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क्यों मनाते हैं रक्षा बंधन जाने इन पौराणिक कथाआें से

रक्षाबंधन की परंपरा कैसे शुरू हुर्इ इससे जुड़ी कर्इ पौराणिक कथायें हैं। आइये पंडित दीपक पांडे से जानें इन में कुछ खास कथाआें के बारे में।

By Molly SethEdited By: Published: Sat, 25 Aug 2018 02:07 PM (IST)Updated: Sat, 25 Aug 2018 02:08 PM (IST)
क्यों मनाते हैं रक्षा बंधन जाने इन पौराणिक कथाआें से
क्यों मनाते हैं रक्षा बंधन जाने इन पौराणिक कथाआें से

तीन प्रमुख कथायें

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वैसे तो रक्षाबंधन से जुड़ी कर्इ कहानियां सुनने में आती हैं आैर ये माना जाता है कि इन्हीं के बाद ये पर्व प्रचलन में आया। इनमें से एक कथा भगवान श्री कृष्ण आैर युधिष्ठिर से जुड़ी हुर्इ भी है। इसके बावजूद मुख्य रूप से तीन कथाआें को राखी के तौर पर रक्षा सूत्र बांधने का प्रचलन शुरू करने का कारण माना जाता है। इनमें से दो भगवान विष्णु आैर राजा बलि से संबंधित है जबकि तीसरी कथा देवराज इंद्र आैर बृहसपति जी है। 

जब राजा बलि ने बांधा रक्षा सूत्र

प्रथम कथा कुछ इस प्रकार है कि जब दानवेन्द्र राजा बलि ने 100 यज्ञ पूर्ण कर स्वर्ग का राज्य छीनने का प्रयत्न किया तो इन्द्र आदि देवताओं ने भगवान विष्णु से रक्षा करने की प्रार्थना की, इस पर भगवान वामन अवतार में ब्राह्मण का वेष धारण कर बलि से भिक्षा मांगने पहुँचे। गुरु के मना करने पर भी बलि ने उन्हें तीन पग से नाप लेन योग्य भूमि दान करने का वचन दे दिया। जिसके बाद भगवान ने तीन पग में सारा आकाश पाताल और धरती नाप लिया। इस पर बलि ने अहंकार छोड़ कर विष्णु जी को रक्षा सूत्र बांधा आैर अपनी रक्षा की, इसके बाद भगवान ने राजा बलि को रसातल में भेज दिया। तभी से इस पर्व को रक्षाबंधन के रूप में मनाया जाता है।  भगवान विष्णु द्वारा बलि राजा के अभिमान को चकनाचूर कर देने के कारण यह त्योहार बलेव नाम से भी प्रसिद्ध है। 

विष्णु जी आैर बलि से जुड़ी अन्य कथा

कहते हैं जब बाली रसातल में चला गया तब बलि ने अपनी भक्ति के बल से विष्णु जी से रात-दिन अपने सामने रहने का वचन ले लिया। भगवान के घर न लौटने से परेशान लक्ष्मी जी को नारद जी ने एक उपाय बताया। उस उपाय का पालन करते हुए लक्ष्मी जी ने राजा बलि के पास जाकर उसे रक्षा सूत्र बांधकर अपना भाई बना लिया। इसके बाद उन्होंने बलि से अपने पति को वापस मांग लिया आैर अपने साथ विष्णु लोक ले आयीं। उस दिन श्रावण मास की पूर्णिमा तिथि थी, तभी से इस दिन रक्षाबंधन की परंपरा प्रारंभ हुर्इ। 

इंद्राणी ने बनार्इ इंद्र के लिए राखी 

इसी तरह भविष्य पुराण में वर्णन मिलता है कि देव और दानवों में जब युद्ध शुरू हुआ आैर दानव हावी होते नज़र आने लगे, तब देवराज इन्द्र घबरा कर बृहस्पति के पास गये। सारी परिस्थिति बता कर इंद्रदेव ने देवगुरू से मार्ग दर्शन करने का अनुरोध किया। ये सब बातें वहां बैठी इन्द्र की पत्नी इंद्राणी सुन रही थीं। उन्होंने रेशम के धागे को मन्त्रों की शक्ति से पवित्र करके देवगुरू को दिया। बृहसपति जी ने वहीं रक्षा सूत्र कवच के रूप में इंद्राणी के पति के हाथ पर बांध दिया। इसके बाद देवताआें को इस युद्घ में विजय प्राप्त हुर्इ। संयोग से वह श्रावण पूर्णिमा का दिन था, आैर एेसी मान्यता के कारण कि इन्द्र इस लड़ाई में उसी धागे की मन्त्र शक्ति से विजयी हुए थे, इस दिन राखी का त्योहार मनाया जाने लगा।  


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