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    जानिए, उत्तरायण में भीष्म पितामह के शरीर त्याग की कहानी

    By Pravin KumarEdited By:
    Updated: Fri, 28 Jan 2022 10:28 AM (IST)

    सत्यवती ने राजा शांतनु के विवाह प्रस्ताव को स्वीकार करने से पहले एक शर्त रख बोली- वह राजा शांतनु से तभी परिणय सूत्र में बंधेगी। जब राजा शांतनु यह वचन दें कि हस्तिनापुर का राजा उनका पुत्र बनेगा।

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    जानिए, उत्तरायण में भीष्म पितामह के शरीर त्याग की कहानी

    हिंदी पंचांग के अनुसार, माघ माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी को भीष्म अष्टमी मनाई जाती है। इस प्रकार, 8 फरवरी को भीष्म अष्टमी है। इस दिन महाभारत के प्रमुख स्तंभ भीष्म पितामह ने देह त्याग किया था। अत: इस तिथि को भीष्म पितामह की पुण्यतिथि भी कहा जाता है। शास्त्रों में भीष्म अष्टमी के दिन श्राद्ध करने का विधान है। महाकाव्य महाभारत में भीष्म पितामह का वर्णन निहित है। इस महाकाव्य के रचियता वेदव्यास जी हैं।

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    भीष्म पितामह के पिता शांतनु हस्तिनापुर के राजा थे। वहीं, माता गंगा थी। एक बार जब शांतनु आखेट करते-करते वन में दूर निकल गए। शाम ढलने के बाद अंधेरा होने के चलते वे वापस हस्तिनापुर नहीं आ सके। हस्तिनापुर लौटने के क्रम में उन्हें मार्ग में एक आश्रम मिला। जहां उनकी मुलाकात सत्यवती से हुई। उस समय दोनों मन ही मन में एक दूसरे को चाहने लगे। अगले दिन राजा शांतनु ने मन की इच्छा प्रकट कर सत्यवती के पिता के समक्ष विवाह का प्रस्ताव रखा। इस प्रस्ताव को सत्यवती के पिता ने स्वीकार कर लिया।

    वहीं, सत्यवती ने विवाह प्रस्ताव को स्वीकार करने से पहले एक शर्त रख बोली- वह, राजा शांतनु से तभी परिणय सूत्र में बंधेगी। जब राजा शांतनु यह वचन दें कि हस्तिनापुर का राजा उनका पुत्र बनेगा। पिता की इच्छा पूर्ति हेतु भीष्म पितामह ने आजीवन विवाह न करने की प्रतिज्ञा ली। उनके त्याग से प्रसन्न होकर राजा शांतनु ने उन्हें इच्छा मृत्यु का वरदान दिया था। कालांतर में राजा शांतनु की मृत्यु के बाद पांडु राजा बना, लेकिन पांडु की मृत्यु के बाद धृतराष्ट्र राजा बना।

    धृतराष्ट्र हमेशा चाहता था कि उसका वारिस ही हस्तिनापुर का उत्तराधिकारी बने। जब दुर्योधन बड़ा हुआ, तो उसने पांडु के पुत्रों को पांच गांव देकर सब कुछ अपने पास रख लिया। इस द्वेष भावना के साथ-साथ कई अन्य कारणों से महाभारत युद्ध हुआ। इस युद्ध में कौरव साम्राज्य का पतन हो गया। इस युद्ध में अर्जुन ने भीष्म पितामह को परास्त किया था।

    उस वक्त तीरों के प्रहार से भीष्म पूरी तरह घायल हो गए थे, लेकिन भीष्म पितामह इच्छा मृत्यु के कारण जीवित रहे और बाण शैया पर विश्राम करते रहे। पवित्र गीता में भगवान श्रीकृष्ण जी कहते हैं कि जो व्यक्ति सूर्य के उत्तरायण में, दिन के उजाले में, शुक्ल पक्ष में अपने प्राण त्यागता है, वह सत्य व्यक्ति पुन: मृत्यु भवन में लौट कर नहीं आता है। जब सूर्य उत्तरायण हुआ तो भीष्म पितामह ने माघ माह में शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को भगवान श्रीकृष्ण की वंदना कर अंतिम सांस ली।

    डिसक्लेमर

    'इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।'