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Keshanta Sanskar: हिंदू धर्म के 16 संस्कारों में से एक है केशान्त संस्कार, जानें क्या है इसका महत्व

Keshanta Sanskar हिन्दू धर्म में 16 संस्कार किए जाते हैं। इनमें से एक संस्कार केशान्त है। नवजात शिशु का प्रथम मुंडन पहले या तीसरे वर्ष में किया जाता है जिसके बारे में हम आपको पहले बता चुके हैं। यह संस्कार गर्भ के केशमात्र दूर करने के लिए होता है।

By Shilpa SrivastavaEdited By: Published: Sat, 26 Sep 2020 09:00 AM (IST)Updated: Sun, 27 Sep 2020 09:35 AM (IST)
Keshanta Sanskar: हिंदू धर्म के 16 संस्कारों में से एक है केशान्त संस्कार, जानें क्या है इसका महत्व
हिंदू धर्म के 16 संस्कारों में से एक है केशान्त संस्कार

Keshanta Sanskar: हिन्दू धर्म में 16 संस्कार किए जाते हैं। इनमें से एक संस्कार केशान्त है। नवजात शिशु का प्रथम मुंडन पहले या तीसरे वर्ष में किया जाता है जिसके बारे में हम आपको पहले बता चुके हैं। यह संस्कार गर्भ के केशमात्र दूर करने के लिए होता है। उसके बाद इस केशान्त संस्कार में भी मुंडन किया जाता है। इस संस्कार को इसलिए किया जाता है जिससे बालक वेदारम्भ तथा क्रिया-कर्मों के लिए अधिकारी बन सके। केशान्त 

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का अर्थ है बालों का अंत करना होता है। शिक्षा प्राप्ति से पहले यह संस्कार करना प्राचीन काल में बेहद जरूरी होती थी। वहीं, प्राचीन काल में गुरुकुल से शिक्षा प्राप्त करने के बाद भी यह संस्कार किया जाता था।

ज्योतिषाचार्य पं. गणेश प्रसाद मिश्र ने बताया, वेदारम्भ संस्कार में ब्रह्मचारी, गुरुकुल में वेदों का स्वाध्याय तथा अध्ययन करता है। प्राचीन काल में ब्रह्मचारी, ब्रह्मचर्य का पूर्ण पालन करता है तथा उसके लिए केश और दाढ़ी धारण करने का विधान था। जब विद्याध्ययन पूर्ण हो जाता है तब गुरुकुल में ही केशान्त संस्कार सम्पन्न होता है। इस संस्कार में भी आरम्भ में सभी संस्कारों की तरह गणेशादि देवों का पूजन किया जाता था। साथ ही यज्ञ भी किया जाता था। उसके बाद दाढ़ी बनाने की क्रिया सम्पन्न की जाती थी। इसी के चलते इसे श्मश्रु संस्कार भी कहते हैं।

'द केशानाम् अन्तः समीपस्थितः श्मश्रुभाग इति ने व्युत्पत्त्या केशान्तशब्देन श्मश्रूणामभिधानात् श्मश्रुसंस्कार॥ एव केशान्तशब्देन प्रतिपाद्यते। अत एवाश्वलायनेनापि "श्मश्रूणीहोन्दति' इति श्मश्रूणां संस्कार एवात्रोपदिष्टः।'

पूर्वोक्त विवरण में यह स्पष्ट किया गया है कि केशान्त शब्द से श्मश्रु (दाढ़ी) का ही ग्रहण होता है। अतः श्मश्रु-संस्कार ही केशान्त संस्कार है। इसे गोदान संस्कार भी कहा जाता है। क्योंकि गौ या केश (बालों) को भी कहते हैं और केशों का अन्त भाग अर्थात् समीप स्थित श्मश्रु भाग ही कहलाता है।

'गावो लोमानि केशा दीयन्ते खण्ड्यन्तेऽस्मिन्निति . व्युत्पत्त्या 'गोदानं' नाम ब्राह्मणादीनां षोडशादिषु वर्षेषु कर्तव्यं केशान्ताख्यकोच्यते।'

गौ अर्थात् लोम-केश जिसमें काट दिए जाते हैं। इस व्युत्पत्ति के अनुसार 'गोदान' पद यहां ब्राह्मण आदि वर्णों के सोलहवें वर्ष में करने योग्य केशान्त नामक कर्मका वाचक है।' यह संस्कार केवल उत्तरायण में किया जाता है। तथा प्रायः षोडशवर्ष यानी 16वें वर्ष में होता है।

कब किया जाता है केशांत संस्कार:

यह संस्कार इस पर निर्भर किया जाता है कि कोई जातक गुरुकुल या कहें वेदाध्ययन कब पूरा करता है। इस संस्कार के साथ जातक को ब्रह्मचर्य अवस्था से गृहस्थाश्रम में प्रवेश करने के लिए प्रेरित किया जाता है। सभी विषयों और वेद-पुराणों में पारंगत होने के बाद समावर्तन संस्कार से पहले जातक के बालों को काटा जाता है और उसे स्नातक की उपाधि दी जाती है। 


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