12 प्रकार के हैं मुख्य काल सर्पदोष, नागपंचमी पर होता है इनका निवारण
पंडित दीपक पांडे बता रहे हैं कि 12 प्रकार के कालसर्प दोषों के बारे में जिनका निवारण नागपंचमी के दिन पूजा से किया जा सकता है।
क्या होता है कालसर्प दोष
भारतीय ज्योतिष में जन्म कुंडली के राहु और केतु के मध्य विभिन्न ग्रहों की स्थिति होने पर कालसर्प योग का निर्माण होता है। कालसर्प योग के बारे में कहा जाता है कि जिसकी कुंडली में यह योग होता है उसे अपने जीवन में कई प्रकार की परेशानियों का सामना करना पड़ता। यह आपकी नौकरी, विवाह, संतान, सम्मान, पैसा और भी कई अन्य समस्याओं से सम्बन्धित हो सकते हैं। राहु केतु विभिन्न भाव में स्थित होकर 12 प्रकार के कालसर्प दोष का निर्माण करते हैं। वैसे तो भारतीय ज्योतिष में 144 तरह का कालसर्प योग होता है किंतु 12 तरह के कालसर्प योग अति प्रसिद्ध है। शास्त्रों के अनुसार राहु और केतु 180 डिग्री में होते हैं और जब इन के मध्य में समस्त 7 ग्रह आ जाते हैं तो कालसर्प योग बनता है। आइए जानें कि इन 12 में से कौन सा कालसर्प दोष किस भाव में होता है।
अनंत कालसर्प दोष
राहु लग्न में हो और केतु सप्तम भाव में स्थित हो तथा सभी अन्य ग्रह सप्तम से द्वादश, एकादशी, दशम, नवम, अष्टम और सप्तम में स्थित हो तो यह अनंत कालसर्प योग कहलाता है।
कुलिक कालसर्प दोष
राहु द्वितीय भाव में तथा केतु अष्टम भाव में हो और सभी ग्रह इन दोनों ग्रहों के बीच में हो तो कुलिक नाम कालसर्प योग होगा।
वासुकी कालसर्प दोष
राहु तृतीय भाव में स्थित है तथा केतु नवम भाव में स्थित होकर जिस योग का निर्माण करते हैं तो वह दोष वासुकी कालसर्प दोष कहलाता है।
शंखपाल कालसर्प दोष
राहु चतुर्थ भाव में तथा केतु दशम भाव में स्थित होकर अन्य ग्रहों के साथ जो निर्माण करते हैं तो वह कालसर्प दोष शंखपाल के नाम से जाना जाता है।
पद्य कालसर्प दोष
चतुर्थ स्थान पर दिए दोष के ऊपर का है पद्य कालसर्प दोष इसमें राहु पंचम भाव में तथा केतु एकादश भाव में साथ में एकादशी पंचांग 8 भाव में स्थित हो तथा इस बीच सारे ग्रह हों तो पद्म कालसर्प योग बनता है।
महापद्म कालसर्प दोष
राहु छठे भाव में और केतु बारहवे भाव में और इसके बीच सारे ग्रह अवस्थित हों तो महापद्म कालसर्प योग बनता है।
तक्षक कालसर्प दोष
जन्मपत्रिका के अनुसार राहु सप्तम भाव में तथा केतु लग्न में स्थित हो तो ऐसा कालसर्प दोष तक्षक कालसर्प दोष के नाम से जाना जाता है।
कर्कोटक कालसर्प दोष
केतु दूसरे स्थान में और राहु अष्टम स्थान में कर्कोटक नाम कालसर्प योग बनता है।
शंखचूड़ कालसर्प दोष
सर्प दोष जन्मपत्रिका में केतु तीसरे स्थान में व राहु नवम स्थान में हो तो शंखचूड़ नामक कालसर्प योग बनता है।
घातक कालसर्प दोष
कुंडली में दशम भाव में स्थित राहु और चतुर्थ भाव में स्थित केतु जब कालसर्प योग का र्निमाण करता है तो ऐसा कालसर्प दोष घातक कालसर्प दोष कहलाता है।
विषधर कालसर्प दोष
केतु पंचम और राहु ग्यारहवे भाव में हो तो विषधर कालसर्प योग बनाते हैं।
शेषनाग कालसर्प दोष
कुंडली में राहु द्वादश स्थान में तथा केतु छठे स्थान में हो तथा शेष 7 ग्रह नक्षत्र चतुर्थ तृतीय और प्रथम स्थान में हो तो शेषनाग कालसर्प दोष का निर्माण होता है।
शिव करते हैं काल सर्प का शमन
भगवान शंकर जिन्होंने जगत के कल्याण के लिए कालकूट विष को अपने गले में धारण कर लिया उनके अतिरिक्त कालसर्प आदि ग्रह दोषों का शमन करने में और कौन समर्थ है। इसलिए जिस किसी को भी इस योग से कष्ट मिल रहा हो वह महाकाल रूद्र की आराधना करे। ऐसा करने से कालसर्प दोष से स्वत: ही मुक्ति मिल जाती है। अतः सावन मास में नागपंचमी पर पूजन कालसर्प दोष शांति का सही समय है, और जो व्यक्ति पूर्व में कालसर्प दोष की शांति कर चुके हैं उन्हें भी इस नाग पंचमी पर कालसर्प दोष की शांति करनी चाहिए। इसके लिए नांग पंचमी पर प्रात: काल किसी प्राचीन शिव मंदिर में जा कर शिवलिंग को दूध से स्नान करायें। नाग और मोर की आकृति को शिवलिंग पर चढ़ाएं और पुष्पहार अर्पित करें। साथ ही एक धतूरा अवश्य चढ़ाएं।