Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    गणपति के 8 अवतारों में से आठवें हैं धूम्रवर्ण जानें इनकी कहानी

    By Molly SethEdited By:
    Updated: Wed, 12 Dec 2018 09:43 AM (IST)

    श्री गणेश ने मानव जाति के कष्टों का हरण करने के लिए 8 बार अवतार लिया। उन्ही में से एक थे धूम्रवर्ण उनकी कहानी सुनिए पंडित दीपक पांडे से।

    गणपति के 8 अवतारों में से आठवें हैं धूम्रवर्ण जानें इनकी कहानी

    गणेश के अवतार 

    पौराणिक कथाआें के अनुसार मानव जाति के कल्याण के लिए अनेक देवताआें ने कर्इ बार पृथ्वी पर अवतार लिए हैं। उसी प्रकार गणेश जी ने भी आसुरी शक्तियों से मुक्ति दिलाने के लिए अवतार लिए हैं। श्रीगणेश के इन अवतारों का वर्णन गणेश पुराण, मुद्गल पुराण, गणेश अंक आदि अनेक ग्रंथो से प्राप्त होता है। इन अवतारों की संख्या आठ बतार्इ जाती है आैर उनके नाम इस प्रकार हैं, वक्रतुंड, एकदंत, महोदर, गजानन, लंबोदर, विकट, विघ्नराज, और धूम्रवर्ण। इस क्रम में आज जानिए श्रीगणेश के धूम्रवर्ण अवतार के बारे में।  

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    ये भी पढ़ें: गणपति के 8 अवतारों में से एक हैं वक्रतुंड जानें इनकी कहानी

     

    अहंकार के अंत के लिए प्रकट हुए धूम्रवर्ण

    जब ब्रह्मा ने कर्म अध्यक्ष पद सौंपा तो इससे सूर्य देव के मन में अहंकार का प्रादुर्भाव हुआ आैर उसी क्षण उन्हें छींक आ गई। जिससे एक महाकाय सुंदर पुरुष उत्पन्न हुआ। दैत्य गुरू शुक्राचार्य ने उसे अपना शिष्य घोषित कर अहंतासुर नाम दिया। उसने भगवान श्री गणेश के मंत्र से उनकी कठोर तपस्या कर ब्रह्मांड विजय का वरदान प्राप्त किया। परिणाम स्वरुप उसने तीनों लोकों को जीत लिया। चारों ओर असुरों का अत्याचार बढ़ गया जिनसे त्रस्त देवताओं ने उपवास रखकर श्री गणेश के धूम्र अवतार की उपासना कि, इससे प्रसन्न होकर भगवान धूम्रवर्ण ने युद्ध में अपने पाश से लगभग पूरी असुर सेना को मार डाला। अंत में अहंतासुर भयभीत होकर भगवान की शरण में चला गया इस पर भगवान ने उसे ऐसे स्थान पर रहने का आदेश दिया जहां उनकी पूजा नहीं होती हो आैर जहां कहीं बिना ईश्वर का नाम लिए धर्म कार्य किया जा रहा हो तो वो वहीं रह कर अपने आसुरी स्वभाव के अनुसार कोई शुभ कार्य पूर्ण ना होने दे। 

    ये भी पढ़ें: गणपति के 8 अवतारों में से एक हैं एकदंत जानें इनकी कहानी

    धूम्रवर्ण के द्वारा अहंतासुर के परास्त होने की कथा 

    एक बार श्री ब्रह्मा जी सूर्य देव को कर्म अध्यक्ष का पद सौंप दिया, जिसके चलते उनके अहम् भाव जाग्रत हो गया। ये भाव पैदा होते ही सूर्य देव को छींक आ गई आैर उससे एक विशाल बलशाली दैत्याकार पुरूष प्रकट हुआ। दैत्य स्वरूप होने के कारण वह शुक्राचार्य का शिष्य बना जिन्होंने उसे अहंतासुर नाम दिया। दैत्यगुरु ने उसको श्री गणेश के मंत्र की दीक्षा दी आैर वन में जाकर पूर्ण भक्ति भाव से उनकी कठोर तपस्या करने के लिए कहा। हजारो वर्ष तक निष्ठा पूर्वक तपस्या के बाद भगवान श्री गणेश उसके समक्ष प्रकट हुए और वर मांगने को कहा। तब अहंतासुर ने उनसे ब्रह्माण्ड के राज्य के साथ साथ अमरता और अजेय होने का वरदान मांगा। श्री गणेश ने उसे तथास्तु कह कर इच्छित वर प्रदान कर दिया। इस सूचना से शुक्राचार्य अत्यंत प्रसन्न हुए आैर अहंतासुर को दैत्यों का राजा नियुक्त कर दिया। राजा बनने के बाद उसने विवाह किया और उसके दो पुत्र हुए। इसके बाद उसने अपने ससुर तथा गुरु के साथ विश्वविजय की योजना बनाई आैर कार्य प्रारम्भ कर दिया। उसके शुरू किए युद्ध से सर्वत्र हाहाकार मच गया। पृथ्वी अहंतासुर के अधीन हो गई, उसके बाद उसने स्वर्ग पर आक्रमण कर दिया। तब देवता भी उसके सामने टिक नहीं पाये आैर स्वर्ग पर भी अहंतासुर का अधिकार हो गया। इसके बाद पाताल आैर नागलोक में में भी उसने अपना राज्य स्थापित कर लिया। 

    इसके पश्चात असहाय देवताओं ने शिव जी से रक्षा का उपाय पूछा आैर उन्होंने गणपति की उपासना करने के लिए कहा। देवताआें की पूजा अर्चना आैर करुण पुकार पर गणेश जी धूम्रवर्ण अवतार लेकर अवतरित हुए आैर उनकी रक्षा का आश्वासन दिया। उन्होंने देवर्षि नारद के माध्यम से अहंतासुर के पास समाचार भेजा कि वह श्री धूमवर्ण की शरण में आ जाये और समस्त अत्याचारों को रोक दे। इस पर दैत्यराज अहंतासुर अत्यंत क्रोधित हो गया और उसने नारद को भला बुरा कहते हुए सन्देश के अनुसार चलने से इंकार कर दिया। इस  की जानकारी मिलते ही क्रोधित श्री धूम्रवर्ण ने अपना पाश असुर सेना पर छोड़ दिया, जिसके प्रभाव से समस्त असुल काल का ग्रास बनने लगे। ये देख कर भयभीत अहंतासुर, शुक्राचार्य के पास जा कर संकट का समाधान पूछने लगा। इस पर दैत्यगुरु ने उसे धूम्रवर्ण की शरण में जाने के लिए कहा। अहंतासुर तुरंत धूम्रवर्ण की शरण में जाकर क्षमा याचना करने लगा। तब श्री गणेश ने उसे प्राणदान दिया आैर सभी दुष्ट कर्मों को छोड़ने के लिए कहा। साथ ही आदेश दिया कि जहा भी उनकी पूजा न होती हो वहां जाकर वह शुभकार्य में बाध डाले। 

    ये भी पढ़ें: गणपति के 8 अवतारों में से सातवें हैं विघ्नराज जानें इनकी कहानी