जानिए, महादानी सूर्यपुत्र कर्ण के दान की कथा
एक बार जब भगवान श्रीकृष्ण ने अंग प्रदेश के राजा कर्ण से दान मांगा तो सूर्यपुत्र कर्ण ने उन्हें अपने सोने के दांत तोड़कर भगवान को अर्पित कर दिए थे। इस महादान के चलते भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें तीन वरदान दिए थे।
सनातन धर्म में दान का विशेष महत्व है। कालांतर से वर्तमान समय तक चार पुरुषों की गिनती महादानी पुरुषों में की जाती है। ये चार पुरुष क्रमशः राजा बलि, राजा हरिश्चंद्र, महर्षि दधीचि और सूर्यपुत्र कर्ण हैं। सूर्यपुत्र कर्ण के दान की चर्चा तीनों लोकों में थी। ऐसा कहा जाता है कि महादानी योद्धा और सूर्यपुत्र कर्ण प्रतिदिन सूर्य उपासना के बाद दान दिया करते थे। उस समय बिना किसी हित के कर्ण वचनानुसार दान देते थे। उनकी इस महानता के चलते श्रीकृष्ण उन्हें महादानी कहते थे। भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं-कर्ण दानी नहीं बल्कि महादानी हैं। उन्होंने दान देते समय कभी अपने हित की परवाह नहीं की है। एक बार जब भगवान श्रीकृष्ण ने अंग प्रदेश के राजा कर्ण से दान मांगा, तो सूर्यपुत्र कर्ण ने उन्हें अपने सोने के दांत तोड़कर भगवान को अर्पित कर दिए थे। इस महादान के चलते भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें तीन वरदान दिए थे। उनमें एक वरदान मरणोपरांत कर्ण के अंतिम संस्कार का था। अति दान देने के चलते उनकी मृत्यु भी हुई। हालांकि, उनका नाम इतिहास के पन्नों में स्वर्णिम अक्षरों से लिखा गया है। वर्तमान समय में भी लोग सूर्यपुत्र कर्ण को आदरपूर्वक पुकारते हैं। लेकिन क्या आप महादानी कर्ण के दान की कथा जानते हैं? आइए जानते हैं-
कर्ण के महादान की कथा
महाभारत युद्ध में कर्ण कौरवों का सेनापति था। यह बात जान स्वर्ग नरेश राजा इंद्र बेहद चिंतित हो उठे। उन्हें पता था कि जब तक सूर्यपुत्र कर्ण के पास कुंडल और कवच है। उन्हें कोई परास्त नहीं कर सकता है। यह जान इंद्र साधु रूप धारण कर महादानी कर्ण के पास पहुंचे। उस वक्त राजा कर्ण सूर्य उपासना कर रहे थे। सूर्य उपासना समाप्त होने के बाद कर्ण ने साधु से मिलने का औचित्य जानना चाहा। उस समय साधु ने कहा-आपकी चर्चा तीनों लोकों में है। सभी कहते हैं कि वर्तमान समय में आप सबसे बड़े दानी हैं। आपको राजा बली और राजा हरिश्चंद्र के समतुल्य माना जाता है। मुझ पर विपत्ति आन पड़ी है। आप अपना कुंडल और कवच दान कर दें, तो मेरा भला हो जाएगा।
राजा कर्ण ने तत्काल कवच और कुंडल साधु को दान कर दिए। सूर्यपुत्र कर्ण के दान से प्रसन्न होकर राजा इंद्र अपने रूप में प्रकट हुए और वरदान मांगने को कहा। कर्ण ने कवच और कुंडल दान देने के बाद राजा इंद्र से अमोघ अस्त्र मांगा। कर्ण ने यह वरदान अर्जुन को परास्त करने के लिए मांगा था। हालांकि, महाभारत युद्ध के दौरान दुर्योधन के कहने पर अमोघ अस्त्र का इस्तेमाल घटोत्कच पर कर दिया। महादानी कर्ण की हार का यह प्रमुख कारण रहा। अर्जुन के साथ युद्ध कर महादानी कर्ण को वीरगति प्राप्त हुई। स्वंय भगवान श्रीकृष्ण ने महादानी कर्ण का अंतिम संस्कार किया। इसके अलावा, कई अन्य कथाएं महादानी कर्ण की हैं।
डिसक्लेमर
'इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।'