Motivational Story: क्रोध पर काबू पाना क्यों होता है जरूरी? पढ़ें बाड़े की कील की प्रेरक कथा
Prerak Kahani हर दिन उसकी लड़ाई किसी न किसी से होता रहती थी। सेठ अपने बेटे की इस आदत से परेशान हो चुका था। बहुत सोच विचार के बाद एक दिन पिता ने उसे कीलों से भरा हुआ एक थैला दिया।
Prerak Kahani : व्यक्ति का आचरण उसके व्यक्तित्व का परिचायक होता है। हमें किसी भी मनोदशा में क्रोध से बचना चाहिए। क्रोध से हम दूसरों के साथ-साथ खुद को नुकसान पहुंचाते हैं। क्रोध के आवेश क्षणिक पल में कुछ ऐसा कर जाते हैं जिसका पछतावा हमें जीवन भर रहता है। आज हम क्रोध को काबू में रखने को लेकर एक कहानी का वर्णन करेंगे जिसका नाम बाड़े की कील है।
एक नगर में मोहन दास सेठ रहता था जो अपने लड़के से बहुत प्यार करता था। लेकिन सेठ का लड़का बहुत गुस्सैल था। छोटी सी छोटी बात पर अपना आप खो बैठता था। हर दिन उसकी लड़ाई किसी न किसी से होता रहती थी। सेठ अपने बेटे की इस आदत से परेशान हो चुका था। बहुत सोच विचार के बाद एक दिन पिता ने उसे कीलों से भरा हुआ एक थैला दिया। थैला देते हुए उन्होंने कहा कि जब भी तुम्हें गुस्सा आये तो इस थैले में से एक कील निकालकर बाड़े में ठोक देना।
पहले दिन सेठ के लड़के को 50 बार गुस्सा आया था। उसने बाड़े में उतने कीलें ठोंक दी। लेकिन धीरे-धीरे बाड़े में कीलों को ठोंकने की संख्या घटने लगी थी। लड़के को लगा कि कील ठोंकने में मेहनत क्यों किया जाए बल्कि उससे अच्छा है कि अपने क्रोध पर काबू किया जाए। लड़का कुछ ही दिनों में पुरी तरह से शांत रहने लगा था। जब मोहन दास को यह पता चला तो उन्होंने कहा कि अब जिस दिन तुम एक बार भी गुस्सा ना करो इस बाड़े से एक कील निकाल निकाल देना।
लड़के ने ऐसा करना शुरु किया लेकिन काफी वह दिन भी आया जब लड़के ने बाड़े में लगी आखिरी कील भी निकाल दी। लड़के ने अपने पिता को ख़ुशी से इस बात को बताया। तब मोहन दास उसका हाथ पकड़कर उस बाड़े के पास लेकर गए। उन्होंने कहा कि तुमने अच्छा काम किया लेकिन क्या इन छेदों को देख पा रहे हो। लड़के को पिता जी ने समझाया कि अब वो बाड़ा कभी भी वैसा नहीं बन सकता जैसा वो पहले था।
कहानी की शिक्षा जब हम क्रोध करते हैं तो हमारे शब्द भी इसी तरह सामने वाले व्यक्ति के दिल पर गहरे घाव छोड़ जाते हैं।
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