श्रृष्टि और शास्त्रों के उद्धार के लिए भगवान विष्णु ने लिया था मत्स्य अवतार, जानिए क्या है इससे जुड़ी कथा
वेद एवं पुराणों में भगवान विष्णु के 10 प्रमुख स्वरूपों का वर्णन मिलता है जिनमें सर्वप्रथम मत्स्य अवतार हैं। भगवान विष्णु ने मत्स्य रूप सृष्टि के उद्धार और शास्त्रों की रक्षा के लिए धारण किया था। आज हम इसी विषय पर चर्चा करेंगे और जानेंगे कि क्यों भगवान विष्णु ने लिया था मत्स्य रूप और कैसे उन्होंने किया था संसार का उद्धार।

नई दिल्ली, आध्यात्म डेस्क; भगवान विष्णु को सृष्टि का पालनहार अथवा संचालक माना जाता है। यह बात तो हम सभी जानते हैं कि भगवान विष्णु के 10 अवतारों में से एक मत्स्य अवतार हैं। उन्होंने यह स्वरूप सृष्टि के अंत में लिया था। बता दें कि जब प्रलय आने में कुछ ही समय बचा हुआ था, तब उन्होंने सृष्टि के उद्धार के लिए यह रूप धारण किया था। शास्त्रों में वर्णित भगवान विष्णु के सभी अवतारों के पीछे कुछ ना कुछ उद्देश्य अवश्य छिपा हुआ है और उनसे जुड़ी अद्भुत कथाएं भी ऋषि एवं मुनियों द्वारा वेद-ग्रंथों में वर्णन कई वर्षों पहले किया गया था, जिसका श्रवण और पाठन आज भी किया जाता है। आज हम भगवान विष्णु के मत्स्य अवतार के विषय में जानेंगे कि कैसे उनके द्वारा संसार का उत्थान हुआ था?
क्यों धारण किया था भगवान विष्णु ने मत्स्य रूप?
किंवदंतियों के अनुसार, एक बार एक प्रतापी राजा जिसका नाम सत्यव्रत था, कृतमाला नदी में स्नान कर रहा था। स्नान के पश्चात जब सूर्य देव को तर्पण के लिए अपने हाथ उठाया तो उसकी अंजलि में एक छोटी सी मछली की आ गई। राजा सत्यव्रत ने मछली को पुनः नदी में छोड़ दिया। लेकिन तभी मछली बोली कि 'राजन में इस जल में बड़े-बड़े जीव रहते हैं जो छोटे जीवों को मारकर खा जाते हैं। कृपया मेरे प्राणों की रक्षा करें।' तब सत्यव्रत के हृदय में उस मछली के लिए दया उत्पन्न हुई और वह उस मछली को अपने कमंडल में रखकर अपने घर ले आया।
अगली सुबह जब सत्यव्रत नींद से उठा, तब मछली का शरीर इतना बड़ा हो चुका था कि कमंडल भी छोटा पड़ने लगा था। तब मछली बोली कि 'राजा मेरे रहने के लिए कोई और स्थान हो तो कृपया ढूंढिए। मैं इसमें नहीं रह पा रही हूं।' तब सत्यव्रत ने मछली को कमंडल से निकालकर पानी के बड़े मटके में रख दिया। रात भर बाद मटका भी मछली के लिए छोटा पड़ने लगा। ऐसा करते-करते मछली का आकार इतना बड़ा हो गया कि उसे सरोवर में डालना पड़ा। कुछ समय बाद वह इतनी बड़ी हो गई कि सरोवर भी उसके लिए छोटा पड़ गया और उसके बाद उसे समुद्र में डाल दिया गया।
आश्चर्य की बात यह थी कि विशालकाय समुद्र की मछली के लिए छोटा पड़ गया। तब सत्यव्रत ने बड़े ही विनम्र स्वर में पूछा कि 'आप कौन हैं, जिन्होंने सागर को भी डुबो दिया है?' तब भगवान विष्णु ने उत्तर दिया कि 'मैं हयग्रीव नामक दैत्य के वध के लिए आया हूं। जिसने छल वेदों को चुरा लिया है और उसके कारण जगत में चारों ओर अज्ञानता और अधर्म फैल गया है।' भगवान विष्णु आगे कहा कि 'आज से 7 दिन के बाद पृथ्वी पर प्रलय आएगी और वह समय बहुत ही भयानक होगा। संपूर्ण पृथ्वी जल मग्न हो जाएगी। जल के अतिरिक्त यहां कुछ भी नहीं बचेगा। तब आपके पास एक नाव पहुंचेगी और उस समय आप सभी प्रकार के जरूरी अनाज, औषधि, बीज एवं सप्त ऋषियों को साथ लेकर उस नाव पर सवार हो जाएं। मैं उसी समय आपसे फिर मिलुंगा।'
सत्यव्रत ने यह भगवान का आदेश मानकर स्वीकार किया और सातवें दिन जब पृथ्वी पर प्रलय चक्र ने अपना आकार बढ़ाना शुरू किया और समुद्र सीमाओं को लांघ कर सब कुछ जल मग्न करने लगी, तब उसी समय सत्यव्रत को एक नाव दिखा। आदेशानुसार सत्यव्रत ने नाव में सप्त ऋषियों को नाव में सम्मानपूर्वक चढ़ाया, साथ महत्वपूर्ण अनाज, औषधि को भरकर सत्यव्रत भी उसी नाव पर सवार हो गया। सागर के वेग के कारण नाव अपने आप चलने लगी। चारों ओर पानी के अलावा और कुछ नहीं दिखाई दे रहा था। इसी बीच सत्यव्रत को मत्स्य रूप में भगवान दिखे और श्रीहरि से आत्मज्ञान पाकर सत्यव्रत और सप्तऋषि धन्य हो धन्य हो गए। जब प्रकोप शांत हुआ, तब भगवान ने हयग्रीव का वध कर सभी वेद वापस छीन लिए और ब्रह्मा जी को वापस सौंप दिए। इस प्रकार भगवान विष्णु ने मत्स्य रूप धारण कर वेदों का उद्धार किया तथा प्राणियों का कल्याण किया।
डिसक्लेमर- इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।