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मान्यताओं में क्या मंगल के जन्म की कथा, कहां होती है मंगलदोष की पूजा

मंगल ग्रह से आमतौर पर लोग डरते है लेकिन जिसका नाम ही मंगल हो वह अमंगल कैसे कर सकता है। यह ग्रह मंगल देव है लेकिन अशुभ नहीं है। जन्म कुण्डली में हर ग्रह शुभ और अशुभ फल देते है।

By Shilpa SrivastavaEdited By: Published: Tue, 06 Oct 2020 09:40 AM (IST)Updated: Tue, 06 Oct 2020 09:40 AM (IST)
मान्यताओं में क्या मंगल के जन्म की कथा, कहां होती है मंगलदोष की पूजा
मान्यताओं में क्या मंगल के जन्म की कथा, कहां होती है मंगलदोष की पूजा

मंगल ग्रह से आमतौर पर लोग डरते है लेकिन जिसका नाम ही मंगल हो वह अमंगल कैसे कर सकता है। यह ग्रह मंगल देव है लेकिन अशुभ नहीं है। जन्म कुण्डली में हर ग्रह शुभ और अशुभ फल देते है। ऐसे ही मंगल ग्रह भी दोनों तरह के फल देते है। यह ग्रह सदैव सभी के लिए कौतुहल यानि चर्चा का विषय रहा हैं। ज्योतिषविद् अनीष व्यास ने बताया कि ज्योतिष में मंगल देव को काल पुरूष का पराक्रम माना गया है। ग्रह मण्डल में इन्हें सेनापति का पद दिया गया है। मंगल देव पराक्रम, स्फूर्ति, साहस, आत्मविश्वास, धैर्य, देश प्रेम, बल, रक्त, महत्वकांक्षा एवं शस्त्र विद्या के अधिपति माने गए है। अग्नि तत्व होने से मंगल सभी प्राणियों को जीवन शक्ति देता है। यह प्रेरणा, उत्साह एवं साहस का प्रेरक होता है।

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मंगलदेव की जन्म कथा:

भगवान शिव की एक बार अंधकासुर नामक दैत्य ने उपासना की। शिव जी ने प्रसन्न होकर वरदान मांगने के लिए कहा। अंधकासुर ने वरदान मांगा कि मेरे रक्त की बूंदे जहां पर भी गिरे वहीं पर मैं फिर से जन्म लेता रहूं। शिवजी ने वरदान दे दिया। इस वरदान को पाकर दैत्य अंधकासुर ने चारों ओर तबाही फैला दी। शिवजी के इसी वरदान स्वरूप उसे कोई हरा नहीं सकता। इस दैत्य के अत्याचार से परेशान जनता ने शिव आराधना की और कहा कि आप इस संकट से छुटकारा दिलाएं। तब शिवजी और दैत्य अंधकासुर के मध्य घनघोर भीषण युद्ध हुआ। भगवान शिवजी जितनी बार अपने त्रिशूल से अंधकासुर को मारते और उसका रक्त धरती पर गिरते ही वह पुनः जीवित हो जाता। इस प्रकार युद्ध लड़ते हुए शिवजी के पसीने की बूंदें धरती पर गिरी, जिससे धरती दो भागों में फट गई और मंगल ग्रह की उत्पति हुई। शिवजी के त्रिशूल के वार से घायल अंधकासुर का सारा रक्त इस नए मंगल ग्रह में मिल गया और धरती लाल हो गई। अंधकासुर का अन्त हुआ। शिवजी ने इस नए ग्रह को पृथ्वी से अलग कर ब्राह्मड में फेंक दिया। यही कारण है कि मंगलदोष की शांति के लिए मंगलनाथ मंदिर में दर्शन और पूजा अर्चना के लिए लोग आते हैं। इस मंदिर में मंगल देव यानि शिव स्वरूप हैं।

मंगल भगवान का स्वरूप:

नवग्रहों में मंगल भगवान भूमि और भ्राता के रूप में जाने जाते है। इन्हें भू पुत्र, अंगारक और खुज नाम से भी जाना जाता है। मंगलदेव को चार हाथ वाले त्रिशूल और गदा धारण किए हुए दर्शाया गया है। यदि कुण्डली में मंगल ग्रह अशुभ स्थिति में है तो मंगलनाथ की पूजा से मंगल ग्रह की शांति होती हैं। व्यक्ति ऋण-मुक्त होकर धन लाभ ¬प्राप्त करता है। मंगल ग्रह का रत्न है, मूँगा। मूँगा धारण करने पर अशुभ परिणाम कम हो जाते है।

किस दिन होती है विशेष पूजा?

मंगलनाथ मंदिर में प्रतिवर्ष मार्च में आने वाली अंगारक चतुर्थी को विशेष पूजा अर्चना होती है। इस दिन यहां पर विशेष यज्ञ हवन किए जाते है। कहा जाता है कि इस दिन पूजा करने से मंगलदेव तुरंत ही प्रसन्न हो जाते हैं।

भात पूजा द्वारा शांति:

मंगलनाथ मंदिर में भात पूजा का विशेष महत्व है। भात पूजा के माध्यम से मंगल दोष दूर किया जाता है। इस पूजा की व्यवस्था प्रबंधन समिति के द्वारा किया जाता है।

डिसक्लेमर

'इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी। '

 


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