणायन शुभ कार्य करने की मनाही है। इसे नकारात्मकता का प्रतीक माना जाता है। हालांकि, इस समय को इच्छा प्राप्ति और भोग-विलास की पूर्ति के लिए श्रेष्ठ माना जाता है। इस समय पूजा, जप, तप करने से व्यक्ति को रोग और शोक से मुक्ति मिलती है। इसे देवताओं के लिए रात्रि काल माना जाता है।

    डिसक्लेमर

    'इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।'